भारत को इस्लामिक देश बनाने का कुचक्र कामयाब होगा?

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आर.के. सिन्हा

दिल्ली के भीड़भाड़ भरे निजामउद्दीन इलाके में तबलीगी जमात के मुख्यालय से निकाले गए हजारों लोगों में इंडोनेशिया, मलेशिया बांग्लादेश आदि देशों के नागरिकों का होना भारतीय समाज की आंखें खोलने वाली घटना है। जमात ने तो भारत की पीठ पर वार किया है। वह तो भारत को इस तरह का घाव देना चाहता था ताकि भारत कभी उबर न सके। अब इस आशंका को ठोस आधार मिल चुका है कि तबलीगी जमात के विदेशी कार्यकर्ता भारत को कोरोना वायरस से भयंकर रूप से संक्रमित करना चाह रहे थे। यानी वे भारत की एक बड़ी आबादी को कोरोना का शिकार बनाकर यहां इस्लामिक देश बनाने का सपना देख रहे थे।

मोटा-मोटी तबलीगी जमात का लक्ष्य भारत के मुसलमानों को कट्टरपंथी बनाने और गैर-मुसलमानों को इस्लाम से जोड़ना ही है। यह तो कहने की बातें हैं कि तबलीगी जमात के लोग मुसलमानों को बेहतर मुसलमान बनाने के मार्ग पर लेकर जाते हैं। राजधानी की तबलीगी जमात में शामिल हजारों लोगों में से 441 में कोरोना के सक्रिय लक्षण मिले हैं। जरा सोचिए कि इन्होंने कितने हजारों या लाखों लोगों को कोरोना का शिकार बनाने का काम कर ही दिया होगा। इनकी देश और मानवता विरोधी करतूतों के कारण ही भारत सरकार और शांति प्रिय भारतीय समाज सकते में है। चिंता की एक बड़ी वजह यह भी है क्योंकि अभीतक कोरोना वायरस का कोई इलाज ही नहीं मिल पाया है।

बताते हैं कि हरियाणा के नूंह में 1927 में तबलीगी जमात की स्थापना की गई थी। हरियाणा के मेवात भाग में लाखों लोगों ने इस्लाम धर्म में जबरन शामिल किये जाने के बाद भी अपनी हिन्दू परंपराओं और रीति-रिवाजों को छोड़ा नहीं था। तबलीगी जमात उन्हीं लोगों को इस्लाम से और करीबी से जोड़ने में लगी थी। हालांकि हरियाणा के मुसलमान अब भी सामान्यतः हिन्दू धर्म के रीति-रिवाजों से जुड़े हुए हैं। उनमें विवाह के वक्त अब भी वर-वधू पक्ष अपने हिन्दू धर्म के गोत्र पूछता है। यानी मुसलमान बनने के बाद भी वे हिन्दू ही रहे। पर अपनी स्थापना के बाद से तबलीगी जमात का मकसद बदलता गया। अब ये प्रकट रूप में भले न सही पर नेपथ्य में गैर-मुसलमानों को मुसलमान बनाने के अभियान में ही जुटा है। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है। लव जिहाद इसी के शातिर षड्यंत्र की उपज है। तबलीगी जमात बीते सौ साल से तमाम इंसान को ही एक रंग और रूप में ढालने में लगा हुआ है। ये भाईचारे के लिए एकरंगी होने को जरूरी बताते हैं। एक ही रंग और रूप में अनवरत सबको रंगे जा रहे हैं। अब कहीं जाकर पकड़ में आए हैं। इनकी पोल-पट्टी खुल गई है। अब तो इन्हें कतई छोड़ा नहीं जाएगा। कम-से-कम अमित भाई शाह के गृह मंत्री और अजीत डोभाल के सुरक्षा सलाहकार रहते यह तो संभव नहीं दिखता।

कहते हैं कि तबलीगी जमात आज दुनिया के दो सौ देशों में फैली है। संगठित तरीके से देश-विदेश के कोने-कोने पर कब्ज़ा करके इस्लामिक राष्ट्र बनाने के ख्वाब पाले हैं। इन्हें लगता है कि भारत और इजराइल पर इस्लाम का परचम फहराना सबसे जरूरी है। इन दोनों देशों में इस्लाम को मानने वाले तो हैं लेकिन इस्लाम का वर्चस्व स्थापित होने की कोई संभावना नहीं दिखती है। अगर बात भारत की करें तो ये तबलीगी जमात वाले देश के दूरदराज के सुदूर इलाकों में जाकर सीधे-सरल लोगों से कहते हैं कि वे कलमा पढ़कर इस्लाम से जुड़ें और मुसलमान बन जाएं नहीं तो मरने के बाद जहुन्नम में जलने के लिए तैयार रहें। इसके विपरीत इस्लाम में तो मौत के बाद भी एक शानदार जिंदगी इंतजार कर रही है। उस दुनिया में मौज ही मौज है। तबलीग जमात के कार्यकर्ता गांवों में जाकर प्रचार करते हैं कि भारत में बेरोज़गारी और भ्रष्टाचार इस्लामी क़ानून शरीयत को लागू करने से दूर होगा न कि काफिरों के क़ानून से। अब सरकार को तबलीगी जमात के खर्चों की पड़ताल करनी होगी कि ये इतना लंबा-चौड़ा संगठन कैसे चलाते हैं? इन्हें कहां से मदद मिलती है?

अगर भारत में तलबीगी जमात गैर-मुसलमानों को इस्लाम से जोड़ना चाहता है तो पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान में यह शरीयत के हिसाब से देश की शासन व्यवस्था चलाने की मांग करता है। गिरगिट जैसा रंग बदलता रहता है यह जमात। अब इन्हीं की करतूतों के कारण पाकिस्तान में भी कोरोना तेजी से फैल रहा है। पाकिस्तानी सरकार भी यह कह रही है। इन्होंने पाकिस्ता‍न में भी कहर बरपा रखा है। पाकिस्तान के पंजाब और सिंध प्रांत में अबतक इससे जुड़े करीब दर्जनों केस आ चुके हैं। तबलीगी जमात ने पाकिस्तान की पंजाब सरकार की बात को नजरअंदाज करते हुए अपना सम्मेलन किया। यानी ये हर जगह अपना जंगलीपन दिखाने से बाज नहीं आ रहे हैं। तो किया क्या जाए?

अब तो एक बात शीशे की तरह साफ होती जा रही है कि कोरोना वायरस पर विजय पाने के लिये भारत सरकार को इन मानवता के दुश्मनों पर चाबुक चलानी ही होगी। यह सच है कि भारत का संविधान सभी नागरिकों को अपने धर्म मानने और उसके प्रचार-प्रसार की अनुमति तो जरूर देता है। यहां तक सब वाजिब भी है। पर भारत का संविधान किसी को भारत में रहकर उसकी जड़ें खोदने का अधिकार नहीं देता। लेकिन, तबलीगी जमात यही तो कर रहा है। वे कहाँ किसी संवैधानिक सरकार की बात मानने को राजी हैं। क्या इसे माफ किया जा सकता है? कतई नहीं।

तबलीगियों ने सबकुछ जानते हुए भी जिस तरह की अक्षम्य हरकत की है, उसे माफ करने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता। अब इस मसले पर देश भर में बहस हो रही है तो कुछ प्रगतिशील यह कहने से बाज नहीं आ रहे कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई को हिन्दू- मुसलमान का रंग दिया जा रहा है। यह क्या मतलब है। यानी ये लोग तबलीगी जमात को कहीं न कहीं बचाने की फिराक में हैं। क्या सारे मुसलमान तबलीगी हैं। हरगिज नहीं। इस सारी बहस के दौरान हर्ष मंदर, राणा अयूब, कन्हैया जैसे प्रगतिशील और मौजूदा एनडीए सरकार पर हर मसले पर वार करने वाले फ़िलहाल नदारद हैं। जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) बिरादरी भी कहीं दिखाई नहीं दे रही। क्या इन्हें तबलीगी जमात की हरकत के लिए उसे आड़े हाथों नहीं लेना चाहिए था। पर अगर ये इस तरह का कोई कदम उठाते तो इनकी प्रगतिशीलता खतरे में न पड़ जाती। यहां पर मैं मुसलमानों के मिडिल क्लास से भी सवाल करना चाहता हूं कि वे तबलीगी जमात के खिलाफ क्यों नहीं आवाज बुलंद करते। मात्र कुछ शिया नेताओं के किसी ने निंदा नहीं की। इन्हें तबलीगी जमात के देश को अंधकार युग में ले जाने के खिलाफ पहले से ही मोर्चा संभाल लेना चाहिए था लेकिन उन्होंने इस अवसर को खो दिया। वे हमेशा की तरह अपने को विक्टिम मोड में ही रख रहे हैं। उन्हें भी इतिहास माफ नहीं करेगा।

(लेखक वरिष्ठ संपादक एवं स्तंभकार हैं।)


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