मध्य प्रदेश: 15 साल बनाम 15 महीने कि सियासी जंग

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वैसे तो किसी भी सरकार की 15 साल के कार्यकाल की तुलना 15 महीने से नहीं हो सकती लेकिन प्रदेश में तुलनात्मक राजनीति का दौर चल रहा है। 15 साल तक भाजपा, दिग्विजय शासन काल के 10 वर्षों की तुलना करती रही है लेकिन तब कांग्रेस में वर्षों तक ना तो बचाव किया और ना ही भाजपा पर हमलावर। लेकिन इस बार वह भाजपा के पीछे वैसे ही लग गई है जैसे कि भाजपा, कांग्रेस के पीछे लगी थी।

दरअसल मध्यप्रदेश में बरसों बाद प्रदेश के दोनों ही दलों भाजपा और कांग्रेस के बीच विधायकों का अंतर बहुत कम है। बसपा, सपा और निर्दलीय विधायक भी सरकार का संतुलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे हैं। साथ ही भाजपा और कांग्रेस में अंदरूनी अंतर्द्वंद भी कम होने का नाम नहीं ले रहे है। इस कारण मध्य प्रदेश की राजनीति ध्रुवीकरण के दौर से गुजर रही है। जहां आने वाले वर्षों में महत्वपूर्ण परिवर्तन देखने को मिलेंगे। अभी की राजनीति इस दिशा में जाएगी। इसको समझने में अच्छे-अच्छे राजनीतिज्ञ गोता लगा रहे हैं।

आर्थिक संकट से जूझ रहे प्रदेश में कोरोना महामारी का भी व्यापक असर हुआ है। राजस्व की जबरदस्त हानि हुई है। उद्योग व्यापार-व्यवसाय सब चौपट हो गए। ऐसे में प्रदेश में कब व्यवस्था पटरी पर आएगी कहा नहीं जा सकता और कोरोना का कहर कब तक बर्बाद करता रहेगा इसका भी अनुमान लगाना कठिन है।

बहरहाल प्रदेश में भाजपा और कांग्रेस में राजनैतिक जोड़-तोड़ और उठापटक भी तेज हो गई है। चौथी बार मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह के लिए चौतरफा से चुनौतियां ने घेर लिया है। एक तरफ जहां उन्हें कोरोना महामारी से प्रदेश को बचाना है। वही मंत्रिमंडल का विस्तार इतने करीने से करना है की कांग्रेस में पलटवार करने का मौका ना मिल सके और 24 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी भाजपा अधिकतम सीटें जीत कर प्रदेश में मजबूती प्राप्त कर सकें। जबकि प्रदेश की राजनीति में खो-खो जैसा गेम शुरू हो गया है जिस तर्ज पर भाजपा ने कांग्रेस की सरकार गिराई है उसी तर्ज पर कांग्रेस ने भी भाजपा सरकार को गिराने का सपना संजो लिया है और इस को साकार करने के लिए उसकी पहली रणनीति 24 सीटों मैं से अधिकतम जीतने की है। पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पूरा फोकस इन सीटों पर बनाए हुए हैं और निगाहें भाजपा के मंत्रिमंडल विस्तार पर भी हैं क्योंकि भाजपा में पहली बार मंत्रिमंडल विस्तार करना लोहे के चने चबाने जैसा हो गया है। जिस तरह की राजनैतिक परिस्थितियां हैं उसमें पार्टी नेतृत्व फूंक फूंक कर कदम रख रहा है। वर्तमान हालात से निपटने और कांग्रेस को कोई मौका ना देने की रणनीति बनाई जा रही है। जिसमें वरिष्ठ और अनुभवी विधायकों को मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। इसके लिए मुख्यमंत्री चौहान आज या कल में दिल्ली जा सकते हैं जहां पार्टी नेताओं और ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात कर सूची को अंतिम रूप देने की कोशिश करेंगे। सूत्रों की माने तो इस हफ्ते कभी भी मंत्रिमंडल का विस्तार हो सकता है।

कुल मिलाकर कोरोना महामारी के चलते भले ही सड़क और सदन में संघर्ष दिखाई ना दे रहा हो लेकिन दोनों ही दल अंदरूनी तौर पर एक दूसरे की गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए हैं। भाजपा विपक्ष में हो या सत्ता में हमेशा जनता के बीच सक्रिय भूमिका में रहती है लेकिन कांग्रेस पहली बार प्रतिशोध की ज्वाला में जलती नजर आ रही है और अनुकूल परिस्थितियों का इंतजार कर रही है। प्रदेश में हालात जैसे ही सामान्य होंगे वैसे ही 15 साल बनाम 15 महीने के कार्यकाल को लेकर सियासी जंग तेज होगी।

देवदत्त दुबे


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