सांस्कृतिक गरिमा को बनाए रखने का संदेश दिया नाटक “प्रतिबिम्ब”
मनीष कपूर
प्रयागराज । पारिवारिक आजादी का अनुचित लाभ उठाते हुए जब सांसारिक मर्यादा की सीमा को लांघा जाता है तभी कोई गुनाह और अपराध होता है । सांस्कृतिक क्षेत्र में कार्य करते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक गरिमा बनाए रखने का दायित्व भी कलाकारों का होता है । जरा सी चूक परिवार के साथ सांस्कृतिक विरासत को भी शर्मसार कर देती है ।
बृहस्पतिवार को उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र प्रेक्षागृह में” एकता” संस्था द्वारा मंचित नाटक” प्रतिबिंब” में यही संदेश देने का प्रयास किया गया।

अफजल खान लिखित एवं निर्देशित नाटक “प्रतिबिंब” की कहानी प्रवीण सिंह चौहान के परिवार के इर्द-गिर्द घूमती है ।प्रवीण सिंह चौहान के परिवार में पत्नी के अलावा दो बेटियां रूपा ,झुम्पा और बेटा संजय हैं । माता-पिता अपने बच्चों को बहुत प्यार करते हैं और उनकी हर इच्छा को पूरी करते है ।साथ ही अपने बच्चों को यह हिदायत भी देते कि सामाजिक मान मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए और अपने कार्य के प्रति पूरी श्रद्धा और इमानदारी रखनी चाहिए । बड़ी बेटी रूपा को एक्टिंग का शौक है नाटक के रिहर्सल के लिए रूपा को संजय ही छोड़ने लेने जाता इसी बात पर भाई-बहन में झगड़ा होता है। रोज भाई-बहन के झगड़े के कारण मम्मी नाटक की रिहर्सल घर पर ही करने की इजाजत दे देती हैं । लेकिन संजय को यह सब बिल्कुल पसंद नहीं कि रूपा अपने सह कलाकार के करीब आए या उससे हंसी मजाक करे । वह कई बार अपनी बहन को मना भी करता । फिर एक दिन रिहर्सल के दौरान एक ऐसी अनहोनी घटना हो जाती जिससे प्रवीण सिंह चौहान का परिवार सकते में आ जाता है और उनको अपना मान-सम्मान खतरे में नजर आने लगता है ।पिता और भाई को कुछ सूझ नही रहा था कि अब करें तो क्या करें। इस घटना से इतना अधिक क्रोधित हो जाते हैं कि रूपा की अत्यधिक पिटाई करते हैं जिससे रूपा की मौत हो जाती है । अपनी इज्जत को बचाने के लिए मेंटल हॉस्पिटल से रूपा की हमशक्ल दूसरी लड़की को घर ले आते हैं मानसिक रूप से विक्षिप्त रूपा की हमशक्ल वह लड़की रूपा के प्रतिबिंब को साकार करने का बहुत प्रयास करती है लेकिन सफल नहीं होती । नाटक के लोग उस युवती को रुपा मानने से इनकार कर देते हैं। उधर रूपा की याद में उसका दोस्त जोसेफ की मनोदशा खराब हो जाती है। जो गलती उससे हो जाती है उसके पश्चाताप में वो जलता रहता है। रूपा के पापा -मम्मी भी अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। आखिर का दृश्य बहुत मार्मिक होता है जिसने दर्शकों की आंखों को नम कर दिया ।यहीं पर नाटक का अंत होता है ।

प्रवीण सिंह चौहान की भूमिका में मदन कुमार, मम्मी की भूमिका में रेणु राज सिंह ,संजय की भूमिका में आरिश जमील ,रूपा की भूमिका में अलका सिंह, जोसेफ की भूमिका में देवेंद्र कुमार मिश्र, कत्याल की भूमिका में कबीर मौर्या ने अपने अभिनय से दर्शकों को बहुत प्रभावित किया ।प्रतिभा श्रीवास्तव, चैताली रॉय,मेनका, लव कुश भारतीय, योगेंद्र राजपूत, अभिषेक पांडे, अमन वर्मा ने भी अपनी-अपनी भूमिकाओं को जीवंत रूप प्रदान किया ।
प्रकाश संचालन सुजॉय घोषाल (लालतू दादा), संगीत संयोजन सौरभ केसरी, रूप सज्जा हामिद अंसारी, मंच सामग्री रवि कुशवाहा ,प्रचार प्रसार वरुण कुमार, जतिन कुमार, वस्त्र विन्यास आशी अहमद, प्रस्तुति मार्गदर्शन रतन कुमार दीक्षित ,प्रस्तुति नियंत्रक मनोज कुमार गुप्ता एवं बशारत हुसैन थे । अनमस्तेेतिथियों का स्वागत अलवीना जमील,उमा दीक्षित,कार्तिकेय गुप्ता,शहबाज़ अहमद,इफ्फत सईदा,रमेश चंद ,आंजनेय गुप्ता ने किया। धन्यवाद ज्ञापित संस्था के महासचिव जमील अहमद ने किया ।मंच संचालन रेनू राज सिंह ने किया । डॉ. साधना शंकर मुख्य आयकर आयुक्त, श्री सुबचन राम प्रधान आयकर आयुक्त, श्री लोकेश कुमार शुक्ला केंद्र निदेशक आकाशवाणी इलाहाबाद ,डॉक्टर विभा मिश्रा सहायक निदेशक लघु उद्योग एवं सूक्ष्म मंत्रालय भारत सरकार ,श्री बृजेश श्रीवास्तव नगर पुलिस अधीक्षक, श्री बांके बिहारी पांडे प्रधानाचार्य रानी रेवती देवी इंटर कॉलेज, श्री अजामिल व्यास वरिष्ठ चित्रकार रंगकर्मी विशिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में उपस्थित थे ।
