दिनेश पर प्रशाशन या चिकत्सको की नजर क्यों नहीं पड़ रही ?

15 अप्रैल प्रयागराज: औरंगाबाद जिले का रहने वाला है दिनेश विश्वकर्मा न जाने कौन कब और कैसे इसको प्रयागराज के एस आर एन चिकित्सालय के प्रांगण में छोड़कर चला गया? इसकी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है मेरे पास पर लोग बताते हैं कि काफी दिनों से यह व्यक्ति यहां पर पड़ा हुआ है। चल फिर नहीं पाता है, राह चलते लोग खाना देते हैं इसको लेकिन यह खा भी नहीं पाता है। दिनेश अक्सर पीने के लिए पानी मांगा करता है लोगों से, कभी-कभी कुछ लोगों से कह देता है कि जूस पिला दो। दिनेश विश्वकर्मा का घर है, मां, बहन, भाई सब है मगर अब शरीर में इतनी क्षमता नहीं है कि दिनेश विश्वकर्मा एसआरएन चिकित्सालय के प्रांगण को छोड़कर यहां से अपने घर की ओर जा सके। दिनेश विश्वकर्मा के शरीर में मांस नाम की कोई चीज बची ही नहीं है। शरीर के नाम पर दिखाई देता है तो सिर्फ हड्डियों का एक ढाचा।आज दिनेश विश्वकर्मा की, लोग इसको खाना देने तो आते हैं मगर कोई इसके साथ सेल्फी नहीं लेता जबकि आजकल के दौर में सेल्फी के बिना कोई काम जैसे होता ही नहीं है न ही दान पुण्य। मगर दिनेश विश्वकर्मा को लोग बगैर सेल्फी लिए ही खाना पानी देकर चले जाते हैं। कहने के लिए तो ऐसे बेसहारा लोगों के लिए सरकार की कई योजनाएँ हैं मगर दिनेश शायद उन योजनाओं में भी फिट नहीं बैठता हैं।
सरकार की किसी भी योजना को लागू होते ही एक बयान जारी होता है कि इस योजना का उद्देश्य यह है कि समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले व्यक्ति तक इस योजना का लाभ पहुंचे मगर शायद सरकार के पास ऐसा कोई पैमाना ही नहीं है जो वह यह निश्चित कर सके कि समाज के आखिरी छोर पर आखिर रहता कौन है ? अगर सरकार ऐसे मानक बना पाती कि समाज के अंतिम छोर पर रहने वाले व्यक्ति को पहचान पाती तो शायद आज दिनेश विश्वकर्मा प्रयागराज के एस आर एन चिकित्सालय के प्रांगण में हड्डियों का कंकाल बनकर न पडा होता। शायद दिनेश विश्वकर्मा एक स्वस्थ शरीर के साथ किसी कार्यालय किसी कंपनी या अपनी किसी दुकान पर काम कर रहा होता, या अपना कोई व्यापार कर रहा होता और आज वह यह ना कहता कि “मैं अपने घर जाना चाहता हूं मगर कोई मेरी मदद करता ही नहीं”।आज दिनेश भी औरंगाबाद में अपने परिजनों के साथ रह रहा होता मगर ऐसा नहीं है क्योंकि सरकार के पैमाने में कहीं कोई कमी जरूर है इसीलिए दिनेश विश्वकर्मा जैसे लोग आज भी अपना हक पाने को मजबूर हैं।
दिनेश विश्वकर्मा से जब बात करने की कोशिश की तो वह बताता है कि कहीं गोंडा या अयोध्या में किसी होटल पर काम करता था वहां पर ठीक से खाना पानी न मिलने के कारण और पैसा नहीं मिलने के कारण उसकी ऐसी हालत हुई और फिर कोई उसे गाड़ी से यहां एस आर एन चिकित्सालय के प्रांगण में छोड़कर चला गया। यह तो हम नहीं जानते कि दिनेश विश्वकर्मा की असली कहानी क्या है ? मगर इंसानियत के दामन पर दिनेश विश्वकर्मा का हड्डियों का कंकाल एक गाढ़ा दाग है और सरकार और प्रशासन के खोखले दावों का जीता जागता उदाहरण। कोई भूखा नहीं मरेगा कोई बिना इलाज के नहीं मरेगा स्वस्थ जीवन और पौष्टिक आहार हर नागरिक को मिलेगा ऐसे दावे दिनेश विश्वकर्मा के जीवित कंकाल को देखकर कागजी बातें मात्र नजर आती हैं। अभी दिनेश विश्वकर्मा की सांसे चल रही हैं और कोविड-19 के इस दौर में जिस सोशल डिस्टेंसिंग की बात की जा रही है जिससे महामारी ना फैले , ऐसी ही सोशल डिस्टेंसिंग शायद प्रशासन ने ऐसे लाचार मजबूर असहाय लोगों से न जाने कब से बना रखी है इसीलिए तो एस आर एन चिकित्सालय जो कि प्रयागराज जिले के सबसे अच्छे चिकित्सालयो में आता है उसके प्रांगण में एक जीता जागता कंकाल अपनी अंतिम सांसे गिन रहा है। अगर एसआरएन चिकित्सालय का प्रशासन चाहे तो इस व्यक्ति का हर तरह से इलाज कर सकता है इसको वार्ड में भर्ती कर सकता हैं इसके खानपान का ख्याल रख सकता हैं मगर शायद यहां से गुजरने वाले वह चिकित्सक जो आज यहां पर उच्च पदों पर है और वह वह विद्यार्थी डॉक्टर जो यहां पर अभी अपनी डॉक्टर की पढ़ाई पूरी कर रहे हैं आते जाते दिनेश को देखते भी हैं और उसको कुछ खाने के लिए देते भी हैं मगर वह नहीं देते जो दिनेश को चाहिए। दिनेश को इलाज सिर्फ चिकित्सक दे सकते हैं बाकी कोई नहीं ।