करोना काल के ग्यारह दिन ग्यारह बातें !

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग

सिर्फ़ ग्यारह दिन हुए हें लेकिन ऐसा लग रहा है कि कलयुग में सतयुग आ गया है। कितना सादा जीवन हो गया। दाल रोटी, कुछ कपड़े, एक घर बस। थोड़े में भी परम आनंद। सुबह का आनंद, कसरत व्यायाम, पेड़पोधों की देखभाल, पूजा पाठ, फिर रामायण, महाभारत, भोजन और सारे घर के सदस्य मिलजुल कर हंसते गाते प्रकृति का पूरा ख़्याल भी रख रहे हें।

तो चलिए इस संकट के समय में क्या खोया क्या पाया की तर्ज पर आज ग्यारह दिनों के ग्यारह सार्थक पक्षों का अवलोकन करें:

सबसे पहली बात मृत्यु दर की। करीब 400 मृत्यु रोजाना हमारे देश में रोड एक्सीडेंट से होती है जो कि इस लॉकडाउन के चलते नगण्य हो गई है ।

दूसरी बात जिस पॉल्यूशन को हमारी सरकारें तमाम कोशिशों के बावजूद भी कंट्रोल नहीं कर पा रही थीं वह अब लॉकडाउन के चलते अपने आप ही ना सिर्फ़ कंट्रोल हो गया है, बल्कि इतनी बेहतर स्थिति तो तीस साल पहले भी नही थी और अब शायद ओजोन लेयर भी अपने आप को वापिस ठीक कर ले।

तीसरी बात क्राइम का आँकड़ा ऑल टाईम लो होकर पूरी तरह से कंट्रोल हो गया है ।

चौथी बात पूरे विश्व में सफाई अभियान जोरों शोरों से चल रहा है। हर घर, हर गली, हर रास्ते, को साफ किया जा रहा है । छिड़काव हो रहे हैं जिससे लगता है कि कोरोना के अलावा अन्य बीमारी के कीटाणु भी इस पृथ्वी से खत्म नही तो कम तो हो ही जाएंगे।

पांचवी बात लॉकडाउन के चलते जब हम सब घरों में बंद है तो परिवार का महत्व भी हमें समझ में आ रहा है और वर्षों बाद परिवार में सब एक दूसरे से मिलजुल कर ढेरों बातें कर रहे हैं।

छठी बात पशु पक्षी भी बहुत ज्यादा खुश नजर आ रहे हैं क्योंकि उनको सैकड़ों वर्ष पुरानी प्रकृति, स्वस्थ वातावरण, वाहनो का प्रदूषण शोरगुल में बेहद कमी होने से स्वतंत्रता वापस मिल गई है।

सातवीं बात इस कोरोना के दौर में कोई पैसे की बात नहीं कर रहा है बल्कि लोग एक दूसरे की मदद के लिए आगे आ रहे हैं एक तरह से देखा जाए तो कोरोना ने हमें इंसानियत का पाठ पढ़ाया है और पैसे के पीछे ना भागने की सलाह दी है।

आठवीं बात घर के ही नही आसपड़ोस और मोहल्ले के लोग भी एक दूसरे के लिए जागरूक और सहयोगी हो चलें हैं और ना सिर्फ़ सुरक्षा बल्कि एक दूसरे की ज़रूरत का भी ख़्याल कर रहे हें ।

नोंवी बात परदेसों में बेठे परिजन अपने घर बड़े बुजुर्गों के लिए परेशान हो रहे हें और यह जानकारी मिलने पर सभी लोग मदद के लिए आगे आ रहे हें कई सोशल ग्रूप्स बन गए हें लोग दिल खोल कर मदद कर रहे हें ।

दसवीं बात लोग अपने सहयोगियों, सहायकों और मूक पशुओं के प्रति भी संवेदनशील और जवाबदेह हो गए हें ।

ग्यारहंवी और सबसे महत्वपूर्ण बात यह देखने में आ रही है कि इतने भीषण समय में जब कि कामधंधे चौपट हें, विश्व की इकोनोमी रसातल में जाने को तेय्यार बेठी है उस समय भी अधिकांश भारतीय जनमानस ना सिर्फ़ दिल खोल कर देश की मदद के लिए आगे आ रहा है, प्राइम मिनिस्टर फंड में दान दे रहा है बल्कि घरों में बंद होने पर भी आनंद मना रहा है और अस्पतालों, क्लिनिक्स में भी रोज़मर्रा की भीड़ बहुत कम हो गई है ।

तो दोस्तों कोरोना के इस दौर में अगर सोच पॉजिटिव रखी जाए तो सब कुछ पॉजिटिव ही देखने को मिलेगा, अवसाद तनाव डिप्रेशन जैसे रोग कम होंगे और संकट टल जाने के बाद जब ज़िन्दगी वापिस उसी पटरी पर लौटेगी तो उम्मीद की जाना चाहिए कि मानुष फिर से पशुत्व की राह ना लेकर, अपनी प्रकृति का संरक्षक बना रहेगा। और नही तो प्रकृति के तरकश में अभी हज़ारों तीर बाक़ी हें।अपने आपको इंसा बनाए रखिए। धरा का मन और मान कम न होने पाए ।

और हाँ, ध्यान हैं ना आज पाँच अप्रेल है रविवार मदन द्वादशी का पावन दिन। भूल तो नही गए ना कि आज रात नो बजे, नो मिनट के लिए सबको अपने अपने घरों की लाइटें बंद करके खिड़की दरवाज़ों पर दीप जलाने हें ? क्या कहा। क्या होगा उससे ?

सकारात्मक ऊर्जा, सहयोग की भावना, बीमारी से लड़ने की शक्ति, संकट काल से जूझ रहे डॉक्टरों, पुलिसकर्मी, सेवाकर्मियों को सम्बल मिलेगा। क्या यह कम है ?

(कैसा लगा आपको यह कमेंट बॉक्स पर लिख कर बताइये। यदि आप चाहते है की यह लेख आपके परिजन और मित्र भी पढ़े और आनंद उठाए तो इस का लिंक शेयर करने मत भूलिए गा)


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