थम नहीं रहा कोरोना का कोप

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पूरी दुनिया की गति को थाम देने वाला कोरोना का कोप थमने का नाम नहीं ले रहा देश में लॉक डाउन 17 मई तक बढ़ा दिया गया है। हालांकि केंद्र सरकार ने कुछ रियायत देने की बात कही है साथ में लोगों से अपील की है जरा और थोड़े सब्र की जरूरत है लेकिन जिस तरह से पूरी दुनिया और देश में कोरोना से संक्रमित मरीज लगातार बढ़ रहे हैं उससे जल्दी ही पहले जैसी जिंदगी स्वतंत्रता दिखाई नहीं देती हां स्वच्छता और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता जरूर देखने को मिलेगी।

दरअसल कोरोना वायरस से संक्रमण खेलने का खतरा ना केवल बना हुआ है। बल्कि इसके और जोर पकड़ने की की संभावनाए बन रही क्योंकि इतने लंबे लॉक डाउन के बाद भी संक्रमित मरीजों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही दूसरी तरफ अर्थव्यवस्था रसातल में जा रही है। रोज कमाने और खाने वालों की मुश्किल है लगातार बढ़ रही है एक तरह से कुआ और खाई के बीच जिंदगी फस गई है लॉक डाउन खत्म करने से संक्रमण की रफ्तार बढ़ जाएगी और नहीं करते हैं भूखे मरने की भी स्थिति बनने लगेगी है। मई महीना कोरोना महामारी से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण माना जा रहा है यदि इस महीने इस बीमारी पर नियंत्रण नहीं पाया गया तो फिर जुलाई में स्थिति और भी बिगड़ सकती है और तब वैक्सीन का इंतजार करने का कोई चारा नहीं रहेगा क्योंकि कब और कैसे कोरोना महामारी की चपेट से हम बाहर निकलेंगे पूरे दावे से कोई नहीं कह सकता यह कैसी महामारी है।

जिसके बारे में ना पहले कभी सुना गया ना देखा गया और ना ही इसके बारे में सोचा गया हां इतना जरूर समझ में आ रहा था जिस तरह से पूरी दुनिया एक होड़ में शामिल हो गई है। जिसमें विकास और सुविधा भोग इतना पड़ गया था ना कोई जंगल की चिंता कर रहा था ना कोई नदी तालाबों की चिंता कर रहा था और ना ही जीव जंतुओं की प्रकृति की तरफ जैसे पीठ करके दौड़ लगाई जा रही थी। उसमें यह जरूर लग रहा था कि आगे जाकर स्थितियां विकराल रूप धारण कर सकती हैं लेकिन इतनी जल्दी एक वायरस पूरे दुनिया को तहस-नहस कर देगा इसकी संभावना किसी को नहीं थी।
प्रकृति कितने कष्ट में थी इसका अंदाजा सहजी लगाया जा सकता है क्योंकि लॉक डाउन के बाद पर्यावरण पर सकारात्मक असर दिखाई देने लगा है बरसों बाद आसमान नीला नजर आने लगा है। पक्षियों की चहचहाहट सुनाई देने लगी है गंगा यमुना नर्मदा जैसी नदियां स्वच्छ हो रही है।

बहरहाल कोरोना महामारी जहां अपने पैर पसार ते जा रही है वही समस्याएं ही बढ़ती जा रही सरकार का ध्यान अब तक संक्रमित मरीजों को ठीक करने पर केंद्रित था लेकिन अब देश के अनेक हिस्सों में फसे प्रवासी मजदूरों पर्यटक और विद्यार्थियों की तरफ भी गया है और इनकी घर वापसी की व्यवस्था हो रही है लेकिन अभी भी सरकार का ध्यान उन लोगों की तरफ नहीं है जो अपने ही राज्य में दूसरे जिलों में फंसे हुए हैं उन्हें अपने गृह जिले में जाने की अनुमति नहीं मिल रही है। ऐसे भी गंभीर मामले हैं जिन्हें चिकित्सा के लिए गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अपने घर जाना है उन्हें भी अब तक अनुमति नहीं मिली है। केवल इंदौर शहर में 48 घंटों में लगभग 50,000 ऐसे पीड़ित लोगों ने अपने घर जाने के लिए आवेदन दिए हैं यदि सरकार ऐसे लोगों को पास जारी कर देती है दो मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित हो रहे ऐसे परिवारों को राहत मिल सकती है। अन्यथा ऐसे लोग अन्य प्रकार की परेशानियों या बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।

देवदत्त दुबे

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