कहीं गुदगुदाया तो कहीं गहरा संदेश दे गया नाटक “द फीचर फिल्म”

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मनीष कपूर।

सिनेमा के वर्तमान चेहरे से रूबरू करा गया नाटक “द फीचर फिल्म।”

मनोरंजन की चादर तले गंभीर संदेश दे गया नाटक ” द फीचर फिल्म”।

IIIT आईआईआईटी इलाहाबाद में चल रहे तीन दिवसीय इलेक्ट्रिकल, इलेक्ट्रॉनिक्स और कंप्यूटर इंजीनियरिंग पर 9वां आई.ई.ई.ई.( IEEE) यूपी खंड अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन 2022 में तीसरे दिन शाम 6:00 बजे नुक्कड़ नाट्य अभिनय संस्थान प्रयागराज के कलाकारों ने नाटक “द फीचर फिल्म” का मंचन किया।
युवा निर्देशक कृष्ण कुमार मौर्य द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक “द फीचर फिल्म” एक हास्य नाट्य प्रस्तुति है, जिसमें मुंबई से आया है एक निर्देशक. निर्देशक की यथार्थ सिनेमा बनाने की इच्छा है और इसी इच्छा से वह ग्रामीण अंचल में एक फिल्म शूटिंग के लिए वहां के लोकल कलाकारों का ऑडिशन लेता है। जिसमे गांव के अलग- अलग किरदार सामने आते है।

कोई शोले का गब्बर है, तो कोई बसंती, तो कोई पंचायत का विनोद है, तो कोई देहात का मजदूर।

इस हास्य नाटक के बहाने समाज के उन तबकों की भी कहानी निकल कर आती है जो की बहुत ही कम फिल्मों में या नाटकों में दिखाने की कोशिश की जाती है।
यह नाटक मनोरंजन की चादर तले गंभीर विषयों को बहुत ही सहज व सरल रूप से दर्शकों के सामने रखता है। साथ ही साथ सिनेमा की वर्तमान दशा व दिशा पर भी व्यंग करता है।
नाटक के प्रत्येक दृश्य को अभिनेताओं ने बांधकर रखा जहां प्रदीप कुमार अपनी इलाहाबादी जुबान में लोगों को हंसा रहे थे। वही निर्देशक बने कृष्ण कुमार मौर्य दर्शकों को मुंबई के सिनेमा का असली चेहरा दिखा रहे थे। पिंटू प्रयाग और अरविंद यादव गांव की संस्कृति और सभ्यता को अपने अभिनय से परिचित करा रहे थे, तो वही सह निर्देशक बनी शालिनी श्रीवास्तव गांव में महिलाओं की समस्या को व्यंग करते हुए पुरुषों पर चोट कर रही थी। पंकज त्रिपाठी बने कनिष्क सिंह ने वर्तमान में बन रही वेब सीरीज का समाज पर क्या प्रभाव पड़ रहा है उसको प्रदर्शित किया। अभिनेता देवेंद्र राजभर ने अंगीग अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध किया। वही कुमार सानू बने पप्पू जी ने अपनी गायकी से समा बांध दिया। इनके अलावा संजीव कुमार, शिवकुमार, नीतीश केएस इत्यादि की इस मंचन के सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका थी। इस कार्यक्रम का संचालन एवं संयोजन संतोष कुमार गुप्ता का रहा।

निर्देशक कृष्ण कुमार मौर्य ने कहां – आज ऐसा लगता है कि सिनेमा ही समाज बन गया है। यही तो होने से रोकना हैं, लोगो को अपना सच जीना है, मानना है दुसरो का नहीं। उनको असल और सिनेमा की लाइफ में जो एक बहुत बड़ा अंतर है, उसे समझना पड़ेगा। इसलिए मैं कहता हूं कि दर्पण को दर्पण ही रहने दो।

इस दौरान मुख्य संरक्षक : सेंट प्रो. आर एस वर्मा, आईआईटी इलाहाबाद, प्रोफेसर श्री निवास सिंह, आईआईटी कानपुर, प्रो. पी. नागभूषण, टी. इलाहाबाद, प्रो. जे. रामकुमार, आईआईटी कानपुर, प्रो. ओ.पी. व्यास, इलाहाबाद, प्रो कुमार वैभव श्रीवास्तव। IIT कानपुर और प्रोफेसर अखिलेश जी मौजूद रहे।


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