विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस : अखंड भारत का संकल्प

Share:

✍️ डॉ अजय ओझा, महासचिव – मगध फाउण्डेशन।

साभार: डॉ रामकिशोर उपाध्याय।

अब प्रत्येक वर्ष भारत में 14 अगस्त को ‘विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस’ के रूप में मनाया जायेगा। इससे पहले भी कुछ लोग इसे ‘अखंड भारत संकल्प दिवस’ के रूप में स्मरण करते आये हैं। कुछ इस पर मौन रहते हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसके विरोध में वक्तव्य देते रहते हैं। विभाजन की विभीषिका और अखंड भारत के संकल्प पर चर्चा करने से पहले कांग्रेस कार्यकारिणी समिति की उस बैठक के एक दृश्य को स्मरण कर लेते हैं जिसमें कांग्रेस ने बंटवारे को अंतिम रूप से स्वीकार कर लिया था। इस बैठक में डॉ. राममनोहर लोहिया भी उपस्थित थे। लोहिया के शब्दों में ‘इसके पहले कि गांधीजी अपनी बात पूरी कर पाते, श्री नेहरू ने तनिक आवेश में आकर बीच में उन्हें टोका और कहा कि उनको वे पूरी जानकारी बराबर देते रहे हैं। महात्मा गांधी के दुबारा दुहराने पर कि उन्हें विभाजन की योजना के बारे में जानकारी नहीं थी, श्री नेहरू ने अपनी पहले कही बात को थोड़ा सा बदल दिया। उन्होंने कहा कि नोआखाली इतनी दूर है और कि वे उस योजना के बारे में विस्तार से न बता सके होंगे। उन्होंने गांधीजी को विभाजन के बारे में मोटे तौर पर लिखा था।’ समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया ने इस संबंध में अपनी किताब ‘भारत विभाजन के गुनहगार’ में विस्तार से चर्चा की है। लोहिया ने नेहरू को किसी लालच के वशीभूत होकर विभाजन को स्वीकार करने वाले नेता के रूप में भी निरूपित किया है। वह लालच क्या था ? मेरा मानना है कि बंटवारे का पूरा दोष अकेले एक आदमी या दल के लालच को दे देना पर्याप्त नहीं है। ऐसा करना उन इस्लामिक कट्टर पंथियों के कुकर्मों को छिपाना होगा जिन्होंने इस लालच का भरपूर लाभ उठाया। लोहिया का स्पष्ट मत है कि विभाजन की योजना को लेकर गांधी को पूरी जानकारी नहीं दी गई। उन्हें अंधेरे में रखा गया और इस मामले में कहीं कोई गड़बड़ घोटाला जरूर था।

ADVT.

बहरहाल, जो भी हो। किंतु एक बात की चर्चा करना समीचीन होगा कि गांधी और लोहिया दोनों ही अखंड भारत के प्रबल समर्थक थे। दोनों यह मानते थे कि आगे चलकर भारत और पाकिस्तान एक हो जाएंगे। ये लंबे समय तक अलग-अलग नहीं रह पाएंगे। लोहिया तो उन दिनों अपने भाषणों में जोर-जोर से कहा करते थे कि यह बंटवारा अस्थाई है। भारत और पाकिस्तान के मध्य की सीमा रेखा कोई समुद्र नहीं है। छोटे-मोटे नदी-नाले हैं। यह आसानी से पाट दिए जाएंगे। किंतु कितने दुर्भाग्य की बात है कि आज गांधी के कथित चेले अखंड भारत शब्द सुनते ही तिलमिला जाते हैं। लोहिया के समाजवादी चेले अखंड भारत के संकल्प का स्मरण करने वालों को सांप्रदायिक कहकर अपना जानी दुश्मन मानने लगते हैं। गांधी और लोहिया के कथित चेले आजकल मोहम्मद अली जिन्ना का गुणगान करने लगे हैं। क्या यह उचित है ? क्या लोहिया के समाजवादी चेलों (अखिलेश, तेजस्वी और नीतीश बाबू सहित सभी ) का यह कर्तव्य नहीं है कि वे डॉ. राममनोहर लोहिया के अखंड भारत के सपने को पूरा करने के लिए प्रयास करें। यदि उनकी कोई विवशता है तो कम से कम इस विचार का विरोध तो न करें। कितने दुख की बात है कि जिस विभाजन की विभीषिका का नाम सुनते ही रूह कांप जाती है, जिस विभाजन ने लाखों लोगों से उनका घर-परिवार और मातृभूमि छीन ली, आज गांधी और लोहिया के कथित चेले संगठित रूप से सत्ता सुख भोगने के लिए वैसे ही विभाजन की दिशा में बढ़ते जा रहे हैं। वे मुसलमानों का वोट प्राप्त करने के लिए उनकी अनुचित मांगों का भी खुलकर समर्थन करने लगे हैं। वोट के लिये लोगों का जाति, धर्म और मजहब के नाम पर ध्रुवीकरण करना अक्षम्य अपराध है। अतीत की इन्हीं गलतियों की वजह से देश खण्डित हुआ। अगर हमें अखण्ड भारत के स्वप्न को साकार करना है तो हमें संविधान में संशोधन कर जाति, धर्म और मजहब के आधार पर वोट मांगने पर यथाशीघ्र रोक लगानी होगी।

ADVT.

कभी नहीं भूली जा सकती वह रात

विभाजन की घटना को याद किया जाए तो 14 अगस्त 1947 का दिन भारत के लिए इतिहास का एक गहरा जख्म है। वह जख्म तो आज तक ताजा है और भरा नहीं है। यह वो तारीख है, जब देश का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान एक अलग देश बना। बंटवारे की शर्त पर ही भारत को अंग्रेजों से आजादी मिली।

ADVT.

भारत-पाक विभाजन ने भारतीय उप महाद्वीप के दो टुकड़े कर दिए। दोनों तरफ पाकिस्तान (पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान) और बीच में भारत। इस बंटवारे से बंगाल भी प्रभावित हुआ. पश्चिम बंगाल वाला हिस्सा भारत का रह गया और बाकी पूर्वी पाकिस्तान। पूर्वी पाकिस्तान को भारत ने 1971 में बांग्लादेश के रूप में स्वतंत्र राष्ट्र बनाया।

ADVT.

दिलों और भावनाओं का भी बंटवारा

देश का बंटवारा हुआ लेकिन शांतिपूर्ण तरीके से नहीं. इस ऐतिहासिक तारीख ने कई खूनी मंजर देखे. भारत का विभाजन खूनी घटनाक्रम का एक दस्तावेज बन गया जिसे हमेशा उलटना-पलटना पड़ता है. दोनों देशों के बीच बंटवारे की लकीर खिंचते ही रातों-रात अपने ही देश में लाखों लोग बेगाने और बेघर हो गए. धर्म-मजहब के आधार पर न चाहते हुए भी लाखों लोग इस पार से उस पार जाने को मजबूर हुए.
इस अदला-बदली में दंगे भड़के, कत्लेआम हुए. जो लोग बच गए, उनमें लाखों लोगों की जिंदगी बर्बाद हो गई. भारत-पाक विभाजन की यह घटना सदी की सबसे बड़ी त्रासदी में बदल गई. यह केवल किसी देश की भौगोलिक सीमा का बंटवारा नहीं बल्कि लोगों के दिलों और भावनाओं का भी बंटवारा था. बंटवारे का यह दर्द गाहे-बगाहे हरा होता रहता है. विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस इसी दर्द को याद करने का दिन है. आज केवल हिन्दुस्तान ही नहीं वरन पाकिस्तान, बांग्लादेश, वर्मा, अफगानिस्तान तथा श्रीलंका में भी रहनेवाले अधिकांश लोग भारत को अपनी पुण्यभूमि मानते हैं। उन्हें विश्वास है कि आज नहीं तो कल भारत पुनः अखण्ड देश के रूप में स्थापित होगा।

अखंड भारत एक सांस्कृतिक राष्ट्र है, जिसमें भारत के सभी धार्मिक और सांस्कृतिक चिह्न शामिल हैं। माता हिंगलाज, ननकाना साहिब से लेकर मानसरोवर तक एक ऐसा भू-भाग जहां बैठकर हमारे ऋषि, मुनियों और संतों ने विश्व कल्याण का मार्ग दिखाया, वहां रहने वाले लोग भी चाहे वे किसी भी मत-पंथ में दीक्षित हों, किसी भी राजनीतिक शासन से शासित हों, उन अमर संदेशों के साथ मानव कल्याण के पथ पर चलें, यही तो हमारी कामना है। और इस कामना को पूर्ण करने के लिए पहले हमें अपने देशवासियों को इसके लिए तैयार करना होगा कि वे अपने सांस्कृतिक भारत को ठीक से पहचानें ,उस पर गर्व करें फिर विश्व बंधुत्व की बात करें।

देश स्वाधीनता का अमृत महोत्सव मना रहा है। किन्तु आज एक पीढ़ी ऐसी भी है जिसने विभाजन की विभीषिका को झेला है। प्रत्येक सजग राष्ट्र अपने इतिहास से शिक्षा लेकर पुरानी भूलों को फिर से न दुहराने का प्रबंध करता है। किन्तु क्या भारत ने अपने इतिहास से कोई शिक्षा ग्रहण की है ? क्या हमारे देश ने पिछले पचहत्तर वर्षों में ऐसी कोई तैयारी की है जिससे यह आश्वस्ति मिल सके कि विभाजन की विभीषका की पुनरावृत्ति नहीं होगी ? कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाना यकीनन इस दिशा में एक बड़ा कदम है किन्तु अभी ऐसे कितने ही साहसिक निर्णय हैं, जो लिए जाने हैं। क्या देश ऐसे कठोर निर्णयों के लिए तैयार है ? भारत को पुनः खंडित होने से रोकने का उपाय भी अखंड भारत की संकल्पना में ही अन्तर्निहित हैं। अतः अखंड भारत के विरोध का एक अर्थ भारत को फिर से बांटने, खंडित करने का समर्थन भी है। क्या किसी ने कल्पना की थी कि बीजापुर और दिल्ली के क्रूर और अत्यंत शक्तिशाली इस्लामिक सत्ताओं को चुनौती देते हुए शिवाजी महाराज एक हिन्दू-मराठा साम्राज्य स्थपित कर सकेंगे ? किन्तु ऐसा हुआ। यहूदियों ने संकल्प किया तो सदियों संघर्ष के पश्चात उन्हें इजराइल मिला। अतः लगभग पांच हजार वर्ष से जम्बू द्वीपे भारत खंडे का …का नित्य संकल्प दुहराने वाले भारतवासियों को भी एक दिन उनका अखंड भारत मिलेगा ही, ऐसी कामना की जानी चाहिए। अखंड भारत विश्व बंधुत्व वाली प्राचीनतम संस्कृति का प्रतीक है। यह हमें सदैव याद रखना है!

भारत वैदिक काल से ही अखण्ड भारत के रूप में स्थापित रहा है। रामायणकालीन तथा महाभारतकालीन भारत की प्रभुता संपूर्ण विश्व में स्थापित थी। मगधकालीन अखण्ड भारत विश्व का सबसे प्रभावशाली साम्राज्य था। आचार्य चाणक्य और चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा स्थापित मगध की गरिमा सम्राट अशोक के काल में दिग्दिगांतर में फैली हुई थी। मगध फाउण्डेशन का लक्ष्य उसी गरिमा को पुनः स्थापित करना है !

       *सशक्त मगध !   अखण्ड भारत !!*

Share: