लॉक डाउन के कारण भुखमरी के कगार पर पहुंचे जूट मिलों के श्रमिक

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हुगली, 03 अप्रैल(हि. स.)। एक जमाने में गंगा नदी के किनारे स्थित हुगली जिले को जूट मिलों का हब कहा जाता था। जूट मिल में काम करने वाले मजदूरों की ठाठ थी। बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश उड़ीसा आदि राज्यों से मजदूर आकर इन जूट मिलों में काम कर अपनी  आजीविका चलाते थे। समय के साथ जूट मिलों की स्थिति बदली। उनके बंद होने और खुलने का सिलसिला शुरू हुआ। वर्तमान में हुगली जिले में पिछले तकरीबन दो वर्षों से दो मिलें चंदननगर गोंदलपाड़ा जूट मिल और श्रीरामपुर इंडिया जूट मिल बंद हैं। इन मिलों के बंद होने के कारण यहां काम करने वाले श्रमिक बदहाल जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

इन जूट मिलों के बंद होने के बाद यहां के श्रमिक उत्तर 24 परगना और हावड़ा जिले के विभिन्न जूट मिलों में अथवा लिलुआ के लोहे कारखानों में अथवा राजमिस्त्री या दिहाड़ी मजदूर या रिक्शा चलाने का काम कर अपनी जीविका चलाते थे। लेकिन लॉक डाउन के कारण इनका यह रोजगार भी इनसे छिन गया है। अब ये दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। ये मजदूर अपने घरों में रहने को मजबूर हैं। अब अपने काम के सिलसिले में बाहर के जिलों में भी नहीं जा पा रहे हैं और ना ही दिहाड़ी मजदूरी ही कर पा रहे हैं। लॉक डाउन के कारण रिक्शा और टोटो तक नहीं चल रहे हैं। अब इन श्रमिकों को समझ में नहीं आ रहा है कि ये क्या करें और कैसे अपने परिवार का पेट पालें। श्रमिकों का आरोप है कि प्रबंधन का हृदय पत्थर का हो गया है और वे लोग हम श्रमिकों की इतनी दर्दनाक स्थिति को देखने के बावजूद हमारे के हित में कोई सकारात्मक कदम नहीं उठा रहे हैं। 

लॉक डाउन के दौरान हम एक छोटे से कमरे में अपने परिवार के साथ यहां रहने को मजबूर हैं। आर्थिक तंगी का आलम यह है कि परिवार में रोज कलह हो रहा है। बच्चे छोटी-छोटी चीजों को तरस रहे हैं। लेकिन इस पर ध्यान देने वाला  कोई नहीं है। 

जूट मिल श्रमिक विजय शंकर साहनी ने बताया कि विभिन्न दलों के नेता  लॉक डाउन के दौरान  हमारे घरों में आ रहे हैं। थोड़ा सा चावल, दाल, तेल, आलू  इत्यादि दे रहे हैं। फोटो खिंचवा रहे हैं और चले जाते हैं। लेकिन हमारी मूल समस्या पर किसी भी दल के नेता ध्यान नहीं दे रहे हैं। हमें हमारी समस्या का समाधान चाहिए। सरकार या तो इन जूट मिलों को पुनः शुरू करवाए या हमारे लिए कोई वैकल्पिक व्यवस्था करवाए ताकि हमलोग कमा खा सकें। जूट मिल श्रमिक  नौशाद आलम  को  घर के बाहर  घूमते हुए देखकर जब “हिन्दुस्थान समाचार” ने उनसे सवाल किया कि लॉक डाउन के दौरान आपको घर से बाहर नहीं घूमना चाहिए तो उन्होंने बताया कि जूट मिल की ओर से हमें रहने के लिए एक छोटा-सा कमरा दिया गया है जिसमें चार लोग ठीक से बैठ नहीं सकते। परिवार में मैं, मेरी पत्नी मेरी बेटी, अम्मी, अब्बू, और दादी समेत कुल सात लोग हैं। घर से बाहर न निकले तो कहां बैठे। घर के बाहर बैठने पर भी पुलिस आती है और घर के अंदर भेज देती है। नहीं जाने पर डंडे चलाती है। घर में ना ही टीवी है और ना ही मनोरंजन का कोई अन्य साधन। 

जूट मिल श्रमिक देव प्रसाद ने बताया कि उन्हें पता चला है कि टीवी पर रामायण और महाभारत दे रहा है। लेकिन उनके घर में टीवी नहीं है। लॉक डाउन के कारण वे बाहर भी नहीं जा पा रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि आर्थिक तंगी के कारण इन बंद पड़े जूट मिल श्रमिकों की आत्महत्या की खबरें भी सुर्खियों में आई थी। लॉक डाउन के कारण इन बंद पड़े मिलो के श्रमिकों की हालत बद से बदतर हो गई है।


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