प्रत्येक नारी की शक्ति का प्रतीक – रजस्वला देवी कामाख्या

Share:


जयती भट्टाचार्या
आज भी हमारे भारतीय समाज में महिलाओं के रजस्वला यानि पीरियडस को एक शर्मनाक घटना मानी जाती है। परंतु यह प्रकृति का वरदान है मानव जाति को। यदि महिला इससे नहीं गुजरेगी तो कोई पुरूष पिता नहीं बन पाएगा। यह कोई शर्मनाक घटना नहीं है यह दर्शाती है रजस्वला देवी कामाख्या मंदिर।
असम का कामाख्या मंदिर केवल एक तीर्थस्थल ही नहीं बल्कि देश का एक अनूठा मंदिर है। यह मंदिर असम की राजधानी गुवाहाटी में नीलांचल पर्वत पर स्थित है। इन्हें रजस्वला देवी के नाम से जाना जाता है। माना जाता है कि मंदिर के गर्भ गृह में देवी शक्ति की कल्पित गर्भ और योनी है।
प्रत्येक वर्ष आषाढ़ यानि जून के महीने में कामाख्या मंदिर के पास ब्रह्यमपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है। इसके पीछे मान्यता है कि इस दौरान देवी रजस्वला होती हैं।
मंदिर का इतिहास
असम का यह लोकप्रिय मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि 8वीं और 9वीं शताब्दी के बीच इस मंदीर का निर्माण हुआ था। परंतु हुसैन शाह के आक्रमण में यह मंदिर नष्ट हो गया जिसे 1500 ईस्वी में राजा विश्व सिंह ने फिर से पूजा स्थल के रूप में जीवित किया। इसके बाद सन 1565 में राजा के बेटे ने इसका पुर्ननिर्माण करवाया। यह एक महा शक्ति पीठ है।
मंदिर की कथा
भगवान शिव से देवी सती के विवाह को राजा दक्ष ने मंजूरी नहीं दी थी। बेटी से सारे रिश्ते तोड़ने के बाद भी उनका क्रोध शांत नहीं हो रहा था। बेटी दामाद को अपमानित करने के लिए उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया। भगवान शिव और देवी सती को छोड़कर सभी देव – देवी, ऋषि मुनि को राजा दक्ष ने निमंत्रित किया। भगवान शिव की मर्जी न होने पर भी देवी सती इस यज्ञ मे चली गईं। वहां राजा दक्ष ने भगवान शिव का बहुत अपमान किया। देवी सती इसे सह न सकीं और उन्होंनेे यज्ञ की अग्नि में कूदकर जान दे दी। भगवान शिव वहां आए और क्रोध में आकर देवी सती के मृत देह के साथ पूरे ब्रह्यमांड में घूमकर तांडव नृत्य करने लगे। सभी देव – देवी बेहद डरे हुए थे। परंतु सृष्टि को तो बचाना था इसलिए भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र छोड़ दिया और देवी सती के शरीर के टुकड़े हो गए। इस स्थान पर देवी सती की योनी गिरी थी। कहा जाता कि इसलिए हर साल देवी रजस्वला होती हैं।
रजस्वला होने का पर्व – अबुंबाची मेला
जब आषाढ के महीने में देवी तीन दिन के लिए रजस्वला होती हैं तो इसे मनाया जाता है। इस समय यहां अंबुबाची पर्व होता है और अंबुबाची मेले का आयोजन होता है। कहा जाता है कि इन तीन दिनों के लिए मंदिर के कपाट स्वंय ही बंद हो जाते हैं और तीन दिन के बाद देवी को स्नान कराने के पश्चात उनका शंगार करके मंदिर का कपाट खोला जाता है। इन तीन दिनों तक किसी को भी देवी के दर्शन की अनुमति नहीं होती है। अंबुबाची मेले में भक्तों के अलावा दूर दूर से साधू संत एवं तांत्रिक आते हैं।
मंदिर में किसकी पूजा होती है
इस मंदिर में पूजा के लिए देवी की कोई प्रतिमा स्थापित नहीं है। मंदिर के एक कोने में पत्थर से बना एक योनी है। जल का प्राकृतिक स्रोत इसे गीला रखता है। मंदिर में एक कुंड है जिसमें साल के बारह महीने पानी रहता है और उसे फूलों से ढ़ककर रख जाता है। इसके अलावा यहां त्रांत्रिक पूजा, हवन और काले जादू से बचने के लिए भी पूजा होती है।
मंदिर का प्रसाद
हर मंदिर में प्रसाद के रूप में फल, मिठाई मिलता है लेकिन यहां का प्रसाद खाने की वस्तु नहीं है। देवी जब रजस्वला होती हैं तो उसके पहले योनी पर एक सफेद रंग का कपड़ा रख दिया जाता है। तीन दिन बाद जब मंदिर के कपाट खुलते हैं तो कपड़ा लाल रंग का हो जाता है। इसी कपड़े को प्रसाद के रूप में भक्तों को दिया जाता है। देवी को खिचड़ी का भोग भी लगाया जाता है और आप उसे भी खा सकते हैं लेकिन असली प्रसाद वह लाल कपड़ा है। यह भी कहा जाता है कि देवी सती भगवान शिव के साथ प्रणय के पलों को बिताने के लिए यहीं आती थीं।
इस मंदिर में रजस्वला देवी के सामने सब सर झुकाते हैं तो जब नारी को मासिक धर्म होता है तो उसे शर्मिंदगी क्यों झेलनी पड़ती है। रजस्वला होना नारी की शक्ति का प्रतीक है। कामाख्या मंदिर इस सच को उजागर करता है।


Share: