लेना-देना बंद है, फिर भी आनंद है

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देवदत्त दुबे

पांडुरंग शास्त्री द्वारा प्रेरित स्वाध्याय परिवार में एक गीत गाया जाता है की “लेना देना बंद है फिर भी आनंद है” क्योंकि स्वाध्याय परिवार से जुड़े लोग जब भक्ति फेरी पर जाते हैं तब वे अपना टिकट अपना टाइम और अपना टिफिन करते हैं भक्ति फेरी के दौरान जिस घर में रुकते हैं वहां से कुछ भी ग्रहण नहीं करते ऐसा ही कुछ लॉक डाउन के दौरान अधिकांश परिवार घरों के अंदर है और बाहरी दुनिया से उनका लेना-देना बंद है इसमें कितना आनंद है यह भी देख लेना चाहिए।

सोशल डिस्टन्सिंग कर पालन हर हाल में करे

दरअसल आजकल बाहरी वस्तुओं और दूसरे व्यक्तियों मैं खुशियां और संतुष्टि खोजने की आदत पड़ गई है। लेन देन कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है, चाहे वह सामाजिक रूप में हो चाहे भौतिक रूप में और चाहे व्यवहारिक रूप में ही क्यों ना हो। सब कुछ हमारे पास होते हुए भी हम इसलिए दुखी हो जाते हैं, कि सामने वाले ने हमें सम्मान नहीं किया हमारी उपेक्षा की और यह भी भूल जाते हैं कि, कई बार हम भी ऐसा ही करते हैं हम कितने निर्भर हो गए घर से निकलते ही वाहन चाहिए, इसके पहले घर के अंदर ही कितने सुविधा भोगी हो गए, यदि साफ सफाई वाले और खाना बनाने वाले घर पर नहीं आए, तो घर पर जैसे भूचाल आ जाता है। अनेकों उदाहरण है चिंतन करेंगे तो समझ में आएगा कि हमें पता ही नहीं चला कि हम कितने गुलाम हो गए हैं, कितने निर्भर हो गए हैं, लेकिन अब हमारे पास अवसर है हम जरा रुक गए हैं, हमारी गति धीमी हो गई है। तब हमें ध्यान आ रहा है कि कैसे हम छोटी छोटी चीजों के लिए भी लेन-देन में ही विश्वास रखते यहां तक कि इतने स्वार्थी हो गए, की वृद्ध माता-पिता को वृद्ध आश्रम भेजने लगे हैं। हम जब अपने ही माता-पिता की सेवा नहीं कर पा रहे हैं और आज देख रहे कि कैसे नर्स डॉक्टर पुलिस अधिकारी दिन रात जान हथेली पर रखकर कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा कर रहे हैं, तब हमें सूचना चाहिए कि आखिर हम कहां जा रहे थे।

बहरहाल लॉक डाउन के 14 दिनों में एक बात तो समझ में आई गई है, की यह बीमारी ना तो हमें किसी से लेना है और ना ही किसी को देना है। इसी में आनंद है मानव स्वभाव जब किसी कार्य को मन से करता है, तब उसमें वह आनंद महसूस करता है। अन्यथा कितना भी बड़ा कार्य कर ले यदि मन से नहीं करेगा, तो फिर उसे आनंद नहीं आएगा। इस समय घर में रहना अपने लिए परिवार के लिए समाज के लिए प्रदेश के लिए और देश के लिए सबसे बड़ा कार्य है और इसको करते हुए हम सब आनंद महसूस करें और जब इस महामारी के संकट से उबर कर बाहर निकले, तब ऐसे शक्तिशाली होकर निकले जिसमें हम इस संतुष्टि से भरे हो कि हमने बहुत कुछ सीख लिया यह सब्र रखने का समय है।

यह समय अभ्यास बढ़ाने का भी समय है। मानव की यह खासियत होती है, कि वह किसी काम को यदि लगातार उस समय के लिए करता है, तो फिर वह उसकी आदत में शुमार हो जाता है। यही कारण है जो लोग लंबे समय तक किसी भी प्रकार का नशा करते हैं, फिर उसे उसकी आदत हो जाती है। लॉक डाउन का समय ऐसा है जिसमें हम अच्छी आदतें का अभ्यास कर सकते जैसे साफ सफाई की आदत तो हो ही गई है, कोरोना के डर से ही सही बार-बार हाथ धोने, मास्क पहनने, हाथ मिलाने, की जगह नमस्ते करने, का अभ्यास पक्का होता जा रहा है और इसे हम भविष्य में भी जारी रखेंगे। तो कोई दिक्कत नहीं जाएगी विश्वव्यापी, इस महामारी ने जहां अर्थव्यवस्था चौपट कर दी है, भविष्य में बेरोजगारी, मंदी, जैसी अनेकों समस्याएं विकराल रूप लिए होंगी, लेकिन बहुत सारे सबक भी सीखे जा रहे हैं, जो हमें काम आएंगे यदि हम अभी दूसरी तरफ देखें तो कुछ उसने पक्ष दिखाई दे रहे हैं, मसलन औद्योगिक और माननीय गतिविधियां थमने से ऐसा लग रहा है, मानो प्रकृति को सांस लेने का मौका मिल गया है। वह खुद को निखार और सवार रही है, वैज्ञानिकों का तो यहां तक अनुमान है की, लगातार बिगड़ता जा रहा मौसम चक्र भी पटरी पर लौट सकता है। असमय बाढ़, सूखा, प्राकृतिक, आपदाएं भी रुक सकती हैं और मौसम काफी हद तक अपने पुराने स्वरूप में भी लौट सकता है। यमुना और गंगा कुछ ही दिनों में इतनी स्वच्छ हो गई जितनी की वर्षों के साफ सफाई अभियान के बाद नहीं हुई थी।

कुल मिलाकर ना किसी से बीमारी लेना है और ना किसी को बीमारी देना है और इसी में सभी का आनंद खोजना है आज हनुमान जयंती है जिनका पूरा जीवन भगवान राम की सेवा में व्यतीत हुआ आज सबसे ज्यादा हनुमान जी के मंदिर हैं इससे भी हम अंदाजा लगा सकते हैं की सेवा करने वाला ही पूजा जाता है और इस समय घर में रहकर हम सबसे बड़ी पूजा कर सकते हैं और करना है।


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