बिना किसी सुरक्षा उपकरण के कोरोना संक्रमित मृतकों का दाह संस्कार करते जाबाज़ शाहबुद्दीन

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कोरोना काल ने अपनों को भी पराया बना दिया है। ऐसी खबरें भी मिली हैं जब कोेरोना पीड़ित पिता को प्यास से तड़पता देख बेटी पानी पिलाने जा रही थी लेकिन मां ने रोेक दिया या घर के एक लाचार बुुजुर्ग सदस्य को रात के समय खांसी आतेे ही घरवालोें नेे सड़क पर छोड़ दिया। परंतु बुुलंदशहर के मुस्लिम समुदाय केे 32 वर्षीय शाहबुद्दीन साठा स्थित शमशान गृह में 6000 रूपए मासिक वेेतन पर छहः साल से कार्यरत हैं और इसी से इनका परिवार चलता हैं।

कोरोना के समय परिजन एंबुलेेंस या ई-रिक्शा से शव लाने केे बाद घर लौट जाते हैं, तब शाहबुद्दीन लकड़ी, घी, उपले एवं अन्य समग्रियों से उन शवों का अंतिम संस्कार करते हैं। इस समय तोे उन्हें चैबिस घंटेे शमशान गृह पर ही रहना पड़ता है। पुलिस भी लावारिस शवों की जिम्मेदारी शाहबुद्दीन को सौंप देती है। शाहबुद्दीन पोस्टमार्टम हाउस से रिक्शा पर शव लाकर उसक अंतिम संस्कार करता है ।

जिला प्रशासन कोे मालूम हैै कि शाहबुद्दीन बिना किसी सुरक्षा उपकरण के कोरोना संक्रमित मृतकों का अंतिम संस्कार करता है। उनका कहना है कि सीएमओ को पत्र लिखा जाएगा कि शमशान गृह के चैकीदारों कोे पीपीई किट औैर अन्य सुरक्षा उपकरण उपलब्ध कराए जाएं।


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