सहायता ज़रूर करें परन्तु किसी के स्वाभिमान को ठेस न पहुंचाएं
भारत वर्ष में जहाँ बड़ी संख्या में ग़रीब व बेसहारा लोग रहते हैं वहीं इस देश को दानी सज्जनों के देश के रूप में भी जाना जाता है। पूरे विश्व में फैले भारतीय मूल के दानी सज्जनों की वजह से ही आज भारत के करोड़ों लोग प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से न केवल रोटी,कपड़ा व मकान जैसी ज़रूरी सुविधाएं हासिल कर पाते हैं बल्कि इन्हीं के सहयोग से प्रतिवर्ष देश की लाखों ग़रीब कन्याओं का विवाह संपन्न होता है। लाखों ग़रीब लोगों के लिए दवा इलाज की व्यवस्था भी होती है। अनेक समाज सेवी संगठन ग़रीबों के बच्चों को शिक्षा जैसी अति महत्वपूर्ण सुविधा भी उपलब्ध कराते हैं। इस तरह के अनेकानेक समाजसेवी व धर्मार्थ संगठन पूरे देश में संचालित हो रहे हैं। किसी समय में यात्रियों के लिए मुफ़्त ठहरने के लिए धर्मशाला के निर्माण की अवधारणा इसी देश की देन है। आज भी जब कभी देश के ऊपर किसी तरह की प्राकृतिक विपदा आती है तथा देश या राज्य की सरकारें अथवा कोई समाजसेवी संगठन उस विपदा से प्रभावित लोगों की साहयतार्थ दान दिए जाने का आवाह्न करता है तो भारतीय दान दाताओं द्वारा बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया जाता है। इस मानवतावादी कार्य को भारतीय समाज ‘पुनीत कार्य’ के रूप में देखता है।
आज के दौर में देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व एक अभूतपूर्व संकट के दौर से गुज़र रहा है। कोरोना वायरस रुपी महामारी के चलते तथा इससे बचाव हेतु किये जाने वाली लॉक डाउन जैसी राजकीय व प्रशासनिक व्यवस्थाओं ने न केवल करोड़ों लोगों को बेरोज़गार कर दिया है बल्कि भारत जैसे देश में करोड़ों लोग घर से बेघर भी हो चुके हैं। भारत में 14 अप्रैल तक की लॉक डाउन की जो अवधि घोषित की गयी थी उसे बढ़ाकर 3 मई कर दिया गया है। लॉक डाउन की इन घोषणाओं की वजह से पूरे देश में अपनी रोज़ी रोटी कमाने हेतु अपने घरों को छोड़ अन्य शहरों व राज्यों में जाने वाले करोड़ों लोग अकस्मात ही बेसहारा हो गए हैं। कल कारख़ाने,व्यवसायिक केंद्र सभी सरकारी व ग़ैर सरकारी कार्यालयों की बंदी तथा सार्वजनिक परिवहन सञ्चालन के ठप्प होने के चलते करोड़ों लोगों के सामने रोटी,कपड़ा,मकान तथा स्वास्थ्य सेवाओं का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। लाखों छात्र व छात्राएं अचानक स्कूल कॉलेज बंद हो जाने की वजह से छात्रावासों से भी निकाल दिए गए हैं और परिवहन व्यवस्था बंद होने के चलते अपने घरों को भी नहीं जा पा रहे हैं।
इस अभूतपूर्व संकट के दौर में एक बार फिर जहाँ सरकारें इन बेसहारा लोगों तक राशन व भोजन आदि पहुँचाने हेतु अपनी कमर कस चुकी हैं वहीँ पूरे देश के अनेकानेक समाजसेवी संगठन तथा दानी सज्जनों के अनेक छोटे बड़े ग्रुप राष्ट्रव्यापी स्तर पर इन निराश्रित हो चुके लोगों को राशन,भोजन यहाँ तक कि नक़द आर्थिक सहायता पहुँचाने का काम कर रहे हैं। परन्तु हर अच्छाई की आड़ में जिस तरह नकारात्मकता का भी कोई न कोई पहलू अपनी जगह बना लेता है उसी तरह आज के इस महामारी के संकटपूर्ण दौर में भी अनेक लोग अपनी नकारात्मक सोच व कृत्य को छोड़ नहीं पा रहे हैं। इस तरह के अनेक समाचार सुनाई दे रहे हैं कि कुछ लोग अपनी युक्ति व छल कपट के बल पर असहाय लोगों के लिए बांटा जाने वाले राशन व रोज़मर्रा की ज़रूरतों के सामान का भण्डारण कर उसे दुकानों पर ले जाकर बेच रहे हैं। ऐसा करने वाले स्वार्थी व ग़ैर ज़िम्मेदार लोग यह भूल जाते हैं कि वे किसी ज़रूरतमंद के अधिकारों पर डाका डाल रहे हैं। उनकी इस हरकत की वजह से कोई दूसरा ज़रुरत मंद व उसका परिवार भूखा रह सकता है।
इसी तरह दानी सज्जनों में कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें दान देने का शौक़ तो ज़रूर है परन्तु वे यह भी चाहते कि लोगों को उनके दानी होने का पता भी ज़रूर चले। इस्लामी जगत के अति प्रतिष्ठित महापुरुष हज़रत अली ने फ़रमाया है कि यदि आप एक हाथ से दान करें तो आपके दूसरे हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए कि आपने दान दिया है। वे ये भी कहते हैं कि दान लेने वाले की आँखों से ऑंखें मिलाकर भी नहीं देखना चाहिए क्योंकि वह मजबूर व्यक्ति दान स्वीकार करते समय बहुत शर्मिंदगी महसूस करता है इसलिए दानदाता को हमेशा अपनी नज़रें नीची कर के ही दान देना चाहिए। परन्तु आज के इस बदलते दौर में अनेक ऐसे तथाकथित दानी सज्जन पैदा हो गए जो किसी मजबूर को सहायता पहुंचाते वक़्त इस तरह फ़ोटो सेशन करवाते हैं,वीडीओ बनवाते व सेल्फ़ियाँ लेते हैं गोया वे उसकी मदद नहीं कर रहे बल्कि उसे कोई अवार्ड या सम्मान दे रहे हों। दानदाताओं को यह भी सोचना चाहिए कि मजबूरी के मारे यह लोग जो आज अपने व अपने परिवार के लोगों के पेट की आग बुझाने के लिए लोगों द्वारा दी जा रही सहायता प्राप्त करने के लिए लाइन लगाने के लिए मजबूर हैं उनका अपना भी कोई सम्मान व स्वाभिमान है। और यदि आप इनके हाथों में दो चार सौ रूपये की कोई राशन सामग्री थमा कर या खाने का पैकेट देकर उस मजबूर के साथ सामग्री देते हुए अपनी फ़ोटो खिंचवा रहे हैं तो भले ही आप स्वयं को दानी जता रहे हों परन्तु हक़ीक़त में यह अधर्म भी है और छिछोरेपन की पराकाष्ठा भी। यह कृत्य हालात के मारे हुए किसी मजबूर व्यक्ति की मजबूरी का मज़ाक़ उड़ाना है। इसे न ही पुण्य कहा जा सकता है न ही दान। यह सरासर ढोंग व दिखावा है। ख़बर है कि कुछ राज्य सरकारों ने इस तरह के ढोंगी दानियों द्वारा मजबूर लोगों को दान देते समय फ़ोटो खिंचवाने व उन्हें वायरल करने पर रोक लगा दी है। वास्तव में यह सराहनीय क़दम है। प्राकृतिक आपदा की इस संकटकालीन घड़ी में बढ़ चढ़कर दान दीजिये , ज़रूरत मंद लोगों की हर संभव मदद कीजिये परन्तु इसका दिखावा कर, मजबूरों के साथ सहायता सामग्री देते हुए फ़ोटो आदि खिंचवाकर उसे रुस्वा मत कीजिये व उनके स्वाभिमान को ठेस मत पहुंचाइये। याद रखिये आपकी सहायता को कोई देखे या न देखे परन्तु ईश्वर-अल्लाह यदि है तो वह ज़रूर देख रहा है। ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ को ही ख़िदमत-ए-ख़ुदा समझिये।
निर्मल रानी