कलाकार कभी बूढ़ा नहीं होता : दिलीप कुमार ( नब्बे के दशक में मनोरमा पत्रिका में छपा उनका इंटरव्यू )

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जयति भट्टाचार्य।

यह साक्षात्कार नब्बे के दशक में मनोरमा पत्रिका द्वारा लिया गया था। 7 जुलाई 2022 को दिलीप कुमार की पहली पुण्यतिथि है। दिलीप कुमार की पहली पुण्यतिथि पर संपूर्ण माया की ओर से यह विनम्र श्रद्धांजलि।

प्रश्न: अरसे से आप अभिनय कर रहे हैं, क्या आपको ऐसा कभी नहीं लगा कि आप जिस दर्जे की एक्टिंग करना चाहते थे, अभी तक नहीं की ? या एक ही तरह की अदाकारी करते – करते आप थक चुके हैं ?

उत्तर: मेरी खुशनसीबी है कि मैं अभी तक एक्टिंग किए जा रहा हूं। मेरे जमाने के बहुत से एक्टर, मुझसे पहले ही रिटायर हो चुके हैं। लेकिन शुक्र है कि आज भी काफी इज्जत के साथ, एक्टिंग का सिलसिला मैंने जारी रखा है। बहुत से प्रोड्यूसर भी अपनी नयी फिल्मों में मुझे लेना चाहते हैं, मगर हर किसी की फिल्म में एक्टिंग करना मुमकिन नहीं है न ! वैसे कुछेक फिल्मों के लिए मैंने हामी भर ली है। इसे मैं ऊपरवाले की मेहरबानी समझता हूं। मुझ जैसे बूढ़े एक्टर की फिल्म इंडस्ट्री में आज भी इतनी कद्र है, यह हैरत की बात है। इसलिए मेरी एक्टिंग करियर में अब कोई चाह अधूरी नहीं रही। चूंकि मैं एक एक्टर, फनकार हूं, इसलिए थकान का सवाल ही नहीं उठता। सच्चा कलाकार कभी नहीं थकता। इसके अलावा, एक ही तरह का चरित्र मैं दुबारा नहीं निभाता। एक जैसी एक्टिंग न मैनें कभी की है, न करूंगा, इसलिए थकने का सवाल ही नहीं उठता।

प्रश्न: लेकिन उम्र का भी तो एक धर्म होता है। कोई भी इन्सान, सिर्फ इसलिए, कि वह बहुत बड़ा कलाकार है, इस सबसे ऊपर तो नहीं ? मैंने सिर्फ मानसिक थकान नहीं, शारीरिक थकान के बारे में पूछा था।

उत्तर: किसी भी इन्सान के लिए उम्र एक बहुत बड़ा मसला है। मन बिल्कुल चुस्त – दुरूस्त हो, मगर यह शरीर उम्र का बोझ बर्दाश्त नहीं कर पाता। लेकिन इसे आप परवरदिगार का करम कहें या मेरी खुशनसीबी, सेहत की नजर से, मैं अपने हमउम्र साथियों से कहीं ज्यादा चुस्त हूं। इसलिए कहा, थकान का सवाल ही नहीं।

प्रश्न: चुस्त रहने के लिए क्या आप कसरत वगैरह करते हैं ? या इसके पीछे भी तकदीर का जादू है ?

उत्तर: देखिये, किस्मत के बारे में हंसी – ठट्ठा करने की हिम्मत मुझमें नहीं है। इस उम्र में भी मैं कसरत वगैरह करता हूं। अलस्सुबह नियमित रूप से योग – व्यायाम करता हूं, मगर हल्के – फुल्के किस्म का। उसके बाद नियम के मुताबिक खाना खाता हूं, काम काज में मस्त रहता हूं, चिंता – फिक्र से दूर रहता हूं। बस, फिट रहता हूं।

प्रश्न: इस उम्र में भी आपकी ऐसी माशाअल्लाह सेहत से, बहुत से नौजवानों को ईष्र्या होती होगी। लेकिन आपने खाने के मामले में जिस नियम का जिक्र किया, उसमें क्या – क्या शामिल है ?

उत्तर: हर सुबह कसरत वगैरह के बाद, आधा घंटा आराम, उसके बाद, एक गिलास दूध के साथ थोड़ा सा च्यवनप्राश। उसके घंटे भर बाद, हल्का नाश्ता। दोपहर के खाने में थोड़ा सा चावल, साग – सब्जी, एकाध टुकड़ा मछली या गोश्त। साथ में सलाद, एकाध फल भी लेता हूं। शाम को सिर्फ फल का रस। रात के खाने में रोटी – सब्जी और सूप। घंटे भर बाद एक गिलास दूध, बस। मीठा मैं बिल्कुल नहीं खाता, मनाही जो है। शूटिंग के दिनों में भी इस नियम में कोई हेरफेर नहीं होता। खाने के अलावा थोड़ी बहुत दवाएं। मसलन डाॅक्टर की हिदायत मुताबिक विटामिन की गोलियां।

प्रश्न: कई फिल्मों में एक्टिंग के अलावा, इन दिनों आप खुद भी एक फिल्म बना रहे हैं – ’कलिंग’ फिल्म निर्माण का काम जब शुरू ही किया, तो इतनी देर से क्यों ? जरा पहले भी तो कर सकते थे ?

उत्तर: हां, कर तो सकता था, मगर फुर्सत ही नहीं मिली। फिल्मों में एक्टिंग के दौरान, अक्सर ही फुर्सत के इंतजार में रहा, ताकि अपनी फिल्म में हाथ लगाऊं। चलो, अब तो शुरू किया। मगर इसके मायने यह नहीं, कि मुझे फिल्म ऑफरों की कमी है। ऑफर बहुत से आते हैं, मगर हर किसी को ’हां’ कहना मुमकिन नहीं। क्योंकि किसी – किसी फिल्म की कहानी या स्क्रिप्ट पसंद नहीं आती या चरित्र में ही खास दम नहीं होता। अब इस उम्र में फिल्मों का थोड़ा – बहुत चुनाव न करूं, तो कब करूंगा ? और अगर फिल्म की कहानी पसंद आई, डायरेक्टर अगर अच्छा है, तो खुद ही उनकी फिल्म में काम करने की दिलचस्पी जाहिर कर देता हूं। मसलन इन दिनों फिल्म ’किला’ में काम कर रहा हूं। इस फिल्म के प्रोड्यूसर मेहरा से मेरी खास जान पहचान है। मेरा ख्याल है, वे लोग अच्छी फिल्म बनाएंगे।

प्रश्न: “कलिंग” निर्माण के दौरान, सुना है, आप खासे झमेले में पड़ गए थे ? शाहरूख खान से आपकी तकरार भी हो गयी थी ?

उत्तर: इतने सारे दिन तो फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेता के तौर पर ही गुजार दिये। कभी किसी झमेले में नहीं पड़ा। लेकिन सिर्फ एक्टिंग करने और फिल्म का निर्माण करने में जमीन – आसमान का फर्क है। फिल्म निर्माण, अभिनय या दूसरे – दूसरे कामों से कहीं ज्यादा कठिन है। खुद फिल्म – निर्माण करते हुए मुझे इसका अहसास हुआ है। शाहरूख के साथ कोई कहा – सुनी या गड़बड़ी नहीं हुई। वो तो तारीख वगैरह पाने में थोड़ी दिक्कत पेश आयी थी। दरअसल ‘कलिंग’ बड़े बजट की फिल्म है। इसकी एक भी कड़ी की शूटिंग अगर मार खा गई, तो बड़ा नंकसान हो सकता है। इसलिए तमाम बहस, गलतफहमियां दरकिनार रखकर, फिल्म पूरी करने की कोशिश कर रहा हूं।

प्रश्न: अब तक इस फिल्म के कितने अंश पूरे हो चुके हैं ?
उत्तर: फिल्म तो लगभग पूरी हो चुकी है। उम्मीद है, इस साल रिलीज हो जाएगी। मुझे तो यह भी लगता है कि फिल्म रिलीज होने के बाद दर्शक अलग – अलग तरीके से ’रिएक्ट’ भी करेंगे। फिल्म में मैनें अतीत के भारत के बारे में बहुत कुछ कहने की कोशिश की है।

प्रश्न: आप और आपकी श्रीमती सायरा बानो साहिबा, दोनों मिलकर टीवी सीरियल बनाने में भी जुटे हैं। टीवी सीरियल के निर्देशन में आपको कहां फर्क लगता है ?

उत्तर: देखिये, टीवी सीरियल काफी कुछ ’वन डे’ क्रिकेट जैसा होता है और फिल्म पूरी टेस्ट मैच जैसी। टीवी सारियल में, एक दिन में एक ही एपिसोड खत्म हो जाता है। अगले दिन यह एपिसोड देखने को नहीं मिलता। लेकिन फिल्म, एक ही फिल्म आप हाॅल में जाकर, जितनी बार चाहें देख सकते हैं। इसके अलावा छोटे पर्दे पर दिखाए गए सीरियल पर दर्शक जिस कदर ’रिएक्ट’ करते हैं, बड़ी स्क्रीन पर देखी गई फिल्म पर उससे कहीं बहुत ज्यादा ’रिएक्ट’ करते हैं। बड़ी स्क्रीन, यानि फिल्म एक पुख्ता और मुकम्मल चीज है। इसलिए फिल्म का निर्देशन करते हुए, काफी सजग और चैकन्ना रहना पड़ता है। इसलिए फिल्म का काम धीरे – धीरे आगे बढ़ता है। शूटिंग भी धीमी रफ्तार से होती है।

प्रश्न: आपने कभी फिल्मकार तपन सिन्हा की फिल्म ’सगीना महतो’ में अभिनय किया था, काफी ख्याति भी पायी। वैसी किसी सीरियस फिल्म के लिए फिर किसी से आपको ऑफर नहीं मिला ?

उत्तर: मिला था। श्याम बेनेगल साहब से। लेकिन उस वक्त लाचारी थी। समय की कमी थी। सत्यजीत राॅय साहब ने भी ’सगीना महतो’ में मेरी एक्टिंग की तारीफ की थी। मुझे उम्मीद बंधी कि अपनी किसी फिल्म में वे भी मुझे एक्टिंग का मौका देंगे। लेकिन उनकी तरफ से कोई दावतनामा नहीं मिला। अगर वे बुलाते, तो मुझे खुशी होती। वहीदा रहमान साहिबा इस मायने में खुशनसीब थीं, उन्हें मौका मिल गया। मुझे नहीं मिला। जिन्दगी में इसी बात का गम रह गया मुझे। लेकिन अब अफसोस से भी क्या फायदा। क्योंकि अब सत्यजीत राॅॅय ही हमारे बीच नहीं रहे। खैर, अभी तो बहुत से आला दर्जे के फिल्मकार मौजूद हैं।

प्रश्न: सीरियस फिल्म निर्माता, मेनस्ट्रीम फिल्मों के अभिनेता – अभिनेत्रियों को कलाकार ही नहीं समझते, क्या इसलिए उन्हें अपनी फिल्मों में नहीं लेते ?

उत्तर: अगर ऐसा है, तो बेहद अफसोस की बात है। लेकिन, इस मामले में मैं ही क्या, अमिताभ बच्चन जैसे बड़े अभिनेता को भी सीरियस फिल्मकारों की तरफ से ऑफर नहीं मिला।

प्रश्न: इस सिलसिले में मेरे ख्याल से कई मुश्किलें होंगी। पहली मुश्किल मेहनताने को लेकर, दूसरी एक्टिंग में काफी सारे वक्त की जरूरत।

उत्तर: बड़ी बजट के मेनस्ट्रीम के फिल्मकार मुझे्र जो मजदूरी देते हैं, उतनी रकम छोटी बजटवाले फिल्मकार मुझे नहीं दे सकते, यह मैं बखूबी जानता हूं।

प्रश्न: आपको क्या लगता है, और कितने दिनों तक आप एक्टिंग का सिलसिला जारी रखेंगे ?

उत्तर: जितने दिनों तक मेरा दिल, दिमाग और ताकत साथ देगी। मेरी राय में लेखक, कवि, कलाकार कभी बूढ़े नहीं होते।

प्रश्न: आपके दौर के अभिनेताओं में आप किसे श्रेष्ठ कहेंगे ?

उत्तर: इस सवाल का जवाब दर्शक ही दे सकते हैं, मैं नहीं।

प्रश्न: आपके बाद की पीढ़ी के अभिनेताओं में, श्रेष्ठ कौन लगता है ?

उत्तर: बेशक अमिताभ बच्चन और संजीव कुमार और बिल्कुल नयी पीढ़ी के अभिनेताओं में नाना पाटेकर।

प्रश्न: अभिनेत्रियों में श्रेष्ठ कौन है ?

उत्तर: हमारे दौर में मीना कुमारी बेहतरीन थीं। उसके बाद के दौर में स्मिता पाटिल, रेखा भी बेहतरीन एक्ट्रेस है।

प्रश्न: फिल्मों में अभिनय के लिए और कामयाबी दिलाने के लिए, ज्यादातर एक्टर पिता अपने बेटों की मदद करते हैं। आपने भी अपने भतीजे अयूब खान को फिल्मों में प्रतिष्ठित करने के लिए ऐसा कुछ किया ?

उत्तर: देखिये, इस किस्म की मदद देकर किसी को भी अभिनेता का दर्जा दिलाना नामुमकिन है। अच्छा एक्टर या स्टार बनने के लिए भीतरी हुनर जरूरी है। मसलन, कोशिशों के बावजूद, राजेंद्र कुमार अपने बेटे गौरव को स्टार नहीं बना पाए। मनोज कुमार भी अपने बेटे कुणाल को सितारा नहीं बना पाए। फर्ज करें, मैंने अयूब की मदद कर भी दी, अगर वह इसका सही इस्तेमाल नहीं कर सका, तो ऐसी मदद से क्या फायदा ? अयूब ने जो किया, जहां तक पहुंचा, अपनी कोशिशों से कामयाब हुआ। सुना है, एक्टिंग भी बढ़िया करता है। लेकिन फिर भी हर कोई न शाहरूख है न नाना पाटेकर।

प्रश्न: आगामी दिनों में कोई फिल्म बनाने की योजना ?

उत्तर: भारत की जंगे आजादी के आंदोलन पर फिल्म बनाने का इरादा है और एक फिल्म ऐसी भी बनाना चाहता हूं, जिसमें आजादी हासिल कर लेने के बाद की सूरते हाल और अब इस वक्त की सूरत दिखाना चाहूंगा। देखना यह है कि ये फिल्में बना पाता हूं या नहीं।
                                                भेंटकर्ता – जिष्णुदीप वर्मन


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