क्या होना चाहिए कार्यपालिका के कार्य में विधायिका का हस्तक्षेप?

Share:

सौरभ सिंह सोमवंशी

भारतीय संविधान में शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत दिया गया है इसमें न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका तीनों के अधिकार और कर्तव्य अच्छी तरह से परिभाषित किए गए हैं,विधायिका का कार्य कानून का निर्माण करना है और कार्यपालिका का कार्य उन कानूनों के अनुसार कार्य करना और उसका पालन करना और करवाना है जब कोई भी अपने दायरे से बाहर जाकर काम करता है तो समस्या उत्पन्न होती है, परंतु सुल्तानपुर की पूर्व जिला अधिकारी रह चुकी और वर्तमान में उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक विभाग के निदेशक के पद पर तैनात सी इंदुमती के फोन काल का ऑडियो लगातार सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है जिसमें उन्होंने सुल्तानपुर के लंभुआ विधानसभा क्षेत्र से विधायक देवमणि द्विवेदी के अलावा एक वर्तमान सांसद, विधान परिषद सदस्य और एक पूर्व कैबिनेट मंत्री के ऊपर अपने कार्य में हस्तक्षेप का आरोप लगाया है, इसके अलावा उन्होंने एक मामले का खुलासा किया था जिसमें करोड़ों का भ्रष्टाचार सिर्फ कागज पर तीन तीन विद्यालय चलाकर किया गया था इस मामले में जनप्रतिनिधियों के द्वारा उनके ऊपर दबाव बनाने की बात का भी खुलासा किया है । इंदुमती ने फोन काल के ऑडियो में यह भी कहा है कि जनप्रतिनिधि लगातार उनसे लाइसेंस के अलावा अन्य कार्यों के लिए फोन करते थे यहां तक की उन्होंने ये तक कहा कि कभी भी उनके पास सही काम के लिए फोन नहीं गया इस तरह की घटना सुल्तानपुर ही नहीं पूरे देश में घटित होती रहती है।यदि इस तरह की घटनाएं पूरे देश में घटित होती है तो भारतीय संविधान के शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत के उल्लंघन की बात है इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए क्योंकि भारतीय संविधान संसद से भी सर्वोच्च है । और देश में संविधान से सर्वोच्च कोई चीज नहीं है संविधान के सर्वोच्च होने का मतलब यह है कि संविधान में लिखी हुई बातें ही मानी जानी चाहिए परंतु यदि कोई एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप करता है तो इस तरह का कृत्य भारतीय लोकतंत्र पर कुठाराघात के अलावा और कुछ नहीं है विधायिका , कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों सिर्फ और सिर्फ जनता के प्रति जवाबदेह हैं या संविधान के प्रति और इन तीनों को केवल और केवल संविधान के आलोक में ही काम करना चाहिए यदि कोई एक दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप करेगा तो यह गंभीर विषय है जिस तरह से कोई भी व्यक्ति अपने कार्य में किसी के हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं कर पाता उसी तरह से कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका जैसे संवैधानिक शक्तिपीठ भी अपने अपने कार्यों में हस्तक्षेप को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। हालांकि कभी कभी कार्यपालिका के द्वारा ऐसे कृत्य किये जाते हैं जो आम जनता के लिए समस्या खड़ी करते हैं और तब जनप्रतिनिधियों को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ता है क्योंकि कार्यपालिका की तुलना में जनप्रतिनिधियों का जुड़ाव जनता से अधिक करीब का होता है।ये अच्छी बात है परंतु निश्चित रूप से उसकी एक सीमा होनी चाहिए। कही ऐसी परिस्थितियां ना पैदा हो जाएं कि जनता की समस्याओं के समाधान के नाम पर कार्यपालिका के कार्य में हस्तक्षेप किया जाए और पूरा का पूरा संवैधानिक ढांचा ही बिगड़ जाए सी इंदुमती के आडियो में जनप्रतिनिधियों के द्वारा इस तरह के दबाव की बात पर उत्तर प्रदेश के लखनऊ हाई कोर्ट की अधिवक्ता और समाज सेविका नूतन ठाकुर के द्वारा उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक हितेश चंद्र अवस्थी को एक पत्र लिखा गया है इसमें उन्होंने इस तरह के मामले जो गंभीर प्रकृति के हैं उन मामले में जनप्रतिनिधियों के द्वारा दबाव की बात की जांच के साथ-साथ उस मामले की भी जांच करने को कहा है जिस मामले में लंभुआ के विधायक देवमणि द्विवेदी के ऊपर बार-बार पैरवी करने का आरोप सुल्तानपुर की पूर्व जिला अधिकारी ने लगाया है।
क्योंकि पूर्व जिला अधिकारी के अनुसार मामले में ढिलाई केवल जनप्रतिनिधियों के दबाव के कारण बरती जा रही है ।सुल्तानपुर की पूर्व जिला अधिकारी ने जिस मामले की बात की है उस मामले में बताया जाता है कि जनपद के लंभुआ विधानसभा क्षेत्र के कोथरा कला गांव के संतोष कुमार सिंह 18 साल से सिर्फ और सिर्फ कागज पर ही 3 विद्यालय चला रहे थे और तीनों विद्यालय निर्मित ही नहीं थे इलाहाबाद उच्च न्यायालय के लखनऊ खंडपीठ के आदेश पर जिला अधिकारी इंदुमती ने पांच मजिस्ट्रेट स्तर के अधिकारियों से जांच करवाई और जांच में पता चला कि विद्यालय भवन निर्मित ही नहीं है उसके बाद उन्होंने तमाम विभागों से मामले में प्रबंधक संतोष कुमार सिंह के ऊपर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करवाने का आदेश दिया इसके बावजूद जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के अलावा किसी भी विभाग ने मुकदमा दर्ज नहीं कराया इस मामले पर भी शायद जनप्रतिनिधियों का ही दबाव था जो कोई मुकदमा दर्ज नहीं कराया गया।जिला अधिकारी रह चुकी सी इंदुमति ने कहा कि विधायक ने इस मामले पर उनसे कहा था कि “आपके अधिकारियों ने आपको गलत जानकारी दी है संतोष कुमार सिंह अच्छे आदमी हैं ” इस तरह की घटनाएं विधायिका के ऊपर बहुत बड़ा प्रश्न वाचक चिन्ह हैं। जिसका उत्तर स्वयं विधायिका को ही देना चाहिए इसके अलावा मामले में संगीन धाराओं के होने के बावजूद गिरफ्तारी में ढिलाई बरती जा रही है क्योंकि इन मामलों पर वर्तमान विधायक ,एक वर्तमान सांसद, विधान परिषद सदस्य व एक पूर्व कैबिनेट मंत्री संतोष कुमार सिंह की तरफ से दबाव बना रहे हैं। ऐसा आरोप स्वयं पूर्व जिला अधिकारी सी इंदुमति ने एक आडियो में लगाया है।हालांकि अब उनका स्थानांतरण भी कर दिया गया अब प्रश्न यह है कि उन जाचों का क्या होगा जो जिला अधिकारी सी इंदुमति ने प्रारंभ की थी क्या वह जांचें लोकतंत्र में खादी के परदे से ढक दी जाएंगी, कुछ भी हो परंतु ये सत्य है कि तीनों का अपना महत्व है परंतु आदर्श स्थिति वही है कि जहां सभी अपनी-अपनी मर्यादा का पालन करें।


Share: