राष्ट्रपति श्रीमति द्रोपती मुर्मू के बचपन का संघर्ष
समीर रंजन नायक।
इसमे कोई शक नहीं है कि उन्होंने पूरी जीवन एक अकेले, निडर भाव से और ईश्वर पर भरोसा कर के डट कर पार किया ।
अपने जीवन मे उन्होंन पने प्रिय जो को खो दिया। उनका पति और छोटा बेटा अल्प आयु मे अकस्मात चल बसे।
व्यापक आर्थिक तंगी, सामाजिक तुष्टिकरण ओर पारिवारिक कष्ट से भरे दिन बीते।
निरंतर भारतीय जनता पार्टी के लिए एक सफल कार्यकर्ता के रूप में काम किया।
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेताओं नें उन्हे झाड़खड के राजयपाल के रूप में सन 2015 में कार्य भार सौपा। देश को पहली राजयपाल जनजातीय समुदाय से मिला। आप सभी को बता दें कि देश में कुल जनजातियों की संख्या भारत की आबादी का 9% है।
झाड़खड की राज्यपाल बनती है पूरे राज्य में खुशी का माहौल था। सभी लोग, चाहे भाजपा विरोधी हो या जन मानस सभी के बीच में जल्द ही लोकप्रिय हो गई थी। 2021 में राज्यपाल के अवधि के समाप्ति के बाद झारखंड वासियों ने उनके उज्जवल भविष्य की कामना की।
मयूरभंज जिले में जन्मी द्रौपदी मुर्मू, की उच्च शिक्षा भुवनेश्वर में हुई । उन्होंने यूनिट -2 गर्ल्स हाई स्कूल, रमादेवी महिला कॉलेज से स्नातक किया। मयूरभंज राजा के दरबार में सिविल सेवक रहे बिरंची नारायण टुडू की बेटी द्रौपदी ने उबरबाडो प्राइमरी स्कूल से सातवीं कक्षा पास की थी। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू के दादा, स्वर्गीय कार्तिक चंद्र मांझी, उस समय मंत्री थे, इसलिए उन्होंने उस समय मंत्री के रूप में अपनी क्षमता सें यूनिट -2 गर्ल्स हाई स्कूल में दिलवा दिया। मुर्मू डॉर्मिटरी में रहती थी और 1974 इंटरमीडिएट किया।उन्होंने अपनी हाई स्कूल की शिक्षा सफलतापूर्वक पूरी की, परंतु उन्हें उस वर्ष कॉलेज जाने का अवसर नहीं मिला। क्योंकि कॉलेज जाने के लिए अप्लाई करना था। और आवेदन पत्र समाप्त हो गया था । अगले वर्ष, हालांकि, उन्हें रमादेवी महिला कॉलेज में पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ । इंदिरा गांधी आदिवासी छात्रावास में रहीं और पढ़ाई अच्छी तरह की। । आदिवासी लड़की होने के बावजूद उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उनकी बढ़ती नजर पर तीखी आलोचना करने वालों को उन्होंने डट कर जवाब दिया। उन्होंने तत्कालीन आदिवासी छात्रावास मैट्रन ब्रजेश्वरी मिश्रा की शिक्षण शैली और अर्थशास्त्र के प्रोफेसर कानन मंजरी मिश्रा की शिक्षण शैली की हमेशा प्रशंसा की है। वह हॉस्टल मेस के प्रबंधन की भी प्रभारी थी।
शिक्षा प्राप्त करते समय उनका जीवन संघर्षपूर्ण रहा । पिता महीने में सिर्फ 10 रुपये भेजते थे। आर्थिक तंगी के बीच बचपन गुजरा । दोस्तों के बुलाने पर भी वह कॉलेज कैंटीन में बिल्कुल नहीं जाती थी और ना ही बाजार घूमने जाती ना फिल्म देखने। उस समय रवि ताकीज़ एकमात्र सिनेमा हॉल था जहां उन्होंने सिर्फ ‘गॉसिप इज ट्रू’ फिल्म देखी।
बीए से स्नातक करने के बाद, उन्हें और अधिक पढ़ने का अवसर नहीं मिला। इस बिंदु पर उन्हें सचिवालय में नौकरी मिल गई। सचिवालय में नौकरी मिलने के कुछ ही महीनों के भीतर उनकी शादी हो गई। लेकिन उन्हें सचिवालय में लंबे समय तक काम करने का सौभाग्य नहीं मिला। विभिन्न पारिवारिक समस्याओं के कारण उन्हें नौकरी छोड़नी पड़ी। नौकरी छोड़ने के बाद बुजुर्ग सास और ससुर की देखभाल के लिए भुवनेश्वर से लौटी थी। बाद में, श्री अरविंद को पूर्ण शिक्षा केंद्र में पढ़ाने का अवसर मिला जहां वह 1994से 1997 तक कार्यरत रहे।