पलायन करते मजदूर! आखिर उनके बस में और क्या है ?

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अरविन्द चौधरी

आखिर ऐसा क्या हैं जो कोरोना के इस आपातकाल में माननीय प्रधानमंत्री, भारत सरकार के निवेदन करने के बावजूद लोगों को अपने घरों की ओर जाने के लिए पैदल सड़क पर निकलना पड रहा हैं ? , जब प्रधान मंत्री दो बार राष्ट्र को संबोधित कर चुके हैं की जो जहाँ हैं वहीं रूके तभी हम सब सुरक्षित हैं और साथ में राष्ट्र भी ।
कठिनाई की इस घड़ी में, सिर्फ और सिर्फ घरों में रह कर ही हम कोरोना पर विजय पा सकते हैं । मगर कुछ लोग है के मानने को तैयार नहीं और निकल पड़े हैं पंजाब से दिल्ली, दिल्ली से बिहार, उत्तर प्रदेश से बिहार, शहर से गाँव, गाँव से शहर आखिर कौन हैं ये लोग ? क्या इन तक माननीय प्रधानमंत्री जी का संदेश नहीं पहुँच रहा हैं ? या फिर यह मानना नहीं चाहते हैं ।
कोई कहता है सड़क पर पैदल निकले ये वह मजदूर हैं जो मजदूरी करके अपना भरण पोषण करते थे, कोई कहता हैं की जहाँ हैं वहाँ पर खाने की व्यवस्था नहीं हैं इसलिए घर वापस जा रहें हैं ।
कोरोना के इस आपातकाल काल में केन्द्र सरकार ने आमजन तक सारी सुविधाएँ पहुँचाने के लिए कमर कसी हुई हैं, जितना संभव हैं समाज के अंतिम छोर तक सुविधा पहुँचाने के लिए तत्पर हैं , सभी राज्यों ने अपने स्तर पर लाॅकडाउन के दौरान किसी को कष्ट ना हो इसकी तैयारियों के दावे किए हैं पर फिर भी न जाने क्यो लगभग हर राज्य से पलायन जारी हैं ? आखिर क्यो ? कहीं ऐसा तो नहीं सुविधाएँ आमजन तक पूर्ण ईमानदारी से नहीं पहुँच रही हो ? या ऐसा तो नहीं जहाँ ये पलायन करने वाले लोग रहते थे वहाँ इनके साथ करोना के चलते भेद भाव हो रहा हो। या फिर राज्य सरकारों ने जो लोग मुफ्त वाली सुविधाएँ उपलब्ध कराने को नियुक्त किए हैं वह सिर्फ कुछ को सुविधाय देकर सब को देने का ढिंडोरा पीट रहें हो । ऐसे बहुत से सवाल हैं जो कोरोना के आपातकाल में मजदूरो या मजबूरो के पलायन के कारण खड़े होते हैं ।


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