विभिन्न राज्यों की होली

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होली आने वाली है। हम सबने होली की तैयारियां पूरी कर ली, आप सबने रंग, पिचकारी खरीद ली होगी अब इंतजार है तो होली की सुबह का। दिमाग में यही चल रहा है कि इस बार किसको रंगा जाए ? कौन है जिसने मुझे पिछली होली पर रंगा था और मैं उसे नहीं रंग सका ? इस तरह तो सभी होली खेलते हैं आइए देखें विभिन्न राज्यों में किस तरह की होली खेली जाती है।

उत्तर प्रदेश:

लठमार होली उत्तर प्रदेश के बरसाना में खेली जाती है। मान्यता के अनुसार होली का प्रारंभ भारत में बरसाना क्षेत्र से हुआ था। बरसाना क्षेत्र में वृंदावन, मथुरा, नंदगांव, बरासना सभी आते हैं। बरसाना की होली इसलिए प्रसिद्ध है क्योंकि वहां होली रंगों से नहीं लाठी से खेली जाती है। कृष्ण का नंदगांव और राधा का बरसाना। आज भी नंदगांव के पुरूष बरसाना की महिलाओं को रंग लगाने वहां जाते हैं। महिलाएं पुरूषों का स्वागत रंग की जगह लाठी से करती हैं। पुरूष भी तैयार होकर ही जाते हैं। अब आप समझ गए होंगे कि यह तो राधा कृष्ण के जमाने से चल रहा है।

गुजरात:

गुजरात में होली दो दिन मनाई जाती है। पहले दिन शाम को होली जलायी जाती है और उसमें कच्चा नारियल और भुट्टे के दाने डालते हैं। अगले दिन को धुलेटी कहते हैं यानि रंगों का त्यौहार। इस दिन सब एक दूसरे को रंग लगाते हैं। गुजरात के तटवर्ती शहर द्वारका में द्वारिकाधीश के मंदिर में नृत्य, संगीत के कार्यक्रम के साथ होली मनाई जाती है। अहमदाबाद के सड़कों पर ऊंचाई पर दही हांडी बांधी जाती है और लड़के एक दूसरे पर चढ़कर ऊपर पहुंचकर उसे तोड़ने की कोशिश करते हैं और लड़कियां उन पर रंग डालकर उन्हें रोकने की कोशिश करती हैं। होली के साथ कृषि का भी रिश्ता है। होली फाल्गुन के महीने में मनाया जाता है जो कि रबी फसल का प्रतीक है। किसी किसी परिवार में आज भी भाभी अपने देवर को साड़ी की रस्सी बनाकर पीटती है क्योंकि देवर भाभी को रंगने का प्रयास करता है। शाम को देवर अपनी भाभी के लिए मिठाई लेकर आता है।

उत्तराखंड, कुमांऊ क्षेत्र:

कुमांऊ क्षेत्र की होली को खादी होली कहते हैं। खादी होली मुख्यतः नगरों में खेली जाती है। यहां के लोग पारंपरिक कपड़े पहनकर खड़ी बोली में गीत गाते हैं जिन्हें खड़ी गीत कहते हैं और समूहों में नृत्य करते हैं। यह टोलियों में घूमते हैं और आने जाने वालों को शुभकामनाएं देते हैं। इस क्षेत्र में होली संगीत सभा की तरह मनाया जाता है और इसे बैठका होली, खादी होली और महिला होली के नाम से जाना जाता है।

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पंजाब:

पंजाब में होली को होला मोहल्ला कहते हैं। यह लड़ाकों की होली है। इसे निहंग सिख मानते हैं। यह होली के एक दिन बाद मनाई जाती है। निहंग सिख इसमें युद्धकला का प्रदर्शन करते हैं, इसके पश्चात नृत्य और गीत होता है।

पश्चिम बंगाल:

यहा पर होली को बसंत उत्सव के रूप में मनाया जाता है। बसंत उत्सव में बसंत ऋतु का स्वागत किया जाता है। इस दिन शान्तिनिकेतन में बसंत उत्सव होता है। लड़के लड़कियां इस दौरान पीले वस्त्र पहनते हैं और नृत्य, संगीत पेश करते हैं। दूसरी ओर दोल जात्रा निकाला जाता है। दोल पूर्णिमा के दिन राधा कृष्ण की मूर्ति को लेकर सड़कों पर जुलूस निकाला जाता है। मस्ती के मूड में पुरूष इस जुलूस पर रंग डालते हैं।

मणिपुर:

मणिपुर में होली छह दिन तक मनाई जाती है। यहंा होली को याओसांग भी कहते हैं। यह पूर्णिमा के दिन प्रारंभ होता है और हिंदू परंपरा के अनुसार मनाया जाता है। होली के दौरान यहां पर थाबल चोंगबा नामक मणिपुरी लोक नृत्य होता है। परंपरा को बरकरार रखने के लिए और अन्य स्थानों के अनुसार यहां के लोग रंग भी खेलते हैं।

बिहार:

बिहार में भोजपूरी भाषा में होली को फगुवा कहते हैं। यहां होली खेलना प्रारंभ करने से पहले होलिका दहन को जरूरी माना जाता है। बिहार में होलिका दहन को आगजा कहते हैं। इसके पश्चात होली खेली जाती है। लोक गीत गाए जाते हैं, पानी एवं रंगों के साथ होली की मस्ती प्रारंभ हो जाती है। बिहार में होली का अभिन्न अंग है भांग।

गोवा:

गोवा में भी होली पर बसंत उत्सव मनाया जाता है। इसे शिमगो कहते हैं। यह हिन्दुओं का बहुत बड़ा त्यौहार है। यहां पर किसान पारंपरिक लोक नृत्य और सड़क नृत्य पेश करते हैं।

केरल:

उत्तर भारत की तरह दक्षिण भारत में यह इतना लोकप्रिय त्यौहार नहीं है। फिर भी कुछ समुदाय इसे कुछ दूसरी तरह दूसरे नाम से मनाते हैं। केरल में होली को मंजल कुली कहते हैं। यह गोसरीपुरम के तिरूमाला के कोंकणी मंदिर में मनाया जाता है।

असम:

असम में होली को फगवा कहते हैं। यह बंगाल के दोल जात्रा जैसा ही होता है। यहां होली दो दिन मनाई जाती है। पहले दिन होलिका दहन के तौर पर मिट्टी के झोपड़े को जलाया जाता है। दूसरे दिन अन्य स्थानों की तरह रंगों की होली होती है।

राजस्थान:

यहां उदयपुर के मेवाड़ शाही परिवार शाही होली मनाता है। होली के एक दिन पहले शाम को बुरी शक्तियों से छुटकारा पाने के लिए होलिका दहन होता है। यहां शाही बैंड और सजे धजे घोड़ों के साथ जुलूस निकलता है। यही जुलूस पवित्र अग्नि को जलाकर होलिका का दहन करता है।


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