अब इस खुले खुले से “बंद” के क्या मायने?

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करोना कालखंड के पांचवे अध्याय का दूसरा दिन, दो जून की रोटी के नाम

१३८ करोड़ भेड़ बकरियों का देश, जिसमे दुनिया के सैकड़ों छोटे छोटे देश बसते हैं, लेकिन यहाँ उतने ही स्वयंभवु राष्ट्रपिता और राष्ट्रमाताएँ भी हैं, जो इनपर राज करती हैं, और अपने फर्जी छद्मनामीय उपनामों से और बाकायदा अवैध राजपुत्रों को “गरीबाई” की ट्रेनिंग देकर, उन्हें इन भेड़ों पर राजपाट करना भी सिखवाती हैं, इसलिए इन भेड़ों को वे अपने मनमुताबिक़ हर कहीं हाँक ले जाती हैं, सत्तर साल से ये राजपुरुष इनका ऊन उधेड़, इनकी गरीबी दूर करने का ढोंग कर रहे हैं, लेकिन नतीजे वही हैं आज तक, ढ़ाक के तीन पात वाले?
ऐसा नहीं है कि यह भेड़ें सिर्फ हिन्दुस्तान में ही हैं, जिस तरह से, यहाँ की भेड़ों से दिल्ली जलवाया गया, श्रमिकों को भगवाया गया, उसी तरह आज अमेरिकाई विपक्षी, वहां की भेड़ों से अमेरिका जलवा रहे हैं, अराजक तंत्र की कार्यप्रणाली पूरे विश्व में एक सी है, राष्ट्रभक्त कर्त्तव्यपरायण सरकारों को अस्थिर करना, लूटपाट आगजनी करवाना और मुफ्तखोरी को बढ़ावा देना। इनके पोषक पिताओं की चरणवन्दक मण्डली, बहुस्तरीय कार्यकर्ताओं की फौज के जरिये, लगातार इन्हे टास्क देती रहती है, और अपने वित्तपोषक लेखकों, पत्तलकारों के जरिये, उन खबरों को सतत प्रायोजित करती है, जिनसे अराजकता फैले या नेता माफिया लुटेरों के गठजोड़ों को महिमांडित किया जाता रहे, ताकि इन भेड़ बकरियों तक सच न पहुँच सके।
और आज जिस तरह भोपाल की चंद लेखनियों ने, अपनी सारी मर्यादाएं त्याग कर, अपनी लेखनी में मरीजों की लूट के हिस्से की स्याही से दरबार चालीसाई कलमें गढ़ी हैं, वो दस्तावेज उनकी आत्माओं को रातबेरात कचोटेँगे तो जरूर, क्योंकि सोते समय आपकी इन्द्रियां यक़ीनन अपनी दिनभर की गलतियों पर शर्मिंदा होती हैं और उनकी साफगोई आपकी निद्रा हराम करती है, वहीँ, अंत समय, मरते हुए शरीर से निकलती हुई आत्मा, सारा हिसाब किताब करती हुई, आपको अपने अगले जनम का दर्शन कराती है।
और इसीलिए अब जब सिस्टम थक रहा है और ईमानदार भेड़ें, घरों में सिमटी, सड़कों पर भीड़ देख, दीवारों से अपने सर टकरा रही हैं, तो उससे तो अब यही बेहतर है कि कागजों पर चस्पा लॉकडाउन, सरकार खुद ही समेट कर, अपनी जेब में खोंस ले, और जैसे नॉर्मल देश मे सब खुला रहता है, वापिस वैसे ही, सब कुछ चलने दे। जिसे कोरोना के लक्षण दिखें, उसका इलाज हो, और लोग खुद जागरूक रह कर सावधानियां बरतें और अपना इलाज करवायें।
कब तक 138 करोड़ की भीड़ को, कोई प्रशासन या पुलिस भेड़-बकरियों की तरह हांक सकती है? समाज को योगदान देने वाले लोगों के टैक्स और अनुदान का पैसा, इंफ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, सड़को, हॉस्पिटल और दूसरे रोजगार देने वाले कामों में इस्तेमाल किया जाये, जो कि एक सक्षम सरकार को करना ही चाहिए, नाकि चहेते अस्पतालों को खैरात बाँट कर देते रहना चाहिए।
जनता के टेक्स की गाढ़ी कमाई पर, महंगें होटलों में क़ुआरन्टाइन शराब पार्टियां मन रही हैं, लोग यूँ फरमाइशें कर रहे हैं, जैसे सरकारी मेहमान हैं, मुफ्त ट्रेन में बारातियों जैसे नखरे किये जा रहे हैं, अगर यूँ ही चलता रहा तो इन भेड़ों के राजपुरुष और राजमाताएँ इन्हे मुफ्तखोरी ना मिलने पर जगह जगह लूट तोड़फोड़ के फरमान जारी करवा देंगीं, और इनकी बिकाऊ कलमें उसे जस्टिफाई करने बेठ जाएंगी, कि भूखे लोग क्या करेंगे? छोड़ दीजिए सबको, जो पैदा हुआ है उसे खुद अपना और अपनी नस्लों का पेट भरना, और खुद को बचाना आना चाहिए।
जब सरकारें नही थी तो मनुष्य जंगल मे जानवरो के बीच भी खुद को जिंदा रख पाया था क्योकि वो आत्मनिर्भर बनना चाहता था। जैसे-जैसे सरकारों ने वोटबैंक की घटिया राजनीति के स्वान पर सवार होकर, फ्री चीजें बांटना शुरू की, वैसे वैसे इन मुफ्तखोरों ने भीख को अपना अधिकार समझ लिया। जब नब्बे प्रतिशत लोग, दस प्रतिशत कर्मठ लोगों पर सवारी करेंगे, परजीवी की तरह, तो कौन सी अर्थव्यवस्था कब तक साथ देगी?
सरकार ने आपको जनधन अकाउंट व राशन कार्ड बनाने के लिए कहा था, उसके साथ आधार लिंक करने को कहा था, आपने विदेशों में बैठे अपने आकाओं के इशारे पर ऐसा होने नहीं दिया और निजता के अधिकार की दुहाई देकर काम रोक दिया, अब आप चाहते हैं कि सरकार सीधे आपके खाते में पैसे भेजें, राशन दे? आपको जनसंख्या का रजिस्टर पूर्ण करने के लिए कहा गया ताकि सबकी जरूरतों का आकलन होकर, विरोधियों, विदेशियों को देश से निकाला जा सके, बाकी के लिए रोजगार की, आवास की व्यवस्था की जा सके, लेकिन आप उसमें सहयोग करने के बजाय, सरकार को दोष दे रहे हैं। इसलिए अगर आप इंसान हैं, तो इंसानों जैसा बर्ताव करना भी सीखिए, स्वाभिमान और मेहनत ईमानदारी की रोटी, इसकी सबसे पहली पहचान है, जो उसे यक़ीनन सुकून की नींद सुलाती है और जानवरों से श्रेष्ठ बनाती है।
मिलते हैं कल,
तब तक जय श्रीराम ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
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