केन्द्र सरकार भविष्य के लिए सोचने में अक्षम : सतीश पॉल मुंजनी

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डाॅ अजय ओझा।

रांची, 30 अप्रैल केंद्र की मोदी सरकार भविष्य के लिए सोचने में सक्षम नहीं है, इनके नेता और मंत्री हमेशा भूतकाल में ही जीवित रहते हैं और वर्तमान को उस भूतकाल को याद करने और कांग्रेस एवं गांधी परिवार पर दोषारोपण करने में समय नष्ट कर देते हैं जिसके कारण इनमें भविष्य की योजनाएं बनाने में नाकाम नजर आ रहे हैं। उक्त बातें झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमिटी के प्रवक्ता सतीश पॉल मुंजनी ने कही।

उन्होंने कहा कि भाजपा के मंत्री कह रहे हैं कि कोरोनावायरस के समय लोगों ने घर से काम किया जिसके चलते बिजली खपत बढ़ी जबकि अभी तो कोरोना है अभी नहीं और अगर यह वास्तविक आंकड़ा है तो उसके हिसाब से 22-23 के लिए बिजली उत्पादन के लक्ष्य को समय पर बढ़ाया क्यों नहीं गया यह बेहद गंभीर समस्या है और यह पूरे भारतवर्ष को ब्लैकआउट की स्थिति में लाकर खड़ा कर सकता है जिसका भारी नुकसान देश को भुगतना पड़ेगा।

केंद्र एवं राज्य सरकार में समन्वय की घोर कमी है केंद्र का अपना प्रबंधन भी कुप्रबंधन का शिकार है जहां निर्णय लेने की स्वतंत्रता शायद नहीं है या फिर स्वतंत्रता है तो निर्णय लेने में लोग सक्षम नहीं है

केन्द्र सरकार जब से आयी है तब से सिर्फ 70 वर्षों की चर्चा करती रहती है। मैं बताना चाहूंगा कि 70 वर्षों में पहली बार ऐसा हुआ है की पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर कोयला ढोने के लिए मालवाहक ट्रेनों का परिचालन सुनिश्चित किया गया है

70 साल में आपने ये कब सुना था कि कोयला ढोने के लिए 670 यात्री ट्रेनों को लंबे समय के लिए रद्द किया गया है? यह भी कब सुना था कि कोयले की कमी की वजह से देश में अभूतपूर्व बिजली संकट खड़ा हो गया है? यह भी कब सुना था कि चूंकि गर्मी ज्यादा बढ़ रही है, इसलिए बिजली की मांग बढ़ रही है, इसलिए बिजली संकट भी बढ़ रहा है? अगर रेलवे ट्रैक पर केवल कोयला ढोने वाली रेलें चलेंगी तो अन्य सामान ढोने वाली रेल किस ट्रैक पर चलेंगी?

बिजली का अभूतपूर्व संकट सामने है। कहीं ऐसा न हो कि यह कह दिया जाए कि विपक्ष शासित प्रदेश के लोग जानबूझ कर ज्यादा बिजली खर्च कर रहे हैं, जिसकी वजह से बिजली संकट आया है। यह भी कहा जा सकता है कि विपक्ष शासित राज्य के लोग ज्यादा खाद्य तेल इस्तेमाल करके जानबूझ कर तेल महंगा कर रहे हैं। कहा यह भी जा सकता है कि विपक्ष शासित राज्यों के लोग ज्यादा खाने लगे हैं, इसलिए आटे का संकट पैदा हो गया है। वैसे दिसंबर तक आटा 50 रुपये किलो और खाद्य तेल 300 रुपये लीटर तक खरीदने के लिए कमर कस लीजिए। रही बिजली की बात तो जोर का झटका धीरे से नहीं, बहुत जोर से लगना है।

प्रवक्ता सतीश पॉल मुंजनी ने कहा कि केन्द्र सरकार की रवैये से ऐसा लगता है कि छोटे उद्योगों को नष्ट कर देगा, जिससे बेरोजगारी और बढ़ेगी. छोटे बच्चे इस भीषण गर्मी को बर्दाश्त नहीं कर सकते. अस्पतालों में भर्ती मरीजों की जिंदगी दांव पर है. रेल, मेट्रो सेवाएं को रोकने से आर्थिक नुकसान होगा.। एक ओर झारखंड के माननीय मुख्यमंत्री बिजली समस्या को दूर करने के लिए हर तरह का प्रयास कर रही है। दूसरी ओर केन्द्र सरकार बिजली संकट खड़ा को राज्य को स्थिर करने की साजिश रच रही है।


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