कोरोना महामारी में अन्नदाता किसान बना भगवान

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  दूध, सब्जी और रोटी उपलब्ध करा रहा किसान 
 -ताउम्र जीता सोशल डिस्टैंसिंग का जीवन, परिवार ही उसकी सारी दुनियाँ 

 -खेत में सुबह पहुँचता, दिनभर खेत में पसीना बहाता और शाम को घर वापस आता अन्नदाता 
-खेत और गोरू के संग प्रकृति की धूप, छांव,जाड़ा और बरसात में रहता मस्त
 -लॉकडाऊन में किसान की रोजमर्रा की जिन्दगी खेत और खलिहान में खपती

फतेहपुर, 27 मार्च (हि.स.)। जिस कोरोना वायरस के संक्रमण से सारी दुनिया में हाहाकार मचा है। और हर व्यक्ति अपनों से ही दूर रहने को विवश है। जहाँ सारे कामकाज पूरी तरह से ठप्प है। और लोग घरों में कैद की जिन्दगी जीने को बेवश है। इन दुश्वारियों से आज अगर कोई अछूता है तो वह देश का किसान है। जो इस विपत्ति में शहरवासियों के लिए भगवान का अवतार बनकर खड़ा है। हर रोज सब्जी दूध और अन्न उपलब्ध करा रहा है। जनता कर्फ्यू और लॉकडाऊन उसकी दिनचर्चा को प्रभावित नहीं कर सके और उनकी दिनचर्या से कोरोना वायरस के संक्रमण की भी कोई आशंका नहीं है। क्योंकि वह सोशल डिस्टैंसिंग के फार्मूले के तहत वह आज भी अपना काम कर रहा है। खेत जाता है। सब्जी तैयार कर बाजार, गली और मुहल्ले में लाकर बेच रहा है। वह भी बिना कालाबाजारी किये बगैर। दूध भी सुबह – सुबह सभी को देता है। जरा सोंचो आज अगर किसान हड़ताल कर दे या अपनी बिजली, पानी खाद जैसी अनगिनत समस्याओं को लेकर जीवन की खाद्य सामाग्री रोक दे तो शहरी रईस क्या नोट रूपी कागज के टुकड़े खाकर जिन्दा रह पायेगा। जिसे हमेशा अपने नोटों पर घमंड रहा और जब जब किसान मुसीबत में रहा उसके आंसू पोंछने के लिए कभी हाथ नहीं बढ़े। वहीं किसान आज हम सब की मुसीबत में भगवान की तरह भरोसे और पूर्ण आश्वासन के हाथ हमारे सिर पर रखे बड़े भाई की मानिंद साथ खड़ा है। 
 प्रकृति के साथ जब तक इन्सान जीवन जीता रहा। प्रकृति ने हमेशा उसकी रक्षा की। लेकिन विकास की अनन्त लिप्सा और भोग-विलास की सुख-सुविधा की जिन्दगी ने इंसान को प्रकृति का दुश्मन बना दिया है। प्रकृति के विनाश को ही आज इंसान अपना विकास समझता और डंके की चोट पर दावा भी करता है। लेकिन समय- समय पर सच अपने असली रूप में प्रकट होता रहता है। सच के प्रकटन में प्रकृति के दोस्त मस्त रहते हैं और दुश्मन जिन्दगी-मौत के बीच अपने विद्रूप विकास के विनाशकारी चेहरे से दो-चार होते रहते हैं। आज का यह कोरोना वायरस भी विकास का विनाशकारी प्रतिफल ही है। जिसमें जहां पूरी दुनियाँ में हाहाकार मचा है। वहीं हमारे देश का किसान, जो प्रकति का सच्चा दोस्त है, निप्रभावी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में मग्न व मस्त है।
 इस महामारी के चलते जनता कर्फ्यू और अब लॉकडाऊन में भी उसकी दिनचर्या सुचारू रूप से चल रही है। और सर्व साधन सम्पन्न फिर भी बेवश शहरवासियों का भगवान बन कर सहयोग कर रहा है। किसान का जीवन लॉकडाऊन में अप्रभावित है। सुबह उठता है खेत जाता है। मेहनत कर पसीना बहाता है। सब्जी और अन्न पैदा कर रहा है। जानवरों को भी जंगल चराने के लिए ले जाता है। शाम को नित काम की तरह घर वापस आकर टूटी खाट में खर्राटें भर कर सोता है। वहीं किसाश आज जीवन की हर रोज की मौलिक आवश्यकताओं जैसे दूध, सब्जी और अन्न की पूर्ति हर शहरवासी को कर रहा है। 
खास बात यह कि इस मुसीबत की घड़ी में कालाबाजारी कर मुनाफाखोरी करने से बहुत दूर है। देश का किसान छलकपट से दूर आज हमारे साथ खड़ा है। जिससे हम सब कोरोना जैसी महामारी के संक्रमण को रोकने की जंग में खड़े हुए हैं। किसान के सहयोग के बिना न जाने कब को कालकलवित हो चुके होते। 
 प्रकृति की गोद में खेल कर बड़ा होने वाला किसान अपनी जड़ों से हमेशा जुड़ा रहता है। और उन जड़ों में शहरवासियों की तरह मठ्ठा डालने के बजाय अपने मेहनत के पसीने से सींचने का काम करता है। इसीलिए प्रकृति भी उसके साथ सहअस्तित्व की तरह अन्योन्याश्रित जीवन का अंग बन कर व्यवहार करती है। 
किसान का जीवन विकासोन्मुख मानव के लिए हमेशा एक संदेश देता रहता है कि प्रकृति को माँ मानो, माँ की तरह व्यवहार करो, उससे निच्छल प्रेम करो और माँ की गोद में जीने वाले इंसान को कोरोना जैसी महामारी विनाश का कारण कभी नहीं बन सकती। यही कारण है कि तमाम विपरीत परिस्थितियों के बावजूद किसान आज कोरोना महामारी में अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी के साथ मस्त और अजेय है।


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