मातृभाषाओं के प्रयोग के अभाव से हमें हुई है बहुत हानि : राज्यपाल

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डॉ अजय ओझा।

राज्यपाल ने ए०एस० कॉलेज, देवघर में “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को किया संबोधित।

राज्यपाल ने ए०एस० कॉलेज, देवघर में झारखण्ड राज्य खुला विश्वविद्यालय के स्टडी सेंटर का किया उद्घाटन।

झारखंड राज्य खुला विश्वविद्यालय का स्टडी सेंटर की स्थापना होने से आसपास के लोगों को मिलेगा काफी लाभ।

रांची / देवघर, 20 नवंबर ए०एस० कॉलेज, देवघर में “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए राज्यपाल-सह-झारखंड राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति का रमेश बैस ने कहा कि मुझे विश्व प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबानगरी देवघर स्थित ए०एस० कॉलेज में “राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन में आप सभी के बीच सम्मिलित होकर अपार प्रसन्नता हो रही है। इस कार्यक्रम के आयोजन के लिए ए०एस० कॉलेज, देवघर, इकोनॉमिक एसोसिएशन ऑफ बिहार एवं द इंडियन इकोनॉमिक एसोसिएशन को मैं बधाई देता हूँ।

वैश्विक मंच पर किसी भी राष्ट्र की पहचान उसकी गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पर निर्भर करती है। उच्च स्तरीय शिक्षा के माध्यम से देश की प्रतिभा एवं संसाधनों के साथ सम्पूर्ण मानवजाति का कल्याण किया जा सकता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 इन्हीं विचारों को केन्द्र में रख कर बनाई गई है।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति विद्यार्थियों के उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित करने वाली अवधारणा है। यह शिक्षा नीति हमें हमारी जमीन से जोड़ती है। यह नीति दूसरी भाषा का विरोध नहीं करती और मातृभाषा को अपनाने पर बल देती है, क्योंकि हमारी सोच, संस्कार, व्यवहार हमारी मातृभाषा से पूरी तरह से जुड़े हुए हैं। इस शिक्षा नीति के लागू होने के बाद हमारे विद्यार्थी भाषायी कारणों से पीछे नहीं रहेंगे। यह पहली शिक्षा नीति है जो व्यवहारिक एवं राष्ट्र हित में है। इसमें ज्ञान की कद्र की गई है। नई शिक्षा नीति से बच्चे विद्यालय जाने के लिए प्रेरित होंगे। इस शिक्षा नीति के माध्यम से वर्तमान औपनिवेशिक शिक्षा प्रणाली को बदलने में सहायता मिलेगी। जहाँ वर्षों से हमारी शिक्षा नीति केवल नौकरी की चाह रखने वाले युवाओं को तैयार कर रही थी, नई नीति ऐसी शिक्षा प्रणाली विकसित करेगी जो युवाओं को आत्मनिर्भर और जॉब क्रियेटर बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। यह शिक्षा नीति चारित्रिक उत्थान की भी बात करती है।

एक अच्छा शैक्षणिक संस्थान उसे माना जाता है जहाँ हर विद्यार्थी के सीखने के लिए अच्छे बुनियादी ढ़ाँचे और उपयुक्त संसाधन उपलब्ध कराए जाते हैं, वहाँ के शिक्षक शिक्षा के प्रति समर्पित होते हैं, वे अपने विद्यार्थियों के लिए अपनी संतान की भांति चिंतनशील रहते हैं तथा उनका सच्चा पथ-प्रदर्शक बनते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 इन्हीं मापदण्डों की परिकल्पना है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति मात्र एक नीतिगत अभिलेख नहीं है, अपितु यह भारत के शिक्षा क्षेत्र में काम करने वाले समस्त विद्यार्थियों, शिक्षकों और नागरिकों की आकांक्षाओं का प्रतिबिंब है। नई नीति के आधारभूत सिद्धान्तों में तार्किक निर्णय लेने और नवाचार को प्रोत्साहित करने के लिए रचनात्मकता तथा महत्त्वपूर्ण सोच सम्मिलित है। इस शिक्षा नीति में शोध गतिविधियों पर विशेष बल दिया गया है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस शिक्षा नीति में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि अनुसंधान वही अच्छा कर सकता है जो अपनी भाषा में सोचता है। ऐसा इसीलिए है क्योंकि मौलिक विचार क्षमता अपनी भाषा में ही विकसित होती है और इसका आधार तो प्रारम्भिक शिक्षा से ही तय हो जाता है।

प्रारम्भिक कक्षाओं में मातृभाषा का प्रयोग विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास में सहायक होता है। मातृभाषाओं के प्रयोग के अभाव में हमलोगों की बड़ी हानि हुई है। यदि आरम्भिक अवस्था में विद्यार्थी की शिक्षा किसी अन्य भाषा में होती है तो उसकी मौलिक चिन्तन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। ऐसी शिक्षा उसे समाज से, उसके इतिहास से, उसकी संस्कृति से विलग कर देती है। यह शिक्षा नीति मात्र क्लासरूम तक सीमित रखने पर बल नहीं देती, अपितु प्राप्त ज्ञान को व्यावहारिक धरातल पर उतारने की बात भी करती है। व्यावहारिक ज्ञान मनुष्य को महान बनाने की क्षमता रखता है। वस्तुतः अगर व्यक्ति को महान बनना है तो यह आवश्यक है कि उसकी चिन्तन क्षमता, तर्क क्षमता के साथ निर्णय लेने, विश्लेषण करने एवं स्मरण की क्षमता विकसित हो। यह शिक्षा नीति इन्हीं मुद्दों पर बल देती है।
उच्च शिक्षा के स्तर पर एक नया दृष्टिकोण अपनाया गया है। अब एक छात्र अगर एक विषय के रूप में तकनीकी अथवा विज्ञान के विषय का चयन करता है तो वह दूसरे विषय के रूप में मानविकी या समाजिक विज्ञान या फिर कोई और विषय का चयन कर सकेगा। विज्ञान, वाणिज्य व कला के ही विषयों तक ही सीमित रहने की बाध्यता खत्म हो गई है। हमारे विद्यार्थी अब अपनी इच्छा के मुताबिक कोई भी विषय ले सकते हैं। इसमें विद्यार्थी के रुचि का विशेष ध्यान रखा गया है। ऐसा होने से उस छात्र के बहुमुखी विकास की संभावना अधिक प्रबल हो जाती है। कोई छात्र अगर पाठ्यक्रम पूर्ण होने के पूर्व बीच में पढ़ाई छोड़ता है तो उसके लिए एकेडमिक बैंक ऑफ क्रेडिट सिस्टम की व्यवस्था है। अर्थात विद्यार्थी की पढ़ाई जहाँ से छूट गई थी, वहीं से वह सीधे नामांकन लेगा।

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में विद्यार्थियों की रुचि को ध्यान में रखकर उनके कौशल विकास पर बल दिया गया है। इसमें पारम्परिक शिक्षा पर बल देते हुए विद्यार्थियों को व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया है जो आत्मनिर्भर भारत के सपने को साकार करने में सहायक होगा। झारखण्ड राज्य में झारखण्ड राज्य खुला विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है और आज यहाँ इस विश्वविद्यालय का स्टडी सेंटर की स्थापना भी हो रही है। इस स्टडी सेंटर की स्थापना होने से आसपास के लोगों को काफी लाभ मिलेगा।
 एक बार पुनः ऐसे गंभीर और प्रासंगिक विषय पर राष्ट्रीय सम्मेलन के आयोजन के लिए आयोजकों को बधाई व शुभकामनाएँ देता हूँ।


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