करोनाकाल लॉकडाउन 2.0 का दिन सोलहंवां, नार्मल को बीमार बता, धन बटोरता मैनेजर माफिया

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जैसे कि बाक़ी सब बातों की तरह, हमने पहले भी यह बार बार लिखा है, कि यह करोना वायरस चीन द्वारा उसकी लेब में तैयार केमिकल हथियार है। इसका कोई उपचार नही है और इससे होने वाली मौतों का आँकड़ा बेहद कम है । मरीजों को किसी विशेष उपचार की भी जरुरत नहीं, और यही आज का सच भी है, कि बीमार से अधिक तो, बिना लक्षण वाले संक्रमित लोग आपके आस पास घूम रहे हैं और अगर आप प्रॉपर मास्क पहनकर, सोशल एन्ड फिजीकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए, अपने अपने घरों में खुद को सुरक्षित कर लें, तो उचित खानपान और व्यायाम के साथ, खुद को संयमित और तनावमुक्त रखने से अवश्य ही इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है।

और यही हमने बहुत पहले से सबको समझाने की बार बार कोशिश की, कि अधिकांश लोग सेल्फ इमूनिटी, उचित देखभाल और आइसोलेशन से ही ठीक हो जाएँगे, उसके लिए विशेष अस्पतालों या वेंटिलेटर या आइसीयू की ज़रूरत नही के बराबर होगी और आज यही बात हमारे स्वास्थ्य मंत्री माननीय डॉक्टर हर्षवर्धन ने भी कह ही दी है कि अभी तक इस बीमारी से संक्रमित मरीजों में से मात्र ०।३३% गम्भीर बीमारों को वेंटिलेटर की, १।५% को ऑक्सिजन की और २।३४% को आइसीयू में भर्ती करने की ज़रूरत पड़ी है, सारे विश्व में जहां संक्रमितों लोगों की मौत का आँकड़ा सात प्रतिशत से भी अधिक है, वहीं भारत में यह आँकड़ा मात्र तीन प्रतिशत ही है और आज समाचारों में भी आंकड़ों के बाजीगर, सरकारी धन पर पल रहे, एक बड़े निजी कोविड केंद्र के मेडिकल मैनेजर ने भी बताया है कि उसके यहाँ भर्ती कुल ५१० मरीज़ों में से १९० रिलीव हो चुके हैं और किसी को भी आइसीयू, ऑक्सिजन या वेंटिलेटर की ज़रूरत नही पड़ी है।

यह आँखें खोल देने वाले आँकडें हैं, ध्यान दीजिए कि मार्च के पहले हफ़्ते में ही, इस बीमारी की शुरुआत में जब हम बार बार सबसे कह रहे थे कि बिना डरे, बिना पेनिक किए सोशल सेफ़ डिसटेंसिंग का पालन कर लीजिए, बाहर से आने वाले सारे लोगों को जो जहाँ है उसे वहीं, कम से कम १४ दिन के लिए आइसोलेट और क्वॉरंटीन कर दीजिए, उचित रहनसहन, खानपान और आमोदप्रमोद के साथ, फिर भले ही कोई कितना भी इम्पोर्टेंट क्यों ना हो, उसे भीड़ का हिस्सा नही बनने दिया जाये, लेकिन हकीकत में क्या हुआ, यह आज सबको पता है?

लोग बेधड़क आते जाते रहे और वोटबेंक से घबराई हुई सरकार के डर और आकस्मिक बजट पर मेडिकल मेनेजराई माफिया सक्रिय हो गया, सरकार में बैठे माफिया के लोग धन कमाने में जुट गए, वेंटिलेटर, अस्पताल, आइसीयू की जरूरतें ऐसे अवश्यम्भावी हो गईं, मानो सारे १३० करोड़ बीमार पड़ने और मरने वाले हैं? डरा भी यूँ ही दिया गया सबको और जिन्हें वाक़ई अन्य इलाजों, जाँच पड़ताल और दवाइयों की ज़रूरत थी, वो आज हर तरह से मोहताज होकर, घरों में सिमटे, तकलीफें भोगने, मरने को मजबूर हैं।

आज स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी एक आदेश ने भी हमारी इन सभी बातों पर मुहर लगा दी है, मेडिकल मैनेजराई माफिया और भ्रष्ट तंत्र की लूट पर भी मोहर लग गई है। स्वास्थ्य मंत्रीजी के ताजा बयान और नए आदेश के हिसाब से, और निजी अस्पताल वाले कोविड केंद्र के नार्मल को ठीक करने के नाम पर करोड़ों हजम कर जाने वाले आंकड़ों की तो वाकई सारी परतें खुल गई हैं।
क्या होता अगर गरीब देश के इन करोड़ों अरबों रुपयों का उचित संयोजन कर लिया जाता तो? इतने बड़े बड़े शॉपिंग मॉल्स, खेल मैदान, स्कूल कॉलेज, सरकारी अस्पतालों की खाली बिल्डिंगें पड़ी हुईं है, लॉकडाउन में भी और इसके बाद भी कई हफ्तों, महीनो या सालों तक, इनमे भीड़ तंत्र तो अब नहीं ही दिखेगा, फिर क्यों नहीं इन्हे ही सजा संवार लिया गया होता, इन माफियाओं पर लुटाये गए करोड़ों, अरबों रुपयों को यूँ बेदर्दी से निपटाने की बजाय? बुनियादी सुविधाएं ही तो जुटानी थी, रहनेखाने, आमोदप्रमोद की, बुनियादी चिकित्साओं की और यही तो आज के सरकारी आदेश में भी है कि जांच करेगा एमबीबीएस और इलाज होगा आयुष से, तो फिर?

और ये सब सुविधाएं, आपदा गुजर जाने के बाद, बच्चो, खिलाड़ियों, मरीजों, शेल्टर होम्स के काम आ जातीं? वैसे भी और कुछ तो किया भी नहीं गया, इन निजी कोविड सेंटरों में, एक केले और संतरे के साथ फोटो खिंचाते फोटो का एक और बड़ा फ्रेम बनाने की इस छपास के अलावा और क्या देखा दुनिया ने?
और अभी तक तस्वीर के पीछे की यही तो तस्वीरें हुआ करती थी, सब तरफ? दौरे करते नेता, मंत्री, धड़ाधड़ फोटो फलेश चमकाते, भर्ती गरीब मरीजों के हालचाल पूछते, एक केले के साथ फोटो खिंचवाते हुए, अपनी नेतागिरी चमकाते हुड़दंगी, डॉक्टर को मारते पीटते, अपने ढेर कु’पिताओं के जींस का सामूहिक हुनर दिखाते, अस्पताल के अंदर नर्स और स्टाफ़ से बततिमीजी करते, औचक निरीक्षण करते, पद के दम किसी को हड़काते, सीएमओ, सीनियर, इमरजेंसी वाले डॉक्टर को कुर्सी से उठाकर, खुद बैठने की धृष्टता करते समाज के ठेकेदार।

पर अचानक से ही सब गुमशुदा हो गए दिखते हैं। अस्पताल की तरफ जाने वाले गर्वीले मस्तक, कदम सबके ठिठक से गए हैं, क्या सबको अपनी जान का डर सता रहा है आज? पर फ्रंट पर खड़े डॉक्टर, नर्से, पैरामेडिक्स, सफाईकर्मी, प्रेस और पुलिस के बहादुर लोग तो आज भी बिना डरे, वहीँ खड़े हैं और डटे हुए हैं अपने कर्तव्य पर । पर क्या, ऐसा हमेशा नही होना चाहिए था, फिर क्यों नहीं होता आया था अभी तक, सोचियेगा।

और चलते चलते, आज एक और महान कलाकार चला गया, उसके जाने की खबर के साथ, उस मस्तमौला जिंदगी के ढेरों कहे अनकहे पहलु, बेरहम दुनिया ने उधेड़ कर रख दिए, कल जब इरफ़ान गए, तो किसी को भी उनके सच पर बखिये नहीं उधेड़ने पड़े, क्योंकि वो हमेशा वही कहते और करते रहे, जो उसके मन में था। उनके मन में प्यार दुलार सच और संसार बसता था, हर किसी के दुःख के लिए उनका दिल दुखता था और इसलिए इंसान तो इंसान, वो बेजुबानों के लिए भी रोते थे, वाकई इरफ़ान,
आप तो उन पथ्तरों को भी तराश मजसस्में बना गए
जिन्हे हिला पाने में ही कई लोगों के वजूद उखड गए!
मिलते हैं कल, तब तक जै रामजी की ।

डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक


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