न्यूज़ रायबरेली:अनुभव साझा कर टीबी मरीजों की दिक्कत दूर कर रहे अर्जुन दस माह के इलाज में एमडीआर टीबी से पूरी तरह स्वस्थ होकर बने दूसरे मरीजों के मददगार

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जतिन कुमार चतुर्वेदी

टीबी को लेकर समुदाय में आज भी गलफहमी है कि यह लाइलाज बीमारी है जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है | नियमित इलाज, पौष्टिक आहार, समुचित देखभाल व सहयोग से यह पूरी तरह से ठीक हो जाती है | आपसी सहयोग बीमारी से लड़ने में ताकत देता है | यह कहना है महाराजगंज निवासी 26 वर्षीय टीबी चैम्पियन अर्जुन का | अर्जुन बताते हैं कि जब स्वास्थ्य विभाग ने टीबी चैम्पियन बनने के लिए कहा तो इसलिए तैयार हो गया कि अपने अनुभवों को साझा कर टीबी रोगियों को बता सकता हूँ कि टीबी का इलाज बीच में न छोड़ें | वह आज महसूस करते हैं कि अगर दिक्कतों की वजह से टीबी का इलाज बीच में छोड़ देता तो शायद आज कुछ और स्थिति होती |

अर्जुन दिल्ली में प्राइवेट नौकरी करते हैं और फोन पर ही क्षय रोगियों की काउंसलिंग करते हैं | जब वह महाराजगंज आते हैं तब टीबी रोगियों से मिलकर उन्हें सलाह-मशविरा भी देते हैं | अभी तक वह 14 क्षय रोगियों को परामर्श दे चुके हैं जो कि अब ठीक हो चुके हैं और वर्तमान में चार का इलाज चल रहा है।अर्जुन बताते हैं कि वर्ष 2021 में दिल्ली में ही बुखार आया, खांसी और सीने में दर्द भी रहता था।तीन महीने तक वहीं डाक्टर को दिखाते रहे लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ | उसके बाद नवंबर 2021 में महाराजगंज आए और यहाँ पर सीएचसी पर दिखाया | सीएचसी पर प्रारम्भिक जांच के बाद बलगम की जांच लखनऊ भेजी गई जिसमें एमडीआर टीबी की पुष्टि हुई और इलाज शुरू हुआ | शुरुआत के तीन माह तो दवा के सेवन का यह दुष्प्रभाव था कि उन्हें खाना खाने तक का मन नहीं करता था, उल्टी हो जाती थी, शरीर का रंग काला पड़ने लगा | घरवाले टोना-टोटका भी आजमाए लेकिन कोई आराम नहीं मिला | चिकित्सक ने बताया कि एक साथ दवा लेने के बजाय एक-एक करके थोड़ी-थोड़ी देर में दवा का सेवन करें लेकिन दवा खाना न छोड़ें | इसके साथ पौष्टिक आहार लेते रहें | इससे धीरे-धीरे यह दिक्कत दूर हो जाएगी | दवा का कोर्स पूरा होने के तीन से चार माह के बाद शरीर का रंग सामान्य हो जाएगा | चिकित्सक ने यह भी कहा कि नौ माह तक दवा चलेगी | इसके बाद बलगम की जांच फिर से लखनऊ भेजी जाएगी और जब तक रिपोर्ट निगेटिव नहीं आ जाती है तब तक तो दवा का सेवन करना ही है | डाक्टर के बताये अनुसार करने से तीन माह में आराम मिल गया | उल्टियाँ आना भी बंद हो गईं | इसके बाद दिल्ली जाकर नौकरी ज्वाइन की लेकिन मन में उलझन बनी थी कि आफिस में बताऊँ कि नहीं | कुछ समय बाद ऑफिस में बताया और वहाँ पर सभी ने पूरा सहयोग किया | इससे मुझे बल मिला और नियमित दवा सेवन व पौष्टिक आहार लेते हुए दिल्ली में नौकरी करता रहा | दवा कभी घर वाले भिजवा देते थे तो कभी खुद जाकर ले आता था | इस तरह लगभग 10 माह इलाज चला और रिपोर्ट निगेटिव आई | दवा खाना बंद करने के लगभग तीन माह बाद शरीर का रंग भी सामान्य हो गया | अब मैं बिल्कुल स्वस्थ हूँ | मेरा वजन भी बढ़ गया है | नियमित योगा भी करता हूँ | इलाज के दौरान पोषण के लिए हर माह 500 रुपये भी मिलते थे जिसका उपयोग फल, सब्जियां आदि खरीदने के लिए करता था |
अपने इन्हीं अनुभवों के आधार पर टीबी रोगियों को नियमित दवासेवन करने और पौष्टिक आहार लेने के बारे मेंबताता हूँ | इसके साथ हीयह भी बताता हूँ कि 500 रुपये जो पोषण के लिए मिलते हैं उसका उपयोग पौष्टिक भोजन के लिए ही करें |
इलाज के दौरान अर्जुन से सलाह लेकर ठीक हो चुके 22 वर्षीय राघव(बदला हुआ नाम) बताते हैं कि दवा के सेवन से उल्टी आना और भूख न लगना जैसी दिक्कतें हुई थीं | ऐसे में कई बार मन किया कि दवा का सेवन छोड़ दूँ जो होगा देखा जाएगा लेकिनजब अर्जुन का फोन आया और उन्होंने आपबीती सुनाई तो मुझे लगा कि इनके मुकाबले मेरी तो दिक्कत बहुत कम है | यह सोचकर जैसा अर्जुन कहते थे उनकी बातों को मानता रहा और आज बिल्कुल स्वस्थ हूँ | इलाज पूरा हो चुका है |


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