मध्य प्रदेश से उत्तर प्रदेश को साधने की कोशिश

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देवदत्त दुबे।
उत्तर प्रदेश को चंबल से लेकर बुंदेलखंड और विंध्य तक मध्य प्रदेश की सीमाएं घेरे हुए है। यही नहीं एक दूसरे कि यहां रिश्तेदारों से लेकर राजनैतिक रिश्ते भी बने हुए हैं, जिसका चुनाव के दौरान असर भी होता है।
यही कारण है जब एक राज्य में चुनाव होता है तब दूसरे राज्य से मदद ली जाती है।

दरअसल किसी भी राजनैतिक घटनाक्रम का असर आसपास जरूर पड़ता है। ऐसा ही कुछ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक दूसरे राज्य का असर देखा गया है। मसलन मध्य प्रदेश में बसपा और सपा का जितना भी प्रभाव बना वह उत्तर प्रदेश में इन दलों के सत्तारूढ़ होने के बाद ही बन पाया। इसी तरह अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का आंदोलन का असर जितना उत्तर प्रदेश में हुआ उतना ही मध्यप्रदेश में भी दिखाई दिया। ऐसे अनेकों उदाहरण है जिसमें दोनों राज्यों की राजनीति एक दूसरे के राजनीतिक वातावरण से प्रभावित होती रही है। और देश के प्रमुख तक इन राज्यों में राजनीतिक वातावरण को बनाने के लिए दोनों ही राज्यों के नेताओं का उपयोग करते रहे हैं।

बहरहाल उत्तर प्रदेश में 2022 में विधानसभा के आम चुनाव होना है। जिसके लिए भाजपा और संघ अभी से कसरत कर रहे हैं। संघ प्रमुख मोहन भागवत इस समय चित्रकूट में डेरा डाले हुए हैं और 9 से 13 जुलाई तक संघ का यहां चिंतन शिविर चलना है। जिसमें मध्यप्रदेश की धरती से उत्तर प्रदेश के राजनीतिक माहौल को साधने की कोशिश की जाएगी। इसी तरह केंद्रीय मंत्रिमंडल के विस्तार में चंबल और बुंदेलखंड से प्रतिनिधित्व बढ़ाया गया है। संभल से अब तक केंद्रीय मंत्री के रूप में नरेंद्र सिंह तोमर महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री बने हुए हैं। वही इसी इलाके में दबदबा बनाए हुए पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया अब भाजपा सरकार केंद्रीय मंत्री बनाए गए हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ-साथ उनके पिता स्वर्गीय माधवराव सिंधिया का भी मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में अच्छा खासा प्रभाव रहा है। अंतिम समय भी वे कानपुर जाते समय हवाई दुर्घटना में दिवंगत हो गए थे। उनकी विरासत संभाल रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी दादी की तरह एक सरकार गिरा कर नई सरकार बनवाई। मध्यप्रदेश में भाजपा की सरकार बनवाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को कैबिनेट मंत्री बनाकर भाजपा ने मध्यप्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों के उन कांग्रेसी नेताओं को भी परोक्ष रूप से आफर दिया है, जो कांग्रेस में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं। केंद्रीय मंत्री बनने के बाद अब सिंधिया को भाजपा में अपना जनाधार इन दोनों राज्यों में दिखाना है। प्रदेश से दूसरी बार केंद्रीय मंत्री बने वीरेंद्र कुमार जहां सातवी बार के सांसद है वही अनुसूचित जाति वर्ग से आते हैं और वर्तमान में वे टीकमगढ़ लोक सभा क्षेत्र से सांसद है। जोकि उत्तर प्रदेश की बुंदेलखंड इलाके से लगा हुआ है और पिछली बार उत्तर प्रदेश के विधानसभा के आम चुनाव में वीरेंद्र कुमार ने कड़ी मेहनत की थी। थावरचंद गहलोत के मंत्री पद से हटाए जाने के बाद भी
वीरेंद्ररकुमार की केंद्रीय मंत्री बनने की संभावनाएं बढ़ गई थी।

कुल मिलाकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में अब प्रदेश से पांच केंद्रीय मंत्री प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। जिसमें नरेंद्र सिंह तोमर, प्रहलाद पटेल, फग्गन सिंह कुलस्ते, के साथ-साथ अब ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र कुमार भी शामिल हो गए हैं। अब इन मंत्रियों की चुनौती प्रदेश में विकास को गति देने की तो रहेगी ही सीमा से लगे उत्तर प्रदेश में भी पार्टी के पक्ष में राजनीतिक वातावरण बनाने की रहेगी।
फोटो नरेंद्र सिंह तोमर पहलाद पटेल फग्गन सिंह कुलस्ते ज्योतिरादित्य सिंधिया और वीरेंद्र कुमार


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