मध्य प्रदेश :सत्ता गवा कर भी सुधर नहीं रही कांग्रेस
नेता प्रतिपक्ष के लिए तेज हुआ संघर्ष
२५ अप्रैल, भोपाल । 15 वर्षों के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस नेताओं की आपसी प्रतिद्वंद्विता के चलते 15 माह में ही सरकार गंवा चुकी लेकिन लगता है कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं लिया है। और अब नेता प्रतिपक्ष कौन हो इसको लेकर भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोड़-तोड़ शुरू हो गई है।
दरअसल प्रदेश में कांग्रेस के क्षत्रप नेताओं के बीच आपसी प्रतिद्वंद्विता वर्षों पुरानी रही है और इसी प्रतिद्वंद्विता के चलते कांग्रेस को प्रदेश में 15 वर्षों तक सत्ता से बाहर रहना पड़ा और जब क्षत्रप नेताओं के अस्तित्व पर ही संकट आ गया तब नेताओं ने एकजुटता दिखाई और प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी लेकिन सरकार बनाने के दौरान ही सरकार के गिरने की बुनियाद रख दी।
जब नेताओं ने अपने-अपने समर्थक विधायकों को मंत्री बनाने के लिए वरिष्ठ विधायकों की उपेक्षा की जोकि धीरे धीरे पार्टी के लिए नासूर बन गई और नेताओं के बीच अहम ऐसा टकराया की सरकार ही गिर गई। इससे क्षत्रप नेताओं की सेहत पर उतना असर नहीं पड़ा जितना उन कार्यकर्ताओं का सपना टूट गया जिन्होंने 15 वर्षों की भाजपा सरकार से लड़कर प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए दिन रात मेहनत की थी।
बहरहाल प्रदेश में कांग्रेस अब मजबूत विपक्ष की भूमिका में है लेकिन सत्ता के दौरान नेताओं के बीच जो आपसी खींचतान मची हुई थी वह विपक्ष में आकर भी कम नहीं हुई और अब नेता प्रतिपक्ष कौन हो इसके लिए खींचतान चल रही है। भोपाल से लेकर दिल्ली तक जोड़-तोड़ चल रही है और पार्टी के वरिष्ठ विधायक नेता प्रतिपक्ष बनने के लिए उतावले हो रहे हैं। वैसे तो प्रदेश में 24 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना है और तब तक पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ को ही नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने की मांग भी एक धड़ा कर रहा है अभी जबकि कोरोना महामारी के चलते तमाम गतिविधियां कार्यक्रम आगे बढ़ाए जा रहे हैं अभी तक भी नहीं है कि कब विधानसभा क्षेत्रों के उपचुनाव होंगे कब राज्यसभा के लिए चुनाव होंगे और कब विधानसभा का सत्र बुलाया जाएगा। विधानसभा का पिछला सत्र भी औपचारिक ही रहा था कांग्रेसी समय प्रतिशोध की ज्वाला में जल रहे।
वे सड़क से लेकर सदन तक भाजपा सरकार को घेरने में इस बार ऐसी गलती नहीं करेंगे जो उन्होंने 15 वर्षों की भाजपा सरकार के दौरान की थी। इस कारण भी प्रदेश अध्यक्ष के रूप में कमलनाथ कार्य करते रहेंगे वही विधायकों को एकजुट करके सरकार को घेरने के लिए अनुभवी नेता प्रतिपक्ष की तलाश पार्टी को है। वैसे तो वरिष्ठता के आधार पर 7 बार का चुनाव जीत चुके डॉक्टर गोविंद सिंह का नाम लगभग तय माना जा रहा था लेकिन 6 बार के विधायक केपी सिंह ने डॉक्टर गोविंद सिंह के नाम पर अपनी आपत्ति दर्ज करा दी, जिसके बाद नए सिरे से नेता प्रतिपक्ष को लेकर खोजबीन शुरू हो गई है। हालांकि डॉक्टर गोविंद सिंह का कहना है की केपी सिंह मेरे मित्र हैं और वे मेरा विरोध नहीं कर सकते क्योंकि चंबल इलाके में विधानसभा के उपचुनाव ज्यादा संख्या में होना है। इस कारण पार्टी इसी इलाके से नेता प्रतिपक्ष बनाना चाह रही है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति जीतू पटवारी के नाम भी नेता प्रतिपक्ष के लिए चल रहे हैं
हालांकि जीतू पटवारी कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष हैं और मीडिया विभाग का भी जिम्मा सौंपा गया है इस कारण डॉक्टर गोविंद सिंह का दावा सबसे मजबूत माना जा रहा है।
कुल मिलाकर सरकार भले ही चली गई हो लेकिन कांग्रेसियों की गुटबाजी कम नहीं हुई है सरकार के दौरान जहां मंत्री पद को लेकर खींचतान चलती रही वहीं विपक्ष में आने के बाद यही खींचतान नेता प्रतिपक्ष के लिए शुरू हो गई है ऐसे में पार्टी कैसे मजबूत विपक्ष की भूमिका निभा पाएगी और कैसे फिर उपचुनाव में जीत हासिल कर पाएगी यह तो वक्त ही बताएगा