मातृभाषा संस्कृति की संवाहक है और संरक्षक भी

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डॉ अजय ओझा।

सार्वजनिक जीवन में मर्यादा से रहें!

मातृभाषा संस्कृति की संवाहक है और संरक्षक भी। जिस समाज ने अपनी मातृभाषा का अपमान किया उसकी संस्कृति मिटने के कगार पर है। भारत विविधताओं में एकता का देश है। यहां के विभिन्न राज्यों में विभिन्न भाषायें बोली जाती है और सब मिलाकर ही भारतीय संस्कृति बनती है। जिस राज्य ने अपनी मातृभाषा को महत्व दिया उसकी संस्कृति उतनी ही जीवंत है। लेकिन महानगरों में रहने वाले लोग अपनी मातृभाषा में बात करना अपनी तौहीन समझते हैं। सरकारी स्कूलों में पढ़ना पढ़ाना पिछड़ेपन और गंवारुपन की बात समझी जा रही है। आधी हिन्दी आधी अंग्रेजी को मिक्स कर हिंग्लिश में बात करना और पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण कर अर्धनंगा होकर सार्वजनिक स्थलों पर घूमने की परिपाटी जिस तरह से दिनोंदिन बढ़ते जा रही है उससे पूरी भारतीय संस्कृति नष्ट होने के कगार जाती दिख रही है।

लेकिन जिस प्रकार किसी को मनचाही स्पीड में गाड़ी चलाने का अधिकार नहीं है, क्योंकि रोड सार्वजनिक है। ठीक उसी प्रकार किसी भी लड़की को मनचाही अर्धनग्नता युक्त वस्त्र पहनने का अधिकार नहीं है क्योंकि जीवन सार्वजनिक है। एकांत रोड में स्पीड चलाओ, एकांत जगह में अर्द्धनग्न रहो। मगर सार्वजनिक जीवन में नियम मानने पड़ते हैं।

भोजन जब स्वयं के पेट मे जा रहा हो तो केवल स्वयं की रुचि अनुसार बनेगा, लेकिन जब वह भोजन परिवार खायेगा तो सबकी रुचि व मान्यता देखनी पड़ेगी।

लड़कियों का अर्धनग्न वस्त्र पहनने का मुद्दा उठाना उतना ही जरूरी है, जितना लड़कों का शराब पीकर गाड़ी चलाने का मुद्दा उठाना जरूरी है। दोनों में एक्सीडेंट होगा ही।

अपनी इच्छा केवल घर की चारदीवारी में ही उचित है। घर से बाहर सार्वजनिक जीवन मे कदम रखते ही सामाजिक मर्यादा लड़का हो या लड़की उसे रखनी ही होगी।

घूंघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही गलत अर्धनग्नता युक्त वस्त्र गलत है। बड़ी उम्र की लड़कियों का बच्चों सी फ़टी निक्कर पहनकर छोटी टॉप पहनकर फैशन के नाम पर घूमना भारतीय संस्कृति का अंग नहीं है।

जीवन भी गिटार या वीणा जैसा वाद्य यंत्र हो, ज्यादा कसना भी गलत है और ज्यादा ढील छोड़ना भी गलत है।

सँस्कार की जरूरत स्त्री व पुरुष दोनों को है, गाड़ी के दोनों पहिये में संस्कार की हवा चाहिए, एक भी पंचर हुआ तो जीवन रूपी गाड़ी का एक्सिडेंट होगा।

नग्नता यदि मॉडर्न होने की निशानी है, तो सबसे मॉडर्न जानवर है जिनकी संस्कृति में कपड़े ही नही है। अतः जानवर से रेस न करें, सभ्यता व संस्कृति को स्वीकारें।

कुत्ते को अधिकार है कि वह कहीं भी यूरिन पास कर सकता है, सभ्य पुरुष को यह अधिकार नहीं है, उसे सभ्यता से बन्द टॉयलेट का उपयोग करना होगा। इसी तरह पशु को अधिकार है नग्न घूमने का, लेकिन सभ्य स्त्री को उचित वस्त्र का उपयोग सार्वजनिक जीवन में करना ही होगा।

अतः सभी से विनम्र अनुरोध है, सार्वजनिक जीवन मे मर्यादा न लांघें, सभ्यता से रहें। घरों में अपनी मातृभाषा में बात करें और बच्चों के अंदर सनातन सभ्यता संस्कृति के प्रति आदर और अनुकरण का भाव भरें।
जय भोजपुरी !


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