फब्तियां सहने वाले बने फरिश्ते

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दुनिया के सबसे बड़े संकट के दौरान वे लोग फरिश्ते बनकर लोगों की जान बचा रहे हैं जिन पर अब तक फब्तियां कसी जाती रहीं है फिर चाहे वे चिकित्सक हो नर्स हो पुलिस हो पुलिसकर्मी हो या फिर सफाई कर्मी सभी इस संकट के दौरान कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा कर रहे हैं।
दरअसल मानव स्वभाव कुछ ऐसा है कि वह अपनी अच्छाइयां और दूसरों की गलतियां ज्यादा देखता है और कई बार दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों को इतना बढ़ा चढ़ा कर पेश करता है की लोगों की धारणाएं बदल जाती है और कई बार तो आलोचना सहने वाला समाज में खलनायक जैसा दिखाई देने लगता है। ऐसा भी होता है किसी एक व्यक्ति की गलती के कारण पूरे वर्ग को दोषी ठहरा दिया जाता है ऐसे समय यह भी भुला दिया जाता है आखिर यह वर्ग उस समय काम आएगा जब हम और आप सर्वाधिक संकट में होंगे इनमें चिकित्सा स्टाफ पुलिस स्टाफ और साफ-सफाई स्टाफ ऐसा ही है जिन्हें आलोचनाएं प्रतिदिन मिलती हैं और कभी कभार ही तारीफ लेकिन जब जब किसी की जिंदगी पर संकट आया है तब यही वर्ग जान बचाने अपनी जान जोखिम में डालकर भी बचाने आता है जैसा कि विश्वव्यापी कोरोना महामारी के दौरान इन सभी वर्गों के लोग फरिश्ते बनकर लोगों की जान बचा रहे है।
बहरहाल मंगलवार को अंतरराष्ट्रीय नर्स दिवस था शायद यह पहला नर्स दिवस ऐसा होगा जिसमें नर्सों की प्रति श्रद्धा और आस्था का भाव देखने को मिला है क्योंकि इस समय कोरोना संक्रमित मरीजों के इलाज में चिकित्सकों के साथ नर्स से भी दिन रात पसीना बहा रही है पुरुषों की बजाए महिलाओं की बहुत सी शारीरिक परेशानियां भी होती हैं इसके बावजूद भी वे लोगों की जान बचाने संघर्ष कर रही है। अनेकों ऐसे उदाहरण इस दौरान देखने को मिले हैं कि जहां गर्भवती नर्स भी मरीजों की सेवा में लगी है तो छोटे-छोटे बच्चों को साथ लेकर भी या उनको घरों पर छोड़कर मरीजों की सेवा कर रही है नर्सों को जो पीपी इ किट पहनाई जाती है उसको पहनने में 25 से 30 मिनट तक लग जाते हैं और इस किट को पहनने के बाद लगभग 6से 7 घंटे की ड्यूटी करनी पड़ती है और इस दौरान ना तो पानी पी सकती हैं ना टॉयलेट जा सकती हैं कई बार तो इतने लंबे समय तक इस किट को पहनने के कारण उन्हें घुटन महसूस होने लगती है ऐसे भी उदाहरण हैं जहां नर्सों ने मेटरनिटी लीव तक नहीं ली क्योंकि उन्होंने सेवा को सर्वोपरि माना है। सोचो जिन नर्सों के बारे में समाज में क्या क्या बातें होती हैं कैसी कैसी धारणाएं बनाई जाती हैं कई बार नर्स की बजाए अन्य किसी भी पेशे को प्राथमिकता दी जाती है कोई शिक्षिका बनना पसंद करता है कोई क्लर्क बनना पसंद करती हैं आंगनवाड़ियों में काम करना पसंद करती है यहां तक कि अब महिलाएं ऑटो रिक्शा चलाते हैं, साफ सफाई के काम में भी महिलाएं सर्वाधिक है अब तो पुलिस में भी महिलाओं की संख्या बढ़ गई है लेकिन जब भी कोई पुरुष शादी के लिए लड़की तलाश ता है तो वह नर्स की बजाए अन्य कामकाजी महिलाओं को प्राथमिकता देता है लेकिन आज प्रत्येक संक्रमित मरीज को नर्स में देवी नजर आ रही है जो उसकी जान बचाने में कामयाब हो सकती है।
कुल मिलाकर संकट के समय ही अपनों और परायो की पहचान होती है। जो संकट के समय काम आए वही सम्मान का हकदार होता है आज ऐसा ही अवसर है जब हम विश्व के सबसे बड़े संकट के दौरान कोरोना वायरस संक्रमित मरीजों की सेवा में दिन रात संघर्ष कर रही नर्सों की प्रति सम्मान का भाव स्थाई रूप से बना सकते हैं क्योंकि ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब अस्पताल में सामान्य बीमारियों के दौरान अपने साथ छोड़ जाते हैं परिवार वाले दिखाई नहीं देते मित्र कहीं नजर नहीं आते लेकिन नर्स 24 घंटे आपकी सेवा में रहती है और आज वह अपने घर की चिंता किए बगैर अपनी जान हथेली पर रखकर आपकी सेवा कर रही है। चिकित्सकों के पास फिर भी बंगले होते है जहां वे अस्पताल से लौटकर अपने लिए अलग से कमरे में व्यवस्था किए रहते हैं लेकिन नर्सों के पास तो छोटे-छोटे घर होते हैं और जहां अस्पताल से लौटने के बाद उन्हें परिवार के साथ ही रहना पड़ता है और ऐसे संक्रमित मरीजों का इलाज करने के बाद वे जब परिवार के पास पहुंचती है तो अंदर से बहुत डरी हुई होती है कहीं ऐसा ना हो कि अस्पताल से संक्रमण लाकर परिवार वालों को भी संक्रमण तो नहीं कर रहे
जाहिर है हम अनजाने में ही कई बार सुनी सुनाई बातों पर ऐसे लोगों पर फब्तियां कस देते हैं जो संकट के समय किसी फरिश्ते से कम नहीं नजर आ रहे हैं भविष्य में हमें ऐसी बुराइयों से बचना चाहिए।

ब्यूरो प्रमुख : देवदत्त दुबे


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