श्रीलंका में महाशिवरात्रि

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जयति भट्टाचार्या ।

भगवान शिव का देश, सोने की श्रीलंका, रावण की श्रीलंका पहले भगवान शिव की थी। एक मान्यता के अनुसार भगवान शिव ने विश्वकर्मा से कहा कि वह उनके और देवी पार्वती के विवाह के बाद रहने के लिए एक अति सुंदर स्थान का निर्माण करें। विश्वकर्मा ने सोने की लंका का निर्माण किया। गृह प्रवेश के दिन पंडित को बुलाया गया। वह और कोई नहीं रावण था। तब वह राक्षस राजा नहीं बना था। रावण को लंका की सुंदरता भा गई और उसने दक्षिणा में उस देश को मांग लिया। भगवान शिव ने रावण को दे दिया और वह रावण की लंका बन गई। रावण भगवान शिव के कट्टर भक्त बन गए।

इसलिए श्रीलंका में महाशिवरात्रि का पर्व नहीं मनाया जाएगा ऐसा नहीं हो सकता। महाशिवरात्रि के दिन शिव भक्त प्रातः काल से ही रस्मों की शुरूआत कर देते हैं। सबसे पहले वह स्नान करके अपने को शुद्ध करते हैं। साफ वस्त्र धारण करके वह पानी का घड़ा लेकर मंदिर जाते हैं। शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है। इसके अलावा शिवलिंग पर दूध और शहद भी चढ़ाया जाता है। इसके बाद आत्मा की शुद्धि के लिए वह शिवलिंग पर बेल और बेल की पत्तियां चढ़ाते हैं। इस पर वे सिंदूर लगाते हैं। इसे वह नैतिक गुणों की निशानी मानते हैं।
इसके पश्चात भगवान शिव की प्रार्थना होती है, फल भेंट किए जाते हैं, अगरबत्ती जलाई जाती है और तेल के दीए जलाए जाते हैं। हिंदुओं का मानना है कि भगवान शिव को चढ़ाई गई भेंट धन और मनोकामना की संतुष्टि एवं ज्ञान की प्राप्ति का प्रतीक है।

महाशिवरात्रि के दिन भव्य जुलूस निकलता है। भगवान शिव की सजाई हुई मूर्तियों को रोशनी से सुसज्जित रथ पर रखकर श्रीलंका की सड़कों पर जुलूस आगे बढ़ता है। भगवान शिव के श्लोक, गीत, भजन भी जुलूस का हिस्सा होते हैं। जुलूस में जा रहे लोग समाज के जरूरतमंद लोगों को उपहार भी देते हैं।
किसी पर्व, त्यौहार के दौरान हिंदू व्रत न रखें ऐसा नहीं हो सकता। वहां के हिंदू स्त्री और पुरूष दोनों ही व्रत रखते हैं परंतु महिलाओं की भक्ति व्रत में अधिक होती है। व्रत के दौरान वहां केवल पानी एवं दूध लिया जाता है। महाशिवरात्रि पर कुंवारी कन्याएं अच्छे विवाह एवं सुयोग्य वर के लिए व्रत रखती हैं, वहीं विवाहित महिलाएं लंबे विवाहित जीवन के लिए व्रत रखती हैं।



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