लॉक डाउन का इक्कीसवाँ दिन चायनीज वायरस से ग्रस्त भारतीय मीडिया और उसमे झुलसता भारतीय जनमानस

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डॉ भुवनेश्वर गर्ग

चूँकि लॉकडाउन का दूसरा चरण शुरू होने जा रहा है तो, प्रथम लॉकडाउन के अंतिम दिन, कल छूट गई बात अब उस महामारी की, जो विगत सौ साल से गाज़ीयों, वामीयों द्वारा इस देश को तोड़ने, बर्बाद करने फैलाई जा रही है। देश का बंटवारा, आरक्षण, जाँतपाँत, मराठा, सिख कश्मीरी नरसन्हार इन्ही ताकतों ने पनपाया।

ये महामारी है, अफवाह की और इसके भयावह परिणाम सामने आ सकते हैं। दिल्ली के गरीबों के पलायन के बाद आज मुंबई में हजारो हजार की भीड़ का रेलवे स्टेशन पर जुट जाना कोई संयोग नहीं है, इसके पीछे इनकी मंशा सिर्फ और सिर्फ अराजकता पैदा करना है और यह हम सालों से देखते आ रहे हैं, फिर चाहे वो टीकाकरण का मसला हो या नसबंदी का।

आज इस गंभीर संकट काल में भी एक तरफ झूठी खबरें और दूसरी तरफ चायनीज वायरस को लेकर चीनी दुष्प्रचार। यह साफ-साफ देखा जा सकता है कि कुछ भारतीय मीडिया समूह, चीन के हितों की रक्षा में जोर-शोर से जुटे हैं। उन्हें इस बात की चिंता ज्यादा है कि इसे कोरोना वायरस कहा जाए, ना कि चायनीज वायरस।

एक चैनल ने चीन के राजदूत का विस्तृत बयान दिखाया, जिसमें उसने दावा किया कि हमने न तो वायरस को बनाया और न ही इसे फैलाया। इस खबर की हेडलाइन भी जानबूझकर ऐसी रखी, ताकि लगे कि वह बयान किसी भारतीय अधिकारी ने दिया है। यह रिपोर्ट एक तरह का विज्ञापन था कि भारत को भी अगर बीमारी को नियंत्रण में करना है तो वह चीन से मेडिकल किट आयात करे। इसने ही अमेरिका की एक यूनीवर्सिटी के हवाले से झूठी रिपोर्ट दी कि ‘भारत में अगले कुछ हफ़्तों में 25 करोड़ लोग इस वायरस की चपेट में आने वाले हैं’। लेकिन पोल खुलने के बाद, एक खेद जताने तक की औपचारिकता भी इसने जरूरी नहीं समझी। इसकी एक पत्रकार ने तो यह तक लिख दिया कि इसे चायनीज वायरस बोलना ‘नस्लवादी’ और ‘घृणित’ कर्म है।

सवाल ये उठता है कि अपने देश को असहिष्णु और अंधविश्वासी बताने वाले ये पत्रकार, चीन की छवि को लेकर अचानक इतने चिंतित क्यों हो उठे हैं? चीन ने पिछले कुछ साल में अपने यूसी ब्राउजर और टिकटॉक जैसे एप के जरिए पूरे विश्व में एक अलग तरह का दुष्प्रचार तंत्र विकसित किया है। कई जाने-माने पत्रकारों से लेकर नई पीढ़ी के छात्र-छात्राएं और आम लोग भी जाने-अनजाने इसमें शामिल हो गए हैं। कांग्रेसी, वामी इकोसिस्टम के कई पत्रकारों ने तो बाकायदा नौकरी छोड़कर यूसी ब्राउजर के लिए ही लिखना शुरू कर दिया है। आश्चर्य है कि इतने भर से उनकी खर्चीली जीवनशैली चल जाती है?

फेक न्यूज और देशविरोधी दुष्प्रचार के लिए हमेशा चर्चित रहने वाले एक विवादित पत्रकार ने अपने न्यूज पोर्टल पर इस साल फरवरी की शुरुआत में एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि अमेरिका इस वायरस को लेकर दुनिया भर में बिना वजह घबराहट पैदा करने की कोशिश कर रहा है। चायनीज वायरस के मामले में एक चैनल की भूमिका भी बेहद संदिग्ध है। इस विवादित न्यूज पोर्टल ने एक तथाकथित डॉक्टर के हवाले से रिपोर्ट दी कि भारत में महामारी तीसरे चरण में पहुंच चुकी है और भारत सरकार इस बात को छिपा रही है। लोगों ने जांच की तो पाया कि वह मेडिकल डॉक्टर नहीं, बल्कि पीएचडी वाला डॉक्टर है। खबर सही लगे इसके लिए उस चैनल ने उस व्यक्ति को सरकारी टास्क फोर्स का सदस्य बता डाला। इस फेक न्यूज की रिपोर्टर वही है, जिसने कुछ समय पहले एक सैनिक का झूठा स्टिंग ऑपरेशन किया था और बदनामी के डर से उस सैनिक ने आत्महत्या कर ली थी। संदिग्ध फंडिंग वाले ऐसे ढेरों न्यूज पोर्टल के अलावा क्षेत्रीय भाषाओं के कई चैनलों और अखबारों ने भी चीनी दुष्प्रचार में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी।

चायनीज वायरस को लेकर भारत में WHO और पश्चिमी मीडिया की भूमिका भी बड़ी अजीबोगरीब है। बीबीसी हिंदी भले ही ब्रिटेन के करदाताओं के खर्चे पर चलता है, लेकिन उसमें बैठे पाकी कॉमरेडों ने उसे भारत विरोधी और चीन का हितैषी बना रखा है। इसने रिपोर्ट प्रकाशित की कि कैसे खुद संकट से उबरने के बाद चीन ‘मानवता की सेवा’ कर रहा है। सबूत के तौर पर उसने बताया कि कैसे उसने स्पेन को मेडिकल किट मुहैया कराई है। जबकि हकीकत ये है कि किट एक व्यापारिक सौदे के तहत मोटी कीमत लेकर दी गई थीं और उनमें से भी 80% से ज्यादा खराब निकल चुकी हैं। अपने पक्ष में प्रचार कराने के लिए चीन भारत में बड़े पैमाने पर पैसे भी खर्च कर रहा है। कई तथाकथित सोशल मीडिया एक्टिविस्ट और कई ब्लॉगर भी इस बहती गंगा में हाथ धोने में जुटे हैं। ये सभी आपको बताते मिलेंगे कि कैसे वुहान से वायरस का संक्रमण शंघाई तक ना पहुंचना एक सामान्य घटना है और चीन को बेवजह शक से नहीं देखा जाना चाहिए।

चायनीज वायरस के इस संकट से देश कैसे बाहर आएगा, यह तो अगले कुछ सप्ताह में स्पष्ट हो ही जाएगा, लेकिन इतना तो तय है कि अगर इस फर्ज़ी खबरों और झूठे षड्यंत्रों के तंत्र को नहीं रोका गया तो करोना के अलावा और भी कई जोखिम बढ़ते ही चले जाएंगे, यहाँ तक की गृह युद्ध जैसी स्थिति भी। क्योंकि चीनी राजदूत से राहुलगाँधी की मुलाकात की बात हो या केजरीवाल का जमात, मुस्लिम तुष्टिकरण, ममता की गैरबंगाली, हिन्दू विरोधी सोच हो या कांग्रेस की सरकारी धन पर गड़ी निगाहें, इन सबका उद्देश्य एक ही है, लूट और देश का बिखराव। इसलिए अब यह कतई नहीं होना चाहिए कि देशविरोधी ताकतें और शत्रु, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में खुले आम अपनी गतिविधियां जारी रखें और देश और हम उन्हें चुपचाप ऐसा करते देखते रह जायें।

इनकी संजीवनी है छपास और अगर इन्हे छपास की खुराक नहीं मिलेगी तो ये अपने दावानल में स्वतः ही भस्म हो जाएंगे और यही तो सृष्टि के रखवाले, देवों के देव शिवजी ने भी भस्मासुर से करवाया था।

अब बात बीते बीस दिनों की, चलिए, आप हम उन पांच बातों का स्मरण करें, जो हमारे लिए बेहद जरुरी थी, लेकिन हम उन्हें भूल चुके थे।
(मै भूल गया था कि मै भी इंसान हूँ, पर मशीन बना रहा, भूल गया धूप में मेहनत करना, शरीर को कष्ट देना, सुबह जल्दी उठना और प्रकृति का लाभ लेना, सूर्य नमस्कार और डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज़, अपने आसपास साफ़ सफाई और पेड़पौधों प्रकृति का संवर्धन करना, तनावमुक्त करने वाले पशुपक्षियों, फूल पौधों का ख्याल रखना)

उन पांच बातों का भी उल्लेख करें, जिन्हे भूलना चाहते है।
(में भूलना चाहता हूँ, उन गलतियों को, जो मुझसे हुई मेरी खिलाफत करने, मेरी पीठ में छुरा भोंकने वालो को, मुझे नुकसान पहुँचाने वालों को)
और उन पांच बातों का, जिनके लिए आप कृतज्ञता महसूस करते हैं और उन्हें धन्यवाद देना चाहते हैं ?
(में धन्यवाद देना चाहूंगा अपने मातापिता, बन्धुबांधव, सखा, मित्र, पत्नी, अपने बच्चो, पेट्स और अपने इष्ट सहित उन सभी का जिन्होंने मेरे अस्तित्व को बनाये रखा, प्रकृति का, सूर्य का और पंचतत्व अग्नि, वायु, जल, धरती और आकाश का, जिनसे में बना और फिर उन्ही में विलीन हो जाऊँगा।

और हाँ, अब जबकि जनहित और देशहित में लॉकडाउन तीन मई तक बढ़ा दिया गया है तो सबके लिए यह भी समझना बहुत जरुरी हो गया है, भले ही आने वाले दिनों में बंधन खुल जाए, लेकिन संकट लंबा चलना तय है और लॉक डाउन खुलने के बाद के कई महीनो तक आम आदमी को क्या करना चाहिए और किन बातों का ध्यान रखना बहुत जरुरी होगा ?
क्योंकि मशीने, डिस्पोसब्लेस, अस्पताल की साफ़ सफाई, बायोमेडिकल वेस्ट का निपटारा और सेनिटाइज़शन का काम तो अस्पताल क्लिनिक डॉक्टर्स सरकारें कर ही लेंगी लेकिन आम आदमी क्या करेगा ?
तो जुड़ते रहिये, पढ़ते रहिये, मिलते हैं कल। तब तक जय रामजी की।

बांद्रा स्टेशन के बाहर भीड़

(ये सबकुछ दिल्ली की तर्ज पर होता दिख रहा है। दिल्ली में अचानक से रातों-रात बसों को लगाया गया और घोषणा की गई कि मजदूरों को यूपी सीमा तक छोड़ा जाएगा और वहाँ से वो अपने घर जा सकते हैं। उनके घरों की बिजली-पानी भी काट दी गई। इसके बाद तुरंत यूपी की कुछ घटनाओं को आधार बना कर आप नेता राघव चड्ढा ने ये आरोप लगाने में देरी नहीं की कि यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के इशारे पर पुलिस मजदूरों को पीट रही है और उन्हें दोबारा दिल्ली न जाने की हिदायत दे रही है। मुंबई में भी ऐसा ही हुआ।)


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