प्रभावित से प्रकाशमान हुआ भारत

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भौतिक प्रलोभन से सराबोर दुनिया के अधिकांश लोग कोरोना महामारी के चलते लॉक डाउन की स्थिति में जहां परेशान नजर आय वही देश के अधिकांश लोग भौतिक प्रलोभन से प्रभावित हुए बगैर प्रकाशित होते नजर आय। अन्यथा कोई भी सरकार इतने लंबे समय तक करोड़ों लोगों को घरों के अंदर नहीं समेट सकती थी। स्वयं देशवासियों ने जागरूकता दिखाई और समस्याओं से जूझते हुए अनेकों ऐसे उदाहरण पेश किए जो वर्षों तक याद किए जाएंगे।

दरअसल मानव स्वभाव ही कुछ ऐसा है कि, वह अधिक समय तक खाली नहीं बैठ सकता और घर के अंदर लगातार रहना तो और भी मुश्किल है लेकिन विश्वव्यापी कोरोनावायरस भयावहता को समझते हुए अधिकांश देशवासी घरों के अंदर ही है जिसकी सराहना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी हो रही है क्योंकि लॉक डाउन का पालन अधिकांश लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में किया है। जो दिन में दो या तीन बार कपड़े और गाड़ियां बदलते थे लोअर टीशर्ट में महीने भर से है। जो सप्ताह में 1 दिन आउटिंग पर जाते थे वे घरों में ही है। जो रविवार अवकाश को एंजॉय करते थे वे भूल ही गय कि कब रविवार है और कब सोमवार।

जिन परिवारों में हर काम के लिए अलग अलग काम करने वाले आते थे वे सब काम परिवार के लोगों ने आपस में मिलकर किए एक तरह से जो विभिन्न सुविधाओं का उपभोग सुबह से लेकर देर रात तक करते थे वे सन्यासी जैसा जीवन जीते नजर आय। यह सब बातें बताती हैं कि देश का भविष्य उज्जवल है क्योंकि जब विपरीत परिस्थितियां आई तब समाज प्रभावित नहीं प्रकाशित नजर आया उसने अपने अंदर के उजाले से समस्याओं के अंधकार को दूर किया ऐसा ही प्रकाश वान जीवन लॉक डाउन के समाप्त होने के बाद दिखाना होगा तब जाकर लॉक डाउन के दौरान किया गया संघर्ष सार्थक होगा।

बहरहाल प्रदेश में लगभग आधा दर्जन जिलों इंदौर, भोपाल, उज्जैन, खरगोन, जबलपुर, को छोड़कर बाकी जिलों में 3 मई से लॉक डाउन में ढील दी जा सकती है और कारोबार भी शुरू हो सकते हैं। शुक्रवार को राजधानी भोपाल के महत्वपूर्ण कार्यालय मंत्रालय विंध्याचल, सतपुड़ा में कर्मचारियों का आना और कामकाज शुरू करने का सिलसिला प्रारंभ हो गया है। 3 मई के बाद अधिकांश जिलों में स्थितियां तेजी से बदलेंगे अब समय आ गया है जब सरकार को प्रदेश के अंदर एक जिले से दूसरे जिले में जाने की अनुमति उन पीड़ित लोगों को दे देना चाहिए जो अपने अपने घर जाकर सुकून की जिंदगी जी सकते हैं। कई तरह की समस्याएं ऐसे लोगों के पास है कोई स्वयं बीमार है या किसी का कोई निकट का व्यक्ति बीमार है कुछ ऐसी भी परेशानियां देखने में आई की किसी महिला की डिलवरी होना है जिसमें उसके परिवार के सदस्यों खासकर महिलाओं का होना जरूरी है ऐसे लोगों को अनुमति देकर उन्हें सुरक्षित घर भेजने की व्यवस्था सरकार को करना चाहिए। इसी तरह कुछ लोग राज्य के बाहर दिल्ली, मुंबई, पुणे, बैंगलोर जैसे महानगरों में फंसे हुए हैं जहां एक एक दो दो कमरों में परिवार रह रहे हैं जबकि अपने प्रदेश और जिले में उनके बंगले खाली पड़े यदि ऐसे लोगों को सरकार घर भेजने की व्यवस्था कर दे तो भी स्वयं अपने घरों में क्वॉरेंटाइन रहकर सुकून की जिंदगी जी सकते हैं।

एक तरफ जहां सरकार गरीबों की मदद कर रही है पीड़ित संक्रमितओं का इलाज करा रही है। वहीं दूसरी ओर सब कुछ ठीक होते हुए भी अधिकांश लोग अपने घर पहुंच न पाने के कारण कष्ट भरी जिंदगी जी रहे हैं उनके परिवार के सदस्य और रिश्तेदार भी परेशान हैं सरकार को समझना चाहिए कि देशवासियों ने देश का भरपूर सहयोग किया है लेकिन अब ऐसी ही परिस्थितियों के चलते लॉक डाउन हो समाप्त करने के लिए विभिन्न क्षेत्रों से आवाजें उठने लगी है। सरकार उनको सुने और पूरे टेस्ट कराने के बाद उन्हें जैसे भी बने अपने साधनों से या सरकारी साधन से सुरक्षित घरों को भेजने की व्यवस्था की जानी चाहिए।

कुल मिलाकर देशवासियों ने जिस तरह से सुविधाओं से प्रभावित हुए बगैर लॉक डाउन का पालन पूरी शिद्दत से किया है अनेक प्रकार के मानसिक और शारीरिक कष्ट झेले हैं कहीं-कहीं यह कष्ट कोरोना से पीड़ित या संक्रमित व्यक्ति से ज्यादा कष्टप्रद रहे हैं अब सरकार ऐसे लोगों की जरूर मदद करना चाहिए अन्यथा पीड़ितों की मदद करते करते सरकार परेशानियों से पीड़ित होने वालों की एक लंबी खोज तैयार कर देगी।

देवदत्त दुबे

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