कोरोना महामारी के चलते सब कुछ बदल रहा नहीं बदल रही तो राजनीति

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विश्वव्यापी कोरोना महामारी के चलते पूरी दुनिया में उथल-पुथल मची है। अधिकांश क्षेत्रों में सकारात्मक वातावरण बनने पहल शुरू हो गई है। पिछली गलतियों को सुधारने के बारे में सोचा जा रहा है लेकिन यदि नहीं बदल रही वह है राजनीति। राजनैतिक ऐसे कष्ट दाई समय को भी अपने लिए अवसर और विरोधियों को निपटाने के लिए मौके के रूप में देख रहे है।
दरअसल पूरी दुनिया इस समय कोरोना महामारी से जूझ रही है तो विभिन्न देशों के बीच प्रतिस्पर्धा भी जारी है। एक दूसरे पर दोषारोपण का दौर चल रहा है उन देशों में यह प्रतिस्पर्धा कुछ ज्यादा ही चल रही है जहां कोरोना महामारी कहर बनकर टूटी है। इतनी भ्रामक जानकारी जा रही हैं की आम आदमी भ्रमित हो गया है, भयभीत हो रहा है और उसे भविष्य अंधकार में दिखने लगा है इस समय सबसे बड़ी जरूरत लोगों को दिशा देने की है और जो गलतियां दुनिया कर चुकी है उन्हें सुधारने की है अन्यथा।

प्रकृति ने दिखा ही दिया है की उसके पास सब कुछ ठीक करने की क्षमता है ऐसी परिस्थिति है फिर कभी दुनिया में ना बने इसके लिए सभी देशों को प्रतिस्पर्धा छोड़कर प्रकृति को सहेजने की उपाय करना चाहिए जल संरक्षण की महती आवश्यकता है और शुद्ध हवा जीने के लिए जरूरी है लेकिन दुनिया के अधिकांश देश विकास की अंधी दौड़ शामिल होकर इंसान की जरूरी चीजों को नष्ट कर रहे अणु परमाणु बम बना रहे लेकिन इस समय कोई भी आविष्कार कोई भी हथियार और कोई भी शक्ति काम नहीं आ रही किसी भी क्षेत्र की शक्तिशाली व्यक्ति हो घर के अंदर रहने को मजबूर हो गया है।

बहरहाल अंतरराष्ट्रीय राजनीति की तरह ही राष्ट्रीय स्तर पर प्रादेशिक स्तर पर और स्थानीय स्तर पर भी राजनीतिज्ञों को अभी भी अपने अपने दल और सत्ता की चिंता सता रही है। कोरोना महामारी से जूझ रहे मरीजों से ज्यादा चिंता इस बात की है कि उनके अपने समर्थक कैसे सत्ता से जुड़े है। जबकि इस समय सबसे बड़ी जरूरत सरकार को उन लोगों को आगे करना चाहिए जो विभिन्न विषयों के विशेषज्ञ हैं, जिनकी समाज सेवा में रुचि है, जिनकी पर्यावरण को बचाने में रुचि है, जिनकी जल संवर्धन में रुचि है, जो साफ सफाई को महत्व देते हैं, जिनकी प्राकृतिक रूप से जीवन जीने की पद्धति है। और राजनीति में रुचि रखने वाले ऐसे नेताओं को सरकार में शामिल करना चाहिए जिनकी साफ-सुथरी छवि है जो जनहित के कार्यों को प्राथमिकता देते हैं जिनकी दक्षता विपरीत परिस्थितियों में प्रमाणित हो चुकी है, जैसा प्रकृति में न्याय व्यवस्था है वैसी ही न्याय व्यवस्था की जरूरत अब सरकार में है। यदि अब भी राजनीतिज्ञ नहीं सुधरे तो कब सुधरेंगे क्योंकि ऐसा भी हो सकता है फिर कभी सुधरने का मौका ही ना मिले। अभी प्रकृति ने मौका दिया है उसने कुछ प्रयोग भी करके दिखा दिए हैं जैसे आकाश साफ सुथरा है, हवा में प्रदूषण कम हो गया है, गंगा यमुना जैसी नदी साफ होने लगी है, लोग कम से कम जरूरतों में जीवन जीना सीख गए हैं, ऐसे ही राजनीति मैं भी साफ-सुथरी होनी चाहिए।

कुल मिलाकर कोरोना महामारी के चलते जहां अधिकांश क्षेत्रों में दुनिया में सकारात्मक बदलाव देखे जा रहे हैं वहीं राजनीति के क्षेत्र में अभी तक ऐसे बदलाव या सुधार दिखाई नहीं दे रहे और यदि राजनीति अभी नहीं सुधरी तो कभी नहीं सुधरेगी अभी मौका है जब जात पात से ऊपर उठकर केवल और केवल न्याय धर्म पर सरकार को निर्णय लेना चाहिए।

देवदत्त दुबे

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