हौसले और घोंसले ने चुनौती को अवसर बनाया

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कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को जहां तहस-नहस कर दिया है। अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है अधिकांश दुनिया के लोग घरों में कैद है ऐसे बुरे वक्त में भी लोगों ने अपने हौसले से ऐसे काम करके दिखाए जो एक अवसर के रूप में ही नहीं वरन मिसाल के रूप में याद किए जाएंगे वही उन लोगों का योगदान भी कम नहीं है जिन्होंने अपना घोंसला अर्थात घर नहीं छोड़ा।

दरअसल लॉक डाउन के चलते अधिकांश आबादी घरों से बाहर नहीं निकली है। ऐसे में बाहर दुनिया में क्या हो रहा है, जानने की जिज्ञासा बढ़ी और सोशल मीडिया, टीवी और अखबारों के माध्यम से जानकारी लेती रही ऐसे में कई ऐसी खबरें जिन्होंने आम आदमी को नतमस्तक कर दिया। खासकर संक्रमित मरीजों की सेवा में लगा चिकित्सा स्टाफ कानून व्यवस्था के लिए दिन रात घर से बाहर ड्यूटी कर रहा पुलिस विभाग और शासन प्रशासन अधिकारी कर्मचारी पत्रकार, जान हथेली पर रखकर इस महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहे लेकिन अलावा आम आदमी ने जिस तरह से घर में रहकर इस लड़ाई को लड़ा है उसकी जितनी तारीफ की जाए उतना कम है गरीबों ने राह दिखाने का काम किया है जोकि नय आने वाले शक्तिशाली भारत की तरफ इशारा कर रहे है। यह कुछ ऐसे उदाहरण है जिनसे वे लोग प्रेरणा ले सकते हैं जो घर के अंदर तनाव महसूस कर रहे हैं। मसलन लॉक डाउन के समय का उपयोग करते हुए पति और पत्नी ने मिलकर ही एक ऐसा कुआं खोद डाला जिसका पानी पूरे गांव की प्यास बुझाएगा ।ध्यान दीजिए सामुदायिक उपयोग होगा ।

दूसरा उदाहरण : जिस गांव में मजदूर क्वारंटाइन किए गय, उस गांव के स्कूल की बिल्डिंग की पुताई करके उस गांव के एहसान का आभार सकारत्मकता से जताने की कोशिश की समय और श्रम को सामुदायिक भाव से जोड़ा । तीसरा उदाहरण: अपनी मेहनत की कमाई को 100 साल के पूर्व विधायक ने दान कर दिया और प्रधानमंत्री ने उनसे बात कर आभार व्यक्त किया ऐसे और भी अनेकों उदाहरण जो बताते हैं की सीमित संसाधन के बाद भी हम कोरोना की चुनौती से लड़ने में पड़ोसी शक्तिशाली ड्रैगन से बेहतर ढंग से निपट पाय हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि देश के नागरिकों ने सरकार से ज्यादा जिम्मेदारी के साथ अपना कार्य किया है, सरकारों को सपोर्ट किया है और ये दुनिया को चौकाने वाला काम है।

बहरहाल लगातार लॉक डाउन के चलते जो लोग घरों के अंदर हैं, उनकी समस्याएं जरूर बढ़ने लगी होंगी। आम दिनों की तरह खाने पीने की चीजों की कमी होने लगी होगी, बोरियत भी होने लगी होगी लेकिन जिंदगी बचाने के लिए यह समस्याएं कुछ भी नहीं है। अब समय आ गया है हम नय सिरे से हौसले को बढ़ाएं हम शारीरिक तौर पर भले कमजोर हो लेकिन इरादों का पहाड़ इतना बड़ा करना है की समस्याय अवसर में तब्दील हो जाएं जैसा कुछ लोग करके भी दिखा रहे है। हमारी आज की भूमिका ही तय करेगी कि हम भविष्य में कैसे याद किए जाएंगे एक बार मंदिर की सीढ़ियों ने मूर्ति से पूछा हम दोनों पत्थर के हैं फिर क्यों लोग मुझ पर तो पैर रखकर जाते हैं और तुम्हारे कदमों में सर झुकाते है तब प्रतिमा ने उत्तर दिया कोई खास वजह नहीं सिवाय इसके कि मैंने तुमसे ज्यादा हथौड़ी झेले हैं। सत्य यही है कि कितनी भी चोट क्यों ना लगे उसके सामने टिके रहकर खुद को नय रूप में ढालने की जल ही जीवन का संकल्प है। ऐसी ही प्रेरणा व्यक्ति को व्यक्तित्व बना देती है हम भी इस मुसीबत को अवसर पर जीवन को नय रूप रंग ढाल सकते हैं क्योंकि आगे का जीवन भी अब उतना स्वतंत्रता लिए नहीं रहेगा जितना की बीता हुआ जीवन रहा है। हौसला मंद इंसान तो वही है जो हर बाधा को मौका बना ले क्योंकि सुख और दुख आना कुदरत की मर्जी हो सकता है लेकिन उसका सामना करना हमारी मर्जी पर निर्भर करता है। चुनौतियां कम नहीं है मुश्किलों का अंबार है लेकिन हिम्मत बढ़ाने वाली हजारों कहानियां हैं।

दूसरी ओर तनाव और चिंता में समय और शक्ति का अव्यय मात्र होता है इस बात को सदा याद रखना चाहिए की जब आप चिंता करते हैं तब आप मानसिक ब्रेक लगा लेते हैं और उस ब्रेक की प्रतिरोधक शक्ति के विरुद्ध संघर्ष करने में आप अपने ह्रदय और मस्तिष्क पर दबाव डालते हैं। आप अपनी कार को ब्रेक लगाकर चलाने का प्रयास नहीं करते क्योंकि आप जानते हैं इससे कार के इंजन को गंभीर हानि पहुंचेगी।

चिंता आपके प्रयास रूपी पहियों पर लगा हुआ ब्रेक है, मैं आपको आगे नहीं बढ़ने देगा यदि आप किसी बात को असंभव ना माने तो कुछ भी असंभव नहीं है जबकि चिंता यह बात आपके मन में उतार सकती है कि आप जो काम करना चाहते हैं असंभव है।कुल मिलाकर कोरोना महामारी के कारण यह संकट का काल जरूर है लेकिन सृष्टि का अंत होने वाला नहीं है। संकट सभी के जीवन में आते जाते रहते हैं इस समय रामायण और महाभारत सीरियल प्रसारित हो रहे हैं। जिसमें हम देख रहे हैं स्वयं भगवान राम ने जीवन में इतनी समस्याओं का सामना किया तो पांडवों के साथ भगवान कृष्ण थे लेकिन पांडवों के जीवन में संघर्ष इन सब के मुकाबले कुछ भी नहीं हमें याद रखना है ओके हम ईश्वर की संतान है और इस पर कभी हमें त्याग नहीं सकता उसने जो हौसला दिया है, उस हौसले की दम पर हमें कोरोना वायरस को हराना है और घर में रहकर इसे अवसर के रूप में बदलना है।

देवदत्त दुबे


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