ईस्टर का इतिहास

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जयति भट्टाचार्य।

2000 साल पहले यरूसलम में, ईसा मसीह की मृत्यु एवं पुनर्जीवित हो उठने की घटना की स्मृति में ईस्टर मनाया जाता है। ईसा को एक शुक्रवार को सूली पर चढ़ाया गया था और उसके बाद वाले रविवार को वह पुनर्जीवित हो गए। ईसाइयों के लिए ईसा मसीह का पुनर्जीवित होना उनकी आस्था का आधार है। बाइबल में ईसा मसीह के नजदीकी शिष्य पीटर के शब्द हैं जिसने ईसा मसीह के पुनर्जीवन की प्रक्रिया को देखा था। उसने भीड़ से कहा था “तुम लोगों ने उसे मरने के लिए सौंप दिया और पिलातुस को भी अस्वीकार किया। तुम लोगों ने जीवन के रचयिता को मार डाला लेकिन भगवान ने उसे बचा लिया। हम सब इसके गवाह हैं।“
ईसा मसीह के पुनर्जीवित होने की घटना रविवार को घटी सी इसलिए ईसाई समुदाय के लोगों ने पहले रविवार को इकट्ठे होकर प्रार्थना करना और ईसा मसीह की पूजा करनी शुरू की। ईसा मसीह के पुनर्जीवित होने के दिन के तौर पर ईस्टर संडे मनाने का चलन बहुत बाद में शुरू हुआ और विभिन्न देशों के ईसाई इस दिन को विभिन्न तरीकों से विभिन्न समय पर मनाते हैं।

चर्च इस दिन ईसा मसीह को पुनर्जीवित करने के लिए भगवान को धन्यवाद देते हैं और ईसाई शहीदों को याद करते हैं जिन्होंने अपने धार्मिक विश्वास से समझौता करने से अच्छा मौत को गले लगाना समझा। कुछ पारंपरिक प्रथाओं में इस दिन को नए ईसाई बनाने के दिन के रूप में भी मनाया जाता है। यह समारोह सामान्यतः सफेद कपड़ों में होता है।
ईसा मसीह की जन्म तिथि किसी को मालूम नहीं। यह क्रिसमस के दिन मनाया जाता है।  अधिकतर ईसाई परंपराओं के अनुसार यह 25 दिसंबर को ही होता है।

कुछ रूढ़िवादी ईसाई इसे 7 जनवरी को मनाते हैं क्योंकि वह दूसरा कैलेंडर मानते हैं। इसी तरह ईसा मसीह की मृत्यु एवं पुनर्जीवित होने का भी कोई लिखित प्रमाण नहीं है। इसलिए ईटर का दिन भी तय नहीं है। यह 22 मार्च से 25 अप्रैल के बीच किसी भी समय हो सकता है। यह इसलिए होता है क्योंकि ईसा मसीह की मृत्यु के समय यहूदी त्यौहार फसह हो रहा था। ईस्टर को फसह से आज भी जोड़ा जाता है। फसह का समय चन्द्रमा के चक्र पर निर्भर है। 4वीं शताब्दी में चर्च के मार्ग दर्शक इस बात पर सहमत हुए कि बसंत विषुभ के पश्चात पूर्णिमा के बाद पड़ने वाले प्रथम रविवार को हमेशा ईस्टर मनाया जाएगा।  


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