खबर लखनऊ:संगठन बनाम राजकुमार उर्फ बिट्टू बजरंगी

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जतिन कुमार चतुर्वेदी

दिनाँक 16 अगस्त 2023, सुबह 11 बजकर 46 मिनट पर अपने ऑफिशियल ट्विटर एकाउंट से विश्व हिंदू परिषद नें राजकुमार उर्फ बिट्टू बजरंगी के संबंध में एक ट्वीट किया मेरा आज का वही विषय है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एंव उसके राजनीति, समाज, धर्म… आदि क्षेत्रों में कार्य करने वाले अनुषांगिक संगठन विश्व हिंदू परिषद ,अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद , भारतीय जनता पार्टी …..आदि जैसे संगठनों की पहचान प्रमुख रूप से हिंदुत्व अथवा सनातन विचार से प्रेरित ही रही है। इसलिए नुपुर शर्मा जी के एक सत्य आधारित टिप्पणी से उनके साथ जो गलती संगठन नें की वापस राजकुमार उर्फ बिट्टू बजरंगी के साथ वही गलती दोहरानी नहीं चाहिए!
मै यह नहीं जानता कि राजकुमार उर्फ बिट्टू बजरंगी का जुड़ाव संघ अथवा उसके किसी अनुषांगिक संगठन से है अथवा नहीं किन्तु उसकी विचारधारा हिंदुत्व अथवा सनातन से अवश्य प्रेरित है इसलिए उसका समर्थन करना हमारा धर्म है। यदि हम उसका प्रत्यक्ष समर्थन किसी कारण अथवा मजबूरी वश न भी करें किन्तु उसका विरोध तो किसी भी दिशा में उचित नहीं है। संगठन कह सकता है कि मैनें उसका विरोध तो नहीं किया मात्र उसका संगठन से संबंधित होने से सार्वजनिक रूप से इंकार किया है। तब भी क्या अपने विचारधारा से संबंधित व्यक्ति को इस तरह से मझदार में छोड़ देना क्या उचित है?कोई भी संगठन आरोपों से बचना चाहता है किंतु जो संगठन मात्र आरोपों से बचने के लिए, अपनी साफ सुथरी छवि दिखाने के लिए अपने कार्यकर्ताओं अथवा वैचारिक सहयोगियों से संबंध होने से इनकार करता है वह संगठन धीरे-धीरे हाशिए पर चला जाता है क्योंकि कार्यकर्ता एंव वैचारिक सहयोगी ही किसी संगठन की नींव हैं, बिना इस नींव के संगठन की इमारत कभी भी मजबूत एंव बुलंद नहीं हो सकती, वह ताश के पत्ते से बनी इमारत की तरह कभी भी ढह सकती है।
यदि गोधरा की वजह से नरेन्द्र मोदी जी एंव अमित शाह जी को संगठन पहचानने एंव अपना मानने से इंकार कर देता तो क्या कभी केंद्र एंव राज्यों में पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार बन पाती? क्या अनुच्छेद 35A, 370 कभी खत्म हो पाता? क्या राम मंदिर का सपना कभी साकार हो पाता?शायद नहीं, इसलिए किसी भी संगठन को अपने कार्यकर्ताओं, वैचारिक सहयोगियों के साथ प्रत्यक्ष एंव सार्वजनिक रूप से परिणाम की बिना परवाह किए हुए मजबूती के साथ सदैव खड़ा होना चाहिए। यदि किसी कारणवश उनके में अपने कार्यकर्ताओं अथवा वैचारिक सहयोगियों के साथ खड़ा होने का दम न हो तो कम से कम उनका विरोध तो नहीं ही करना चाहिए।


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