कलम का दर्द
जतिन कुमार चतुर्वेदी ।
यह सही है कि आज की पत्रकारिता और पत्रकारों की दुनिया में सबकुछ सही नहीं है लेकिन सारे लोग गलत हैं ऐसा कहना भी सही नहीं है। एक पत्रकार युद्ध के मैदान से लेकर विपरीत परिस्थितियों में भी सूचनायें मुहैया कराता है और इसके लिए मात्र एक जज्बा होता है उसके पास।

ख़बरों को ढूंढ़ कर जनता के सामने लाने का वो जज्बा और हौसला जो एक पत्रकार को विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में भी उसे अपने फर्ज को निभाने के लिए तैयार करता और साहस देता है। तभी तो सरकार के लाख दमन के बावजूद भी कितने ही पत्रकारों ने अपने जान पर खेलकर जनता के हितों से जुड़ी सूचनायें उसके सामने रख कर अपने पेशे को आम-जनों में पहचान दिलाई। आज भी किसी को अगर कोई उम्मीद शेष होती है तो वह अंतत: पत्रकार के सामने ही अपना दुखड़ा रोता है क्योंकि उसे विश्वास है कि एक पत्रकार ही उसके बातों को आमजनों तक पहुंचा सकता है और उसे उसके कष्टों से मुक्ति दिला सकता है। पुरानी कहावत है कि एक सड़ी मछली पूरे तालाब को गंदा कर देती है और यह सही भी है लेकिन कभी भी हमें सिर्फ एक पक्ष को नहीं देखना चाहिए। न्याय का तकाजा होता है कि हम दोनों पक्षों को बराबर का मौका दें और इसके लिए धैर्य की जरूरत होती है। कानून में मशहूर कहावत है – भले ही दस दोषी छूट जाये लेकिन एक निर्दोष को सजा ना मिले और यही होना भी चाहिए, लेकिन इन दिनों जो देखा जा रहा है वो बिल्कुल इसके उलट देखा जा रहा है। औऱ वास्तविकता से उसका कोई लेना-देना नहीं है।