“विशेषज्ञों के पुनर्मूल्यांकन के हस्तक्षेप का नियम नहीं” कहा हाई कोर्ट

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हाईकोर्ट ने कहा, अब उसके पास नहीं है हस्तक्षेप का अधिकार  ।

प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा है कि किसी व्यावसायिक पाठ्यक्रम के विषय में पुनर्मूल्यांकन एक बार विशेषज्ञों द्वारा करने के बाद न्यायालय को इस संबंध में कोई नियम न होने पर हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। न्यायालय विशेषज्ञों के फैसले को अपने निर्णय से बदल नहीं सकता है। कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों की राय पर भरोसा करना ही होगा।यह निर्णय न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने केडी डेंटल कॉलेज मथुरा के डेंटल सर्जरी के छात्र विश्व वैभव की याचिका खारिज करते हुए दिया है। याची का कहना था कि उसने अपनी पढ़ाई में बहुत बढिय़ा प्रदर्शन किया लेकिन अंतिम परीक्षा में दो पेपर में उसे फेल कर दिया गया। उसने पुनर्मूल्यांकन का आवेदन किया। पुनर्मूल्यांकन में उसे मिले अंकों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। याची का कहना है कि उसकी उत्तर पुस्तिका सही तरीके से जांची नहीं गई है इसलिए एक बार फिर से मूल्यांकन का आदेश दिया जाए। जबकि कॉलेज की ओर से कहा गया कि एक बार पुनर्मूल्यांकन हो गया तो बिना किसी नियम के दोबारा पुनर्मूल्यांकन नहीं कराया जा सकता है।कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा कि याची कोई ऐसा नियम नहीं बता सका कि एक बार पुनर्मूल्यांकन हो जाने के बाद दोबारा भी पुनर्मूल्यांकन कराया जा सकता है। यह मामला मेडसिन की विशेषज्ञ शाखा से जुड़ा है। इस न्यायालय के पास ऐसी कोई विशेषज्ञता नहीं है, जिससे वह यह निर्धारित कर सके कि याची सही है या पुनर्मूल्यांकन करने वाले विशेषज्ञ। न्यायालय के लिए यह उचित नहीं होगा कि वह खुद को विशेषज्ञ मानते हुए विशेषज्ञों के किए काम को फिर से करने का आदेश दे। इस स्थिति में विशेषज्ञों की राय पर ही भरोसा करना होगा।


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