लॉकडाउन ४ का छठवाँ दिन, अनिश्चय के बीच उभरती नई संभावनाएं

Share:

क्या क्या बदलने जा रहा है आपकी दुनिया में, यह छोटा सा अदृश्य “कोरोना वायरस” आज बात इसी पर। महामारियों के इतिहास को देखें तो, पता चलता है कि जब कोई रोग दुनिया के बड़े फलक पर फैलता है तो वह न केवल लोगों के रहन-सहन को पूरी तरह बदल देता है। बल्कि उन्हें जिंदगी के वो सबक भी सिखा देता है, जिनके साक्षात प्रमाण सामने होने के बावजूद इन्हे मानने के लिए उज्जड, ढीठ मानव कभी तैयार नहीं होता ।

कोरोना वायरस के प्रकोप से जूझ रही दुनिया के बारे में अगर इस वक्त ढेरों अनिश्चय कायम हैं, तो ऐसी कई नई संभावनाएं भी पैदा हो गई हैं, जिनसे विश्व में कई महत्वपूर्ण बदलाव आयेंगें। अनिश्चय अगर इस बात का है कि यह बीमारी कैसे काबू में आएगी और इसके कारण उलट-पुलट व्यवस्थाएं कितने दिनों तक इसी तरह अराजकता की शिकार रहेंगी, तो असीमित सुखद संभावनाएं भी पनप रही हैं, अगर उन संभावनाओं की तरफ गौर करें, तो प्रतीत होता है कि इस संक्रमण से संसार कई ऐसे सबक लेगा, जो एक बेहतर दुनिया बनाने का भरोसा जगाएंगे और मानवता के वास्तविक प्रतिमान हमारे सामने रखेंगे।

सबसे पहली चीज जो बदलने वाली है, वह है, हमारा सामान्य मानव व्यवहार, एक दूसरे का अभिवादन करने, आदर और स्नेह दर्शाने की पद्धति और दिनचर्या। हाथ जोड़कर नमस्कार करने की अपनी परम्परा भूल, हम अंग्रेजियत की छद्मचाल चल पड़े। और अपनी ऐतिहासिक साइंटिफिक सनातनी परम्पराओं से दूर होकर, अपने घर-परिवार, मित्रों, सहयोगियों और सहयात्रियों से हाथ मिलाते, गले मिलते, गाल से गाल छुआते, चुम्बन तक लेते दिखाई देने लग पड़े थे, एक दूसरे का झूठा, खाना पीना बेहद आत्मीयता का परिचायक बन गया था, देर रात तक पार्टियां, व्यसन और व्याभिचार, कुलीन सभ्यता का परिमान माना जाने लगा था और जो इन्हें ना माने, उसे गंवार, दकियानूसी कह कर, उसके सिद्धांतों के सारे पैमाने तोड़ दिए जाने को उच्च कुलीन माना जाने लगा था।
लेकिन अब यह सब बदलने जा रहा है, इस बीमारी ने दुनिया को “सोशल डिस्टेंसिंग” अपनाने को कहा लेकिन दुनिया ने इसे छूतअछूत यानि घृणा वाली “सोशल दूरी” समझ लिया, नतीजा? लोग आपस में भी दूर हुए और बीमारों, जरूरतमंदों को छूने, उनकी मदद करने से, भी डर के मारे बचने लगे, इसलिए हम इसे लगातार, सोशल डिस्टेंसिंग न कह कर, “फिज़िकल डिस्टेंसिंग” अर्थात दो लोगों के बीच एक निश्चित किन्तु आत्मीय दूरी कहने और मानने पर जोर देते आये हैं, और अब सभी को अपनी धारणाएं बदल कर, इसे इसी रूप में अपनी आदतों में भी शुमार कर लेना चाहिए।

आत्मीय फिज़िकल डिस्टेंसिंग के साथ अब हमारे अभिवादन का तरीका भी वापिस अपनी परम्पराओं की और लौटेगा, हमारी सनातनी अनंतकालीन परम्पराएं थीं, बड़ों को हाथ जोड़कर नमस्ते करने की और छोटों को हाथ उठाकर आशीर्वाद देने की। और इसीलिए जब हम, अपने दोनों हाथों की हथेलियों और उँगलियों को पूर्णतः जोड़कर, किसी को प्रणाम या नमस्कार करते हैं, तब सामने वाले को बेहद आदर, स्नेह और आत्मीयता का आभास होता है, भारतीय योग में इसे अंजलीमुद्रा का नाम दिया गया है। मानव शरीर पांच तत्वों के योग से बना है, ये तत्व हैं, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश। सूर्यनमस्कार से लेकर साष्टांग नमस्कार तक अनेकों मुद्राएं अनादिकाल से हमारे देश का हिस्सा रही हैं, इनमे आरोग्य का राज भी छिपा हुआ है। ऋषि मुनियों ने हजारों साल पहले ही इनकी खोज कर ली थी एवं इसे उपयोग में लाते रहे, इसीलिये वे लोग हमेशा स्वस्थ रहते थे। उंगुलियों के पंचतत्व और हाथों की सभी दस उंगलियों से विशेष प्रकार की आकृतियां बनाने वाली ये मुद्राएं, शरीर में चैतन्य को अभिव्यक्ति देने वाली कुंजियां हैं। हमारी प्रत्येक उंगली के सिरे, इन्ही ऊर्जाओं के प्रतिबिम्ब हैं, कनिष्का यानि लिट्ल फिंगर “जल” का, रिंग फिंगर यानि अनामिका “पृथ्वी और कर्मठता” का, मिडिल फिंगर यानि मध्यमा ऊँगली, “आकाश और परिष्करण” का, तर्जनी यानि इंडेक्स फिंगर “वायु और जीवात्मा” का और अंगूठा या अंगुष्ठ “अग्नि और परमात्मा” का परिचायक है और इसीलिए जब हम अपनी दोनों हथेलियों को जोड़ते हुए, समस्त उँगलियों को इसके अंतिम सिरे तक आपस में जोड़ लेते हैं, तो इन पंच तत्वों का और जीव का परमात्मा से मिलन होता है साथ ही, हमारे कमर के ऊपर के हिस्से और हमारे ब्रेन के बीच, नसों का सर्किट पूरा होकर, सम्पूर्ण सामंजस्य स्थापित होता है, जिससे शांति, सुकून और खुशनुमा हार्मोन्स का स्तर भी बढ़ता है।

इन सबके साथ ही अब हाथ मुंह ढकना भी (इंसान हर कहीं थूक थूक कर गंदा न करे, इसलिए गमछा लपेटना जरुरी हुआ करता था) मास्क, गमछे के रूप में अनिवार्य हो जाएगा, साफ़ सफाई रखना, नियमित, संयमित और संचयी जीवन जीना, घर में प्रवेश के पहले जूते चप्पल बाहर ही उतारकर, फिर हाथ पैर मुंह धोकर अंदर प्रवेश करना वापिस हमारी दिनचर्या का हिस्सा बन जाएंगे। सभ्य मानव समाज के व्यवहार की ये हिन्दुस्तानी परम्पराएं, अब समस्त मानवजाति और दुनिया की सभ्यता का हिस्सा बन जायेंगीं और इन सब परिवर्तनों की वजह से कई तरह के सुदीर्घ परिणाम, दुनिया भर में देखने को मिलेंगे।
और क्या क्या बदलेगा, कल इसी क्रम में बात करेंगें अग्नि की।
मिलते हैं कल, तब तक जय श्रीराम ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक
मंगलम हैल्थ फाउण्डेशन भारत
संपर्क: 9425009303
drbgarg@gmail.com
https://www.facebook.com/DRBGARG.ANTIBURN/


Share:

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *