राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस पर ऑनलाइन सेमिनार, विषय : परंपरा और प्रयोग

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मनीष कपूर।

दिनांक 12 अप्रैल 2021 को राष्ट्रीय नुक्कड़ नाटक दिवस के मौके पर प्रयागराज की बहुचर्चित नाट्य संस्थान नुक्कड नाट्य अभिनय संस्थान ने कोविड 19 को ध्यान में रखते हुए ऑनलाइन संगोष्ठी ‘नुक्कड़ नाटक: परंपरा और प्रयोग’ विषय पर आयोजन किया।

संगोष्ठी में शहर के युवा रंगकर्मी एवं संस्थान के सभी नुक्कड़ नाटक के कलाकार जुड़े रहे।

संगोष्ठी की शुरुआत संस्था के सचिव कृष्ण कुमार मौर्य सभी का स्वागत करते हुए किया।

वक्ता युवा रंगकर्मी धीरज अग्रवाल ने कहा आज राष्ट्रीय नुक्कड़ नाट्य दिवस के अवसर पर एक मौका देता है हमें मुड़ कर देखने का जब प्रोफेशनल थिएटर की शुरुआत हमलोगों ने बड़े उत्साह से शुरू की थी!

उस समय और आज भी नुक्कड़ नाटक नए-पुराने रंगकर्मियों के लिए वित्तीय साधन जुटाने के लिए प्राथमिक ही नही सामाजिक परिवर्तन का जरिया है!

नित नए विषयों से समाज को जागरूक करने के दायित्व के निर्वहन में नुक्कड़ नाट्य की अपनी उपयोगिता है। रँगान्दोलनो के साथ ही साथ सामाजिक आंदोलनों के परिप्रेक्ष्य में नुक्कड़ नाट्य की और नाट्यसंघों की अपनी भूमिका रही है चाहे वो इप्टा हो या नुक्कड नाट्य अभिनय संस्थान।

परम्परा और प्रयोग की बात करें तो मेरा मानना है कि अनादि काल से रंगशालाओं के पूर्व भी रंगकर्म अगर जीवंत रहा होगा तो वो शहर-कस्बा-मुहल्ला आदि जगहों पर किसी नुक्कड़ पर ही लोक के द्वारा, लोक के मध्य, लोकाचारों से लैस नुक्कड़-नाटक ही रहा होगा। अपनी बातों को कलात्मक और रचनात्मक तरीके से प्रेषित करने के लिए नित नए नूतन प्रयोग नुक्कड़ से ज्यादा शायद ही किसी शैली में होता हो। एक ही कलाकार के कई-कई किरदार निभाने, प्रॉप्स के नाम पर खुद ही हैंडपम्प तक बन जाने वाले कलाकार आपको किसी नुक्कड़ में सहज ही दिख जाएंगे। ग्रोटौव्स्की के poor थिएटर की अवधारणा भी नुक्कड़ नाटक को सशक्त करती है।

आज सरकारी महकमों की तमाम योजनाओं अभियानों के लिए और जन प्रचार के लिए नुक्कड़ नाटक जैसी तीव्र सन्देश वाहक शैली का सदुपयोग किया जाता है। जिसमें चौपाल, खेत, बाज़ार, मंडी, चबूतरे कोई भी स्थान रंगमंच हो जाता है। कहने को भीड़ होती है मगर दर्शक दीर्घा का कोई आकार-प्रकार निश्चित नहीं होता कला-कलाकार-कला प्रेमी सभी आमने-सामने होते हैं।

भारत मे अलकाज़ी से लेकर कामकाजी तबके तक के तमाम रंगकर्मी नुक्कड़ नाट्य मंच के माध्यम से जनता के बीच उनके सरोकारों के लिए जुड़े रहे हैं। किसी भी परिवेश में बिना किसी लग लपेट के और सीधे लोकमानस से संवाद स्थापित करने का सशक्त माध्यम है नुक्कड़ नाटक! प्रेक्षागृह की सीमितता और खर्च आदि से रहित नुक्कड़ नाट्य की उपयोगिता रंगकर्म जैसी वित्तीय रूप से उपेक्षित उपक्रम में रंगकर्मी के सामाजिक समर्पण-उत्तरदायित्व जैसी सुकोमल भावनाओं को अभिव्यक्ति का स्थान देता है।

वक्ता संतोष कुमार गुप्ता ने इस विषय पर बात करते हुए कहा की नुक्कड़ नाटक दुनिया भर में अलग-अलग विषयों पर अलग-अलग आंदोलनों के लिए प्रयोग किए जाते हैं
कहने का अर्थ सिर्फ इतना सा मतलब है अन्य कलाएं सिर्फ रंगशाला अभी तक ही सीमित रह गई और नुक्कड़ नाटक सड़कों पर आकर भी अपने उद्देश्यों को नहीं भूला।

वही युवा रंगकर्मी जतिन कुमार ने अपने नुक्कड़ सफर को साझा किया और कहा, नुक्कड़ नाटक बिना किसी लाग लपेट सरल व सहज रूप से अपने संदेशों का प्रसारण करता है और आम जनता की भाषा में आम जनता के लिए काम करता है और यही नुक्कड़ नाटक का मूल उद्देश्य है।

संस्था के उप सचिव देवेंद्र राजभर ने संस्थान के सफर को सभी श्रोताओं एवं वक्ताओं के सामने साझा किया और कहा कि आने वाले समय में संस्थान सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र एवं स्कूलों की ओर रुक कर रहा है जहां पर इस कला के माध्यम से मानसिक चिकित्सा एवं स्कूलों में शिक्षण कार्य में कार्य करेगा।

ऑनलाइन संगोष्ठी में जुड़े कलाकारों ने नुक्कड़ नाटक के जनक सफदर हाशमी की लिखी कविता किताबे बातें करती है का पाठ भी किया और नुक्कड़ नाटक के जनक सफदर हाशमी को याद करते हुए उनके नुक्कड़ नाटकों के योगदान पर बात किया।

संस्था के निदेशक सचिव कृष्ण कुमार मौर्य ने सभीङतत कलाकारों का धन्यवाद ज्ञापन किया और कहा महान नाटककार एवं दार्शनिक ब्रेख्त कहते है – नुक्कड़ नाटक बहुत पुरानी विधा है , इसकी उत्पत्ति, इसका उद्देश्य एवं लक्ष्य घरेलू है।

साथ ही साथ आज जिस हम नुक्कड़ नाटक को जानते हैं उसका इतिहास स्वतंत्रता संग्राम के साथ का है । इसमें अंग्रेजी सत्ता के खिलाफ नुक्कड़ नाटकों प्रभात फेरी हो, के माध्यम से मुखर होकर बात की जाती थी। नुक्कड़ नाटक की जड़े उतनी ही गहरी है जितनी कि हमारी सभ्यता की जुड़े।

इस सेमिनार में संस्था के देवेंद्र राजभर शिवेश बघेल मोहम्मद करीम रोशनी मौर्या कुमुद कनौजिया हर्ष राजपाल भारत भूषण कुशवाहा हेमलता साहू अरविंद यादव साक्षी यादव धीरज अग्रवाल जतिन कुमार आनंद प्रकाश शर्मा अभिषेक खत्री अभिषेक मिश्रा इत्यादि कलाकार जुड़े रहे।


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