करोना काल लॉकडाउन 2.0 का चौदहंवां दिन : सच को नकारता देश का बाबूसाब
जिन बातों को हम पिछले दो माह से लगातार लिख रहे हैं, उनमे से एक यह थी कि यह करोना वायरस चीन द्वारा उसकी लेब में तैयार केमिकल हथियार है और उसका कोई उपचार नहीं है, यह दुनिया को महामारी से ग्रस्त कर, धन कमाने की लिप्सा मात्र है और बाद में यही बात नोबेल पुरुस्कार विजेता जापानी प्रोफेसर डॉ होन्जों ने भी कही।
दूसरी बात, जब ट्रम्प बाबूसाब ने वेक्सीन की खोज और क्लोरोक्विन दवा के फर्जी दावे करते हुए कही, तब भी हमने लिखा था कि शरीर के लिए बेहद नुकसानदायक क्लोरोक्विन दवा इस बीमारी का उपचार हो ही नहीं सकती और इसके उपयोग से, बीमार शरीर को फायदे की जगह नुकसान ज्यादा होंगे और यह भी बार बार लिखा था कि, किसी वायरस का कोई इलाज नहीं होता, यह आपके शरीर को मजबूती देने, इम्मून सिस्टम प्रगाढ़ करने के लिए प्रकृति, ईश्वरदत्त देवदूत हैं, आपका शरीर इन्ही देवदूत बैक्टीरिया, वायरस से अटा पड़ा है, यही हैं वो सृष्टि के कर्ताधर्ता, जिनसे आपका शरीर, आंतें, मनमस्तिष्क, विचारतंत्र चलता है और बेहद जरुरी विटामिन्स, एन्ज़ाइम्स भी बनते हैं, लेकिन अगर किसी वजह से यह सामंजस्य टूट जाए, जैसे किसी घोर बीमारी, एड्स, टीबी, कैंसर, डायबिटीस आदि में या बुढ़ापे में, तो ये वायरस जानलेवा भी साबित हो सकते हैं और आज पूरी दुनिया में यही, हो भी रहा है। और यह बात भी आज सारी दुनिया के विशेषज्ञों ने भी मान ली है। पूरी दुनिया में, दो महीनो के मरीजों के उपचार के परिणामों ने भी, यही साबित किया है, कि जिन मरीजों को क्लोरोक्विन दवा दी गई, उनमे ज्यादा मौतें हुईं हैं।
तीसरी एक और प्रमुख बात, हम सबको समझाने, बार बार लिख रहे थे, कि अपने शरीर की इम्मुनिटी मजबूत रखने के लिए गरम पानी, गरम चाय (इसके फिनॉल्स कम्पाउंड बेहद कारगर हैं), हल्दी, तुलसी, आंवला, नीम्बू, हरी, मिर्च, हरी सब्जियां, सफ़ेद की जगह काला नमक आदि के सेवन के साथ साथ, अगर आप सुबह की धूप में एक से दो घंटे योग, प्राणायाम, डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज़ करें, तो यह इम्मुनिटी बढ़ाने के साथ साथ हानिकारक बैक्टीरिया और वायरस का भी नाश करता है और यह भी आज अमेरिकी एजेंसियों ने स्वीकार कर लिया है।
और हमने यह भी लिखा था कि इम्मुनोथेरापी या प्लाज़्मा थेरापी को लेकर किसी तरह का कोई झूठा प्रचार या प्रसार नहीं किया जाना चाहिए, अभी यह एक दिवास्वप्न ही माना जाना चाहिए और लोकतंत्र में जनरक्षक, सार्थक मीडिया इस और हरसंभव प्रयास करे और मरीजों की चिता पर रोटियां सेकते धनपिचासों पर अंकुश भी लगा कर रखे, ताकि इस प्रयोग से मेडिकल मैनेजराई माफिया और बिकाऊ मीडिया किसी भी तरह के स्वार्थी, झूठे या कूटरचित कदम ना उठाने पाये, नहीं तो जैसे वैष्विक खोजें हमारे देश की होते हुए भी पेटेंट विदेशों ने करवा लिए और बेईमानी, नक़ल और अयोग्य अक्षम को नवाजते देश की फजीहत, उसके झूठे, नक़ल किये गए दस्तावेजों से आज़ादी के बाद विदेशों में कितनी हुई है, यह आपको ना पता हो तो किसी भी योग्य, कर्मठ, अनुसंधानकर्ता से पूछ कर देखिये।
और हमारी इस बात पर भी आज स्वास्थ्य मंत्रालय ने मोहर लगा दी है, यह कह कर, कि करोना का कोई उपचार नहीं है और ना ही वेक्सीन और ना ही प्लाज़्मा थेरापी की कोई प्रमाणिकता है। इसकी सफलता के अभी ना तो कोई प्रमाण हैं और ना ही इसे कहीं भी इलाज के रूप में कोई मान्यता दी गई है। चूँकि इस बीमारी का कोई उपचार ज्ञात ही नहीं है, इसलिए यह सिर्फ एक प्रयोग के रूप में, स्वेच्छा से लिया जाने वाला एक तरीका मात्र है जो किसी भी तरह की गारंटी नहीं करता।
और इसीलिए हमारी पूर्व में कही गई बातें आज दुनिया स्वीकार कर रही है, कि जिस भी वायरस का म्यूटेशन बहुत तेजी से होता है, उसका ना तो स्थायी इम्मुनिटी बन पाती है और इसीलिए संभवतः इसीलिए ना तो हर्ड इम्मुनिटी कारगर हो पाएगी और ना ही कोई परमानेंट वेक्सीन बन पाएगी, और यही आज वुहान में देखा भी जा रहा है, कि ठीक हो चुके मरीज फिर से संक्रमित हो गए और दुनिया ने आज इस वायरस के दस से भी अधिक स्ट्रेन ढूंढ निकाले हैं। जहां इस बीमारी को लेकर बड़े बड़े दावे किये जा रहे थे कि हर्ड इम्युनिटी से जीत होगी, दवाइयों की भी ढेरों ओझाई गारंटियां, मूर्ख मीडिया ने बिना सोचे समझे छाप दी थी, जबकि हम बार बार यह चेताने की कोशिश कर रहे हैं कि जिस तरह से संक्रमण और मौतों के तरीकों में विश्व के विभिन्न भागों में श्रेष्ठ उपचार, लॉकडाउन की सफलता के बावजूद बेहद बुनियादी अन्तर हैं, उससे इस वायरस की गंभीर प्रवृत्ति का अंदाजा कोई अनपढ़ नीम हकीम भी लगा सकता है, लेकिन अभी तक हमारा तंत्र, खलीफाई ज्ञान बघारता, सिर्फ तुगलकी आदेश भर देता रहा है। किसी भी अज्ञात वायरस संक्रमण में, होना तो यह चाहिए था, कि उस बीमारी के कारक जनक की पूर्व प्रजातियों के पुराने संकलित तरीकों की राह पकड़ कर आगे बढ़ा जाता, जिसकी ढेरों व्याख्याएं, नारद संहिता से लेकर शुश्रुत, चरक संहिता मैं वर्णित हैं, लेकिन “जिसकी कुर्सी, वो सर्वज्ञाता” के रव्वैये से बंधा स्वास्थ्य महकमा, कोल्हू के बैल की तरह आज भी उसी बजटखाऊ घेरे में घूम रहा है और १३० करोड़ लोग अपने संक्रमण के इन्तजार में, घरों में बंद, रोजी रोटी, शिक्षा, चिकित्सा के भय और तनाव, तृष्णा के साथ साथ भविष्य का अन्धकार भी देख रहे हैं।
और सबसे जरुरी बात, जो हमने सभी के सामने बार बार कही, लिखी, हाथ जोड़कर प्रार्थना भी की, और आज फिर लिख रहे हैं, इस उम्मीद के साथ कि, कोई तो सुनेगा और इस बीमारी की वजह से होने वाले पेयजल स्त्रोतों के संक्रमण को रोकने के लिए हमारे प्रयास को मजबूती देगा, क्योंकि हमारे यहाँ ना तो जांच के लिए संक्रमित मरीजों के मल स्वाब लिए जा रहे हैं और ना ही ठीक हो चुके, थ्रोट स्वाब नेगेटिव आ चुके मरीजों को, विदेशों की तर्ज पर अगले २८ दिन तक क्वारंटाइन किया जा रहा है। विदेशों में हर संक्रमित मरीज का मल स्वाब, उसके ठीक, नेगेटिव हो जाने के बाद २१ से २८ दिन तक पोजिटिव आ रहा है और सब जानते हैं कि उनके और हमारे यहाँ मल निस्तारण और जल संरक्षण में बेहद बुनियादी, रूढ़िवादी और दकियानूसी, आपराधिक अंतर हैं, तब आने वाली गर्मियों में इस वायरस पेयजल संक्रमण की वजह से आँतों, लिवर और स्किन के संक्रमणों से देश की १३० करोड़ जनता का क्या हाल होगा, यह आज सभी के लिए गंभीरता से सोचने और चिंतन करने का समय है।
बहारें फिर से लौट आएँगी, तुम अलख जगाये रख़ना,
बचाने धरा और प्रकृति को, तुम अपनी पौध बचाये रखना।
मिलते हैं कल, फिर इसी उम्मीद के साथ, तब तक जै रामजी की।
डॉ भुवनेश्वर गर्ग
डॉक्टर सर्जन, स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, हेल्थ एडिटर, इन्नोवेटर, पर्यावरणविद, समाजसेवक