कोरोना से तो बाद में मरेंगे पहले भूख से ही मर जाएंगे

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गुना, 10  अप्रैल (हि.स.)। कोरोना के संक्रमण से जनता को बचाने लॉक डाउन का निर्णय सरकार का सही है, लेकिन इसे ज्यादा दिन झेलने की स्थिति में मजदूर वर्ग व रोज कमाने खाने वाले लॉन्ड्री  ड्राई क्लीनर, हेयर डे्रसर बिल्कुल भी नहीं हैं। इनके पास जो जमा पूंजी थी वह भी धीरे-धीरे खत्म हो चुकी है। अब उनके पास दो जून की रोटी की व्यवस्था भी नहीं बची है। यह पीड़ा चर्चा करते हुए तीनों वर्गों के लोगों ने बयां की है। इनका कहना था कि उन्हें इस पेशे में काम करते हुए वर्षों बीत गए, लेकिन लॉक डाउन जैसे हालात आज तक नहीं देखे। यहां तक कि नोटबंदी का फैसला भी सरकार का ऐतिहासिक था, लेकिन उस समय रोजगार छिना नहीं था, भूखे मरने की नौबत भी नहीं आई थी। भले ही कुछ माह तक नकदी की समस्या बनी रही, परंतु आज जैसी खतरनाक स्थिति का सामना करना लगभग असंभव हो गया है। लॉन्ड्री ड्राई क्लीनर संचालकों का कहना है कि लॉक डाउन के दौरान सब्जी व फल विक्रेताओं को गली-गली घूमकर सब्जी व फल बेचने की छूट है तो ऐेसे में उन्हें अनुमति क्यों नहीं दी जा रही है। प्रशासन भले ही गरीब व जरुरतमंदों को भोजन उपलब्ध करवाने का दावा कर रहा है, लेकिन हकीकत में अभी भी कई जरुरतमंदों तक यह सहायता नहीं पहुंच रही है। यही नहीं वे अपनी पीड़ा भी लोगों को खुलकर नहीं बता पा रहे हैं। कुल मिलाकर तीनों वर्ग के लोगों का कहना है कि यह लॉक डाउन असहनीय हो गया है। कोरोना वायरस उनकी जान बाद में ले पाएगा लेकिन उससे पहले वे भूख से ही दम तोड़ देंगे। जरा इनकी भी पीड़ा सुनेंमेरी हेयर ड्रेसर की शॉप किराए से है। लॉक डाउन के बाद से वह बंद पड़ी है। परिवार  का भरण पोषण करने यही एक मात्र साधन था। जो पैसे थे वह भी खर्च हो गए। अब दो जून की रोटी की व्यवस्था करना भी मुश्किल हो रहा है। शासन-प्रशासन को इस ओर सोचना चाहिए। दीपक सेन, सैलून संचालकमैं पिछले 15 सालों से कपड़ों पर प्रेस करने का काम कर रहा हूं। इस दौरान मैंने नोटबंदी भी देखी, लेकिन लॉक डाउन जैसे हालात आज तक नहीं देखे। इस समय प्रेस करने वालों की हालत बेहद खराब है। दो जून की रोटी की व्यवस्था भी नहीं बची है।कमल सिंह रजक, लॉन्ड्री ड्राइ क्लीनर


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