संस्कृत दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है : राज्यपाल

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डॉ अजय ओझा।

संस्कृत दिवस पर बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित सेमिनार में राज्यपाल रमेश बैस ने लिया भाग।

रांची / धनबाद, 13 अगस्त । बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद “भारतीय शिक्षण परंपरा एवं संस्कृत” विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित करते हुए राज्यपाल रमेश बैस ने कहा कि कल संस्कृत दिवस था और बिनोद बिहारी महतो कोयलांचल विश्वविद्यालय, धनबाद द्वारा कल से तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के आयोजन के लिए मैं आयोजकों को बधाई देता हूँ। मुझे “भारतीय शिक्षण परंपरा एवं संस्कृत” पर आयोजित इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में आप सभी के बीच आकर अपार खुशी हो रही है। वर्ष 2000 ईसा पूर्व में प्राचीन इंडो आर्यों द्वारा संस्कृत को एक बोली के रूप में इस्तमाल किया गया था। इसे वैदिक संस्कृत के रूप में भी जाना जाता है। संस्कृत भाषा भारत के प्राचीन ज्ञान-साम्राज्य का वैभव और कई ज्ञान विधाओं की जननी कहा जाता है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत दुनिया की सबसे समृद्ध भाषा है जिसने देश और दुनिया की कई भाषाओं को जन्म दिया है। संस्कृत का रिश्ता भारत की उस अनूठी संस्कृति, परंपरा और संस्कारों से रहा है जिसके मूल में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना है जो आज के दौर में सबसे ज्यादा प्रासंगिक है। दुनिया भर में सिर्फ संस्कृत ही एक ऐसी भाषा है जो पूरी तरह सटीक है। इसका कारण इसकी सर्वाधिक शुद्धता है। एक रिपोर्ट के अनुसार इसे कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के लिए सबसे उपयुक्त भाषा माना गया है। भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के विकास में संस्कृत का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। प्राचीन समय में संस्कृत भाषा में ज्ञान प्राप्त करने के लिए विदेशों से भी लोग भारत आते थे। संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है।

राज्यपाल ने कहा कि मानव जाति की सबसे बड़ी पहचान और सबसे बड़ी उपलब्धि है भाषा। भाषा न होती, तो हम अन्य प्राणियों से केवल अपनी आकृति में ही भिन्न होते। लेकिन भाषा ने हमें पृथ्वी के सभी जीवों से सर्वथा भिन्न और सर्वथा विशिष्ट बना दिया है। भाषा के विकास के साथ मानव सर्वगुण-संपन्न बनता चला गया। भाषा के साथ ही मानव सभ्यताएं बनती चली गईं। भाषा और भूगोल का एक गहरा संबंध है। भाषा वास्तव में पारिस्थितिकी का ‘उत्पाद’ है। मिट्टी और जलवायु से बनती है कोई भाषा। यही कारण है कि भाषा भूगोल के अनुसार बदलती है। धर्म, जाति, पंथ अथवा समूहों से उसका मौलिक संबंध नहीं है। संस्कृति का भाषा से अटूट संबंध है और भाषा का संस्कृति से एक गहरा सरोकार है। भाषा के माध्यम से ही कोई संस्कृति अपने यश को समय की तरंगों पर बहाती है।

उन्होंने कहा कि संस्कृत से प्रभावशाली कोई भाषा संसार में नहीं हुई। मानव सभ्यताओं के इतिहास में ज्ञान-विज्ञान और दर्शनशास्त्रों से भरे ग्रंथों और उत्कृष्टतम साहित्य का जितना सृजन संस्कृत भाषा ने किया है, उतना आज तक किसी भी अन्य भाषा के लिए संभव नहीं हुआ है। पर विडंबना यह है कि संस्कृत आज विलुप्त हो चुकी है या हो रही है और जिस भारतीय सभ्यता-संस्कृति को उसने हजारों वर्षों से संभाल कर रखा है, वही उससे पीछा छुड़ाने का प्रयास कर रही है। लेकिन संस्कृति का वैभव इतना विराट है कि आज भी दुनिया की कोई भाषा उसके सामानांतर खड़ी नहीं हो पाई।संस्कृत का शिक्षण आकर्षक होना चाहिए, उसकी गुणवत्ता में सुधार होना चाहिए और संस्कृत में अनुसंधान अधिक क्रियाशील होना चाहिए। संस्कृत को आधुनिक विषयों से जोड़ना, समसामयिक विषयों पर साहित्य का विकास करना, उपलब्ध ग्रंथों का वैज्ञानिक अध्ययन जरूरी है। हमें इन कार्यों को प्राथमिकता देनी होगी।

उन्होंने कहा कि कुछ महीने पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने  ‘मन की बात’ कार्यक्रम में संस्कृत भाषा के वैभव और उसके पुनः उभरते वैश्विक परिदृश्य पर बात की थी। विश्व की नज़रों में भारतीय संस्कृति के लिए वर्तमान में जो सम्मान है, उसके मूल में कहीं न कहीं संस्कृत भी है, जिसने हमारी भारतीय विद्वता का सार्वभौमिक परिचय कराया।संस्कृत, अंकगणित, बीजगणित, रेखागणित, ज्यामिति, खगोलशास्त्र, भौतिकी, रासायनिकी, आयुर्वेद, दर्शनशास्त्र आदि सभी की जननी संस्कृत ही है। अतः संस्कृत का पुनरुत्थान जरूरी है। प्रधानमंत्री जी ने संस्कृत का सूरज चढ़ने की बात भी कही है। इसलिए आप सबका दायित्व बनता है कि आप लोग संस्कृत का पुनरुत्थान करने के लिए समुचित प्रयास करें, तभी संस्कृत दुनिया के लिए भारत का सर्वश्रेष्ठ उपहार होगा। संस्कृत भाषा के रचनात्मक वैभव से भिज्ञ लोग इस प्राचीनतम भाषा को स्कूलों और विश्वविद्यालयों में पढ़ा रहे हैं। यूरोप में संस्कृत इसलिए पढ़ाई जा रही है कि इसके स्पंदन से विद्यार्थियों का मष्तिष्क अधिक प्रखर और रचनात्मक होता है। थाईलैंड और ऑस्ट्रेलिया में संस्कृत को उत्कृष्ट रचनाधर्मिता के लिए आवश्यक मानते हैं। संस्कृत शब्दों के उच्चारण से तंत्रिका तंत्र झंकृत होता है, जिससे मष्तिष्क की सक्रियता और सृजनशीलता में वृद्धि होती है।

अंग्रेजी के सुप्रसिद्ध पत्रकार और लेखक खुशवंत सिंह ने कहा था कि वह दूरदर्शन पर संस्कृत के समाचार अवश्य सुनते थे, क्योंकि इससे उन्हें एक अलग प्रकार की आनंदपूर्ण अनुभूति होती थी, जबकि उन्हें उसका अर्थ समझ में नहीं आता था। संस्कृत का विकास करने वाली और संस्कृत से सुसंस्कृत होने वाली संस्कृति आज के युग में भी विश्व शांति और सामजिक विकास का जागरण करती है। संस्कृत के विकास से भारत के विश्वगुरु बनने का स्वप्न तो साकार होगा ही, दुनिया भी शांति के साथ समग्र विकास के पथ पर अग्रसर होगी। हमारे शिक्षाविदों को संस्कृत विषय सीखने के लिए लोगों को प्रेरित करना चाहिए। अन्य भारतीय भाषाओं की तरह, संस्कृत को दैनिक जीवन में आपसी बातचीत में व्यवहार में लाने का प्रयास करना चाहिए।

राज्यपाल ने अंत में कहा कि मुझे आशा है कि इस संगोष्ठी में “भारतीय शिक्षण परंपरा एवं संस्कृत” के संदर्भ में व्यापक विचार-विमर्श होगा और सभी अपनी समृद्ध विरासत को जान सकेंगे। एक बार पुनः मैं इस संगोष्ठी की पूर्ण सफलता की कामना करता हूँ तथा आयोजकों को बधाई देता हूँ।
जय हिन्द! जय झारखंड!


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