नव दुर्गा का प्रथम रूप शैलपुत्री

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जयति भट्टाचार्या
नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा की पूजा नौ दिनों तक नौ अलग – अलग रूपों में की जाती है। नवरात्रि के पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा होती है अर्थात नव दुर्गा का प्रथम रूप है शैलपुत्री। इस रूप का बहुत महत्व है क्यूंकि  यह देवी पार्वती का अविवाहित रूप है। इसलिए  इनकी पूजा नवरात्रि के पहले दिन की जाती है। वह हिमालय पर्वत की बेटी हैं। उनका नाम संस्कृत के शैल से आया।  संस्कृत में शैल का अर्थ है पर्वत और पुत्री का बेटी, दोनों को मिलाकर शैलपुत्री। उनके अन्य नाम हैं देवी सती भवानी, मां हेमवती और देवी पार्वती। उन्हें प्रथम शैलपुत्री भी कहा जाता है।
अपने पूर्व जन्म में मां शैलपुत्री का जन्म राजा दक्ष की पुत्री सती के रूप में हुआ था। सती भगवान शिव से विवाह करना चाहती थीं। राजा दक्ष इस विवाह के बिल्कुल खिलाफ थे। एक बार राजा दक्ष की अनुपस्थिति में उनकी पत्नी प्रसुती ने सती का विवाह भगवान शिव से कर दिया। राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव का विवाह मंजूर नहीं किया। वह बेहद क्रोधित हुए और बेटी से सारे रिश्ते तोड़ दिए। इस विवाह का ख्याल आते ही उनका गुस्सा दिन प्रतिदिन बढ़ने लगा। बेटी दामाद को अपमानित करने और अपने गुस्से को बाहर निकालने के लिए उन्होंने एक यज्ञ का आयोजन किया। राजा दक्ष ने सभी देव – देवियों को निमंत्रित किया, यहां तक कि ऋषि मुनियों को भी आमंत्रित किया परंतु भगवान शिव और देवी सती को नहीं बुलाया। इसके बावजूद सती यज्ञ में शामिल होना चाहती थीं। उन्होंने सोचा कि यह अपने माता – पिता से पुनर्मिलन का अच्छा मौका है।
भगवान शिव इसके लिए तैयार नहीं हो रहे थे इसलिए देवी सती जा नहीं पा रही थीं। भगवान शिव के राजी होने पर वह राजा दक्ष के यहां यज्ञ में शामिल होने और माता – पिता से मिलने चली गईं। वहां राजा दक्ष ने भगवान शिव का खूब अपमान किया। सती इसे बर्दाश्त नहीं कर पायी और यज्ञ की अग्नि में कूदकर जान दे दी। अगले जन्म में उन्होंने हिमालय पर्वत की बेटी शैलपुत्री के रूप में जन्म लिया। इस जन्म में भी वह भगवान शिव से ही विवाह करना चाहतीं थीं और उन्होंने ऐसा ही किया। विवाह के बाद वह भगवान शिव के साथ देवी पार्वती बनकर कैलाश आ गई।
शांत चेहरे के साथ मां नन्दी की सवारी करती हैं। उन्होंने अपने माथे पर अर्ध चन्द्र धारण किया हुआ है। उनके दांए हाथ में त्रिशूल है और बांए हाथ में कमल का फूल।
माँ शैलपुत्री का ग्रह है चन्द्रमा। चन्द्रमा के किसी भी बुरे प्रभाव से बचने के लिए मां शैलपुत्री की पूजा करनी चाहिए। मां मूलाधार चक्र से संबद्ध हैं। जीवन में संतुलन और शक्ति के लिए मूलाधार चक्र को जगाना आवश्यक है।
माँ  शैलपुत्री की पूजा विधि –
नवरात्रि के प्रथम दिन पर मां शैलपुत्री की पूजा से नवरात्रि के नौ दिन के व्रत का प्रारंभ होता है। घटस्थापना से पूजा की विधि प्रारंभ होती है। वह पृथ्वी पर प्रकट हुई हैं और उनकी संपूर्णता इसी में है इसलिए उन्हें प्रकृति मां कहा जाता है और उनक पूजा इसी रूप में की जाती है।
*सबसे पहले घटस्थापना करनी पड़ती है। एक बड़े मुंह वाले मिट्टी के पात्र में सबसे पहले सात प्रकार की मिट्टी डालनी पड़ती है जिसे सप्तमातृका कहते हैं। अब इस पात्र में सात तरह के अनाज और जौ के बीज बोए जाते हैं। इसके बाद मिट्टी को भिगोने के लिए इसमें पानी का छिड़काव करना पड़ता है। जब तक मिट्टी गीली न हो जाए तब तक पानी का छिड़काव करते रहें।
*अब इसे अलग रख दें और गंगाजल से भरा एक कलश लें। जल में कुछ अक्षत डालें, दूब के साथ पांच प्रकार की मुद्रा डालें। अब कलश के ऊपर आम्रपल्लव लगाएं और उसके ऊपर लाल चुनरी में लिपटा नारियल रखें। अब कलश को मिट्टी के पात्र के बीचों बीच रख दें।
*अब प्रथम शैलपुत्री मंत्र ऊं देवी शैलपुत्र्ये स्वाहा का 108 बार जाप करके मां को जगायें
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्।।
*इसके पश्चात दुर्गा आरती और शैलपुत्री आरती पढ़ें।
*अब पंचोपचार पूजा करें। इस पूजा में पांच चीजें लगती हैं। घी का दिया, अगरबत्ती, फूल, तेज खुशबू वाली सुगंधी सबसे अंत में नैवेद्य दिया जाता है।
मां शैलपुत्री की पूजा से मिलने वाले लाभ –
ग्रह चन्द्रमा के बुरे असर से बचा जा सकता है,
सुख, शाति एवं संपूर्ण रूप से खुशी मिलती है,
रोग तथा नकारात्मक शक्तियों को दूर रखता है,
विवाहित जोड़े के बीच प्रेम के बंधन को मजबूत करता है,
करियर और बिजनेस में स्थायित्व और सफलता देता है।
संस्कृत में मां शैलपुत्री के मंत्र –
ऊं देवी शैलपुत्र्ये नमः।।
प्रार्थना
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
वृषारूढ़ं शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
स्तुति
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
ध्यान
वन्दे वांछितलाभाय चन्द्रार्धकृत शेखराम्।
वृषरूढ़ं शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम।।
पूणेन्दु निभाम् गौरी मूलाधार स्थिताम् प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता।।
प्रफुल्ल वन्दना पल्लवाधरां कांत कपोलाम् तुगम् कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां स्नेहमुखी क्षीणमध्यां नितम्बनीम्।।
स्तोत्र
प्रथम दुर्गा त्वंहि परमानन्द प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्।।
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह विनाशिनीं।
मुक्ति भुक्ति दायिनी शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्।।
कवच
ऊंकारः में शिरः पातु मूलाधार निवासिनी।
हिंकारः पातु ललाटे बीजरूपा महेश्वरी।।
श्रींकार पातु वदने लावण्या महेश्वरी।
हुंकार पातु हृदयम् तारिणी शक्ति स्वघृत।
फटकार् पातु सर्वाङ्गे सर्व सिद्धि फल प्रदा।।
आरती
शैलपुत्री मां बैल असवार।। करें देवता जय जय कार।।
शिव – शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने न जानी।।
पार्वती तू उमा कहलावें। जो तुझे सुमिरे सो सुख पावे।।
रिद्धि सिद्धि परवान करें तू। दया करें धनवान करें तू।।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती जिसने तेरी उतारी।।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुःख तकलीफ मिटा दो।।
घी का सुन्दर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।।
श्रद्धा भाव से मंत्र जपायें। प्रेम सहित फिर शीश झुकायें।।
जय गिरराज किशोरी अम्बे। शिव मुख चन्द्र चकोरी अम्बे।।
मनोकामना पूर्ण कर दो। चमन सदा सुख सम्पत्ति भर दो।।
मां शैलपुत्री के  तीन मंदिर हैं-
*शैलपुत्री का मंदिर उत्तर प्रदेश के मरहिया घाट, वाराणसी में है।
*महाराष्ट्र के वसई विरार क्षेत्र में मुंबई अहमदाबाद हाईवे के हेदावदे गांव में हेदावदे महालक्ष्मी स्थित है।
*जम्मू कश्मीर के बारामूला में शैलपुत्री मंदिर है।


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