अन्य देवताओं से अलग है भोलेनाथ का रूप
भोलेनाथ यानि भगवान शिव, उन्हें भोलेनाथ इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह बहुत जल्दी प्रसन्न हो जातें हैं। उनका रूप अन्य देवताओं से अलग है। शरीर पर भस्म, गले में भुजंग, मस्तक पर चंद्रमा, जटाओं में गंगा, हाथों में त्रिशूल और डमरू। भोलेनाथ ने इनको अपने शरीर पर क्यों धारण किया है इसके पीछे के रहस्य को जानते हैं।
मस्तक पर चंद्रमा :
समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान भगवान शिव ने किया था अन्यथा सृष्टि नष्ट हो जाती। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब समुद्र मंथन से निकले विष का पान भगवान शिव ने किया तो उनका शरीर गर्म होने लगा और गला नीला पड़ गया। उनके शरीर को शीतल करने की आवश्यकता थी। तब चंद्रमा भोलेनाथ के सिर पर विराजमान हुए। चंद्रमा ने भोलेनाथ को शीतलता प्रदान करने की प्रार्थना की और भोलेनाथ नंे चंद्रमा को मस्तक पर धारण किया तब विष की तीव्रता कम होने लगी। तब से चंद्रमा भगवान शिव के मस्तक पर विराजमान हैं।
शिव पुराण के अनुसार चंद्रमा से महाराज दक्ष ने अपनी २७ कन्याओं का विवाह किया। परंतु चंद्रमा को रोहिणी से अधिक प्यार था। महाराज दक्ष की अन्य पुत्रियों ने पिता से इस बात की शिकायत की। क्रोधित दक्ष ने चंद्रमा को शाप दे दिया, वह भी भयंकर, क्षय रोग से ग्रसित होने का। अब चंद्रमा ने भोलेनाथ की अराधना प्रारंभ की। भोलेनाथ प्रसन्न हुए, चंद्रमा को भयंकर रोग से मुक्ति दिलायी, और चंद्रमा की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें मस्तक पर धारण किया। भगवान शिव के मस्तक पर चंद्रमा के विराजमान होने की दो कथाएं हैं।
जटाओं में गंगा:
हम सभी जानते हैं कि भागीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिए गंगा को पृथ्वी पर लाए। उनके पूर्वजों को ऋषि कपिल नें भस्म ने कर दिया था, उनकी मुक्ति के लिए भागीरथ ने कठोर तप किया और गंगा को पृथ्वी पर आने के लिए राजी कर लिया। परंतु मां गंगा ने कहा कि उनके प्रचंड वेग को पृथ्वी सहन नहीं कर पाएगी। तब भागीरथ ने भगवान शिव की आराधना की। भगवान शिव को प्रसन्न करने के पश्चात उन्होंने भगवान को मां गंगा की बात बताई। तब भगवान शिव ने गंगा को अपनंी जटा में धारण करने का निश्चय किया और एक ही धारा को पृथ्वी पर भेजा।
गले में सर्प:
पौराणिक मान्यता के अनुसार समुद्र मंथन के वक्त रस्सी के स्थान पर नागराज वासुकी का उपयोग किया गया था। नागराज ने भी समुद्र मंथन के दौरान निकले विष हलाहल का पान किया था। नागराज वासुकी शिव भक्त तो थे ही, इससे शिवजी भी उन पर अत्यन्त प्रसन्न हुए और गले में धारण करने का निश्चय किया।
हाथ में त्रिशूल:
मान्यता है कि भगवान शिव के साथ तीन गुण भी प्रकट हुए थे – सत, तम और रज। इसमें सत गुण सबसे सूक्ष्म और अमूर्त है और इसे दैवीय तत्व के सबसे निकट माना जाता है। सबसे कनिष्ठ है तम गुण। तम गुण वाला व्यक्ति आलसी, लोभी और सांसारिक इच्छाओं से आसक्त रहता है। रज गुण सत और तम को ऊर्जा प्रदान करता है और व्यक्ति से कर्म करवाता है। यही तीन गुण शिवजी के त्रिशूल बने। प्रकृति के तीन रूप – आविष्कार, रखरखाव और तबाही को भी शिवजी का त्रिशूल दर्शाता है।