कोरोना काल का चौदहंवा दिन: कोरोना वायरस और मानव के बीच जंग कौन किस पर भरी ?
कोरोना काल का चौदहंवा दिन यह अहम् सवाल लेकर आया है कि अदृश्य कीटाणु को मानव से आंखमिचौली खेलने में आनंद आ रहा है या मानवता दो तिहाई दूरी तय कर उसे परास्त करने की और मजबूती से कदम बढ़ा रही है ?

सवाल बड़ा ही छोटा सा है लेकिन कोई भी समझदार ज्ञानी मानव, इस सवाल के सामने खुद को बौना समझ, इस पर काबू पाने के लिए और अधिक प्रयासों में जुट जाएगा और ख़ास तौर पर जब कि वो इस देश का प्रधानमन्त्री भी हो ?

और यही हमने देखा कि वीर सेनापति की तरह सौ करोड़ सैनिकों के अंदर ऊर्जा का प्रवाह करने उन्होंने उसे नौ बजे, नौ मिनिट का टास्क दे दिया और जैसे हनुमानजी संजीवनी की जगह सारा पहाड़ ही उठा लाये थे, उसी तरह सारे देशवासी भी आनंदित हो, टूट पड़े अन्धकार को मिटाने। एक दीप की जगह ढेरों दीप लगा दिए सबने और पूरे विश्व ने इस आपदा काल को, विकट अवसर को एक आन्दोत्सव की तरह मनते हुए देखा।

आज विश्व स्वास्थ्य दिवस पर, सारी दुनिया मानवता के इन सच्चे सपूतों, मानवता के रखवालों का धन्यवाद अदा कर रही है और मॉक ड्रिल के जरिये दुनिया को आल्हादित, अचंभित करने वाले बड़े बड़े यांत्रिकीय जलसों के सामने इस भयानक आपदा के समय हकीकत में किये जा रहे जान जोखिम के इन देवदूतों के प्रयासों को, ड्रिल को, उन्मुक्त कंठ से एक स्वर में सराह रही है। लेकिन दुःख तो इस बात का है कि आनंद के समय में एक एक एपिसोड के तीन तीन करोड़ रुपये लेने वाला आमिर खान, इन्ही देवदूतों के चंद सौ रुपयों की फीस को लूट बता, उन्हें शर्मिंदा कर रहा था, इस देश के संस्कार, प्रथाओं का मजाक बना रहा था। तब देश भले ही उस मसखरे पर हंस रहा था, लेकिन आज देश ही नहीं, सारा विश्व इन्ही लुटेरे डॉक्टरों के आगे नतमस्तक है, उन्हें आशीर्वचनों से, पुष्पगुच्छों से नवाज रहा है परन्तु ये स्वार्थी, धनपिशाच ना सिर्फ चलचित्रपटल से गायब हैं बल्कि इस घोर संकट काल में ऐय्याशियों में डूबे फिर किसी नई “लूट स्क्रिप्ट” पर काम कर रहे होंगें।

पर जिस तरह से वैश्विक आंकड़े बयां कर रहे हैं, निःसंदेह समय विकट है और उससे भी अधिक विकटता इस वजह से भी है कि चंद इंसानियत के दुश्मन ना सिर्फ अपने कुत्सित इरादों में सफल होते दिख रहे हैं। अपितु उनकी पीठ पर सवार शैतान भी उनके लिए सारी सहूलियतें जुटा रहा है, फिर चाहे वो दिल्ली का शैतान हो या जमातिये, पुलिस तंत्र का भ्रष्ट कांस्टेबल हो या देवदूतों पर थूकता पथ्थर बरसाता मानवता का दुश्मन ।
पर अच्छी बात ये भी है कि ये देश बारबार लुटने के बाद भी हथियार नहीं डालता, हारता नहीं है, संकट में एकजुट होना और अपने सेनापति के एक आव्हान पर अपना सबकुछ लुटा देना इसकी सदियों पुरानी विरासत है, जो उसको उसके खालिस डीएनऐ से मिली हुई विरासत, जेनेटिक आदत है। दीपप्रज्ज्वलन के एक छोटे से कदम से अधिकाँश देशवासियों ने ना सिर्फ आपसी समझबूझ और एकजुटता से अपने प्रधानमंत्री जी के आव्हान पर इस बीमारी को इसी के इलाकों में ना सिर्फ घेर दिया, बल्कि रक्षक तंत्र भी पूरी ताकत से इस बीमारी की रोकथाम करने में जुटा और शैतान को उसके इलाके में घेरे रखने में कामयाब होता दिख रहा है, दूसरी और सब तरफ से घिरा शैतान, हकबकाया सा अब अपने ही सवार और उसके निकटस्थों को थका रहा है, शापित कर रहा है मार रहा है लेकिन रूढ़िवादी, कट्टर, अनपढ़, गंवार, समूह, उन छद्म पाखंडियों के हाथ की कठपुतली बना नंगा घूम रहा है ।
किसी भी आपदा में, उस देश के सामने सबसे बड़ा सवाल संसाधनों का उचित संवर्धन और उसके प्रमुख के सामने अपने देशवासियों का मानसिक सम्बल बढ़ाना होता है और यही तो अनादिकाल से अखंड हिन्दुकुश देखता भी आया है, और जब पर्व हो हनुमान का तो फिर कोई भी आपदा प्रभु श्रीराम के भक्तों का अनर्थ कर कैसे सकती है ?
भले ही चंद अज्ञानी लोग कुतर्क करें पर इस देश के सभी वासी हैं, तो प्रभु श्रीराम के देश के ही ना? समय, स्वार्थ और भय के साथ आस्थाएं भले ही बदल गईं हों, पर रहन सहन, खान पान, भाषा, व्यवहार तो कैलाश से लेकर काला पानी तक एक ही है सबका और इसीलिए तो, भले ही इस देश को भाषाओं, जाँतपाँत, प्रांतों में आक्रांताओं, वामपंथियों, गोरों ने बाँट दिया था, फिर भी आज सब एकजुट हैं और यही इस देश की सबसे बड़ी ताकत है।और यही सन्देश तो निशाद को गले लगाकर, शबरी के झूठे बैर खाकर प्रभु श्रीराम ने सारे संसार को दिया था और अपना सारा तप, पुण्य, बल वीर हनुमान को दे दिया था, यह कह कर कि अब सब लोग विपत्ति में मुझे नहीं, तुम्हे पुकारेंगे।
भूत पिशाच निकट नहि आवै महावीर जब नाम सुनावै,
नासै रोग हरे सब पीरा जपत निरंतर हनुमत बीरा ।
संकट तै हनुमान छुडावै मन क्रम वचन ध्यान जो लावै,
सब पर राम तपस्वी राजा तिनके काज सकल तुम साजा ।।

इतिहास के पन्नों में वर्णित है कि एक बार अकबर ने तुलसीदास जी को अपने दरबार में बुलाया और उनसे कहा कि मुझे भगवान श्रीराम से मिलवाओ। तब तुलसीदास जी ने कहा कि भगवान श्रीराम सिर्फ अपने भक्तों को ही दर्शन देते हैं। यह सुनते ही अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार में कैद करवा दिया। कारावास में तुलसीदास जी ने अवधी भाषा में हनुमान चालीसा लिखी और जैसे ही हनुमान चालीसा लिखने का कार्य पूर्ण हुआ वैसे ही पूरी फतेहपुर सीकरी को बंदरों ने घेरकर उस पर धावा बोल दिया। बादशाह अकबर की फौज भी बंदरों का आतंक रोकने में नाकामयाब रही, तब अकबर ने तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त करने का आदेश दिया। और जैसे ही तुलसीदास जी को कारागार से मुक्त किया गया और अकबर ने उनसे अपने कृत्य के लिए माफ़ी मांगी, उसी समय बंदर सारा इलाका छोड़कर चले गए।
तो चलिए, एक बार जोर से कहिये: जय हनुमान ज्ञान गुन सागर जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।