एक अबूझ पहेली – कैलाश पर्वत

Share:

कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार सहित निवास करते हैं। पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि भगवान शिव नशे में डूबे रहते हैं परंतु अपने परिवार की सुरक्षा वह बहुत अच्छे तरीके से कर रहे हैं। आज तक कोई भी कैलाश पर्वत पर नहीं चढ़ सका। हर साल कैलाश मानसरोवर यात्रा पर तीर्थ यात्री जाते हैं। उनके अनुसार वहां पर ओम का स्वर सुनाई देता है। कुछ के अनुसार वहां पर घंटियों की आवाज सुनाई देती है और कुछ लोगों ने यह भी कहा है कि वहां पहुंचने पर शिव पार्वती के साक्षात दर्शन होते हैं। परंतु वैज्ञानिकों का कहना है कि ऊपर चढ़ने पर लोगों को भ्रम हो जाता है इसीलिए वह ऐसा देखते और सुनते हैं। जो भी हो यह एक सत्य है कि कैलाश पर्वत पर कोई नहीं चढ़ सका।

एक पर्वतारोही ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की थी लेकिन असफल रहा। उसके द्वारा लिखे गए किताब के अनुसार कैलाश पर्वत पर नाखून और बाल बहुत तेजी से बढ़ते हैं। वहां रहना मुमकिन नहीं है। कैलाश पर्वत बहुत ज्यादा रेडियोएक्टिव है।

इस पर चढ़ने में किसी ने आज तक सफलता प्राप्त नहीं की है। जिसने कोशिश की वह या तो जिंदा वापस नहीं लौटा या पहाड़ पर चढ़ने से पहले ही वापस आ गया। यहां की हवा में कुछ तो है। दो सप्ताह में बाल और नाखून जितने बढ़ने चाहिए उतने दो दिन में बढ़ जाते हैं।

कैलाश पर्वत की ऊंचाई 6638 मीटर है जबकि माऊंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर है, लगभग कैलाश पर्वत से दो हजार मीटर ज्यादा। आज तक एवरेस्ट की चोटी पर 7000 से अधिक लोग चढ़े हैं। ऐसे में यह तो एक सवाल है कि कैलाश पर्वत पर आज तक कोई क्यों नहीं चढ़ पाया। यह भी कहा जाता है कि जो भी कैलाश पर चढ़ने की कोशिश करता है उसका हृदय परिवर्तन हो जाता है।

कहानियों के अनुसार कैलाश पर्वत पर भगवान शिव अपने परिवार के साथ रहते हैं इसलिए वहां पर किसी इंसान का जीवित अवस्था में जाना नामुमकिन है। अगर कोई जा सकता है तो मरने के बाद या जिसने कभी कोई पाप न किया हो।
इसके आकार के बारे में शोध करने के लिए सन् 1999 में रूसी वैज्ञानिकों की एक टीम कैलाश पर्वत के नीचे एक महीने तक रही। वैज्ञानिकों के अनुसार कैलाश पर्वत की तिकोने आकार की चोटी असल में बर्फ से ढकी एक पिरामिड है। यह प्राकृतिक नहीं है। कैलाश पर्वत को शिव पिरामिड भी कहा जाता है।

रूसी पर्वतारोही सर्गे सिस्टिकोव अपनी टीम के साथ सन् 2007 में कैलाश पर्वत पर चढ़ने गए थे। उनके अनुसार थोड़ी चढ़ाई करने के बाद ही उनके और टीम के सभी सदस्यों के सर में भयानक दर्द होने लगा। पैर आगे नहीं बढ़ रहे थे। उनके जबड़े की मांसपेशियां खिंच रही थी और जीभ जम गई। मुंह से आवाज नहीं निकल रही थी। जब उन्हें लगा कि वह नहीं चढ़ सकते तो वह उतरने लगे। उन्हें फौरन आराम मिल गया।
कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश करने वाला एक इंसान कर्नल विल्सन ने अपना अनुभव साझा किया। उनके अनुसार जैसे ही उन्हें चोटी पर पहु्चने का मार्ग थोड़ा थोड़ा दिखता तुरंत ही बर्फबारी होने लगती और उन्हें बेस कैम्प लौट आना पड़ता। चीनी सरकार ने कुछ पर्वतारोहियों को कैलाश पर्वत पर चढ़ने के लिए कहा था, पर पूरी दुनिया में इसका विरोध होने के बाद चीनी सरकार ने इस पर रोक लगा दी।

तकनीकी रूप से कैलाश पर्वत पर चढ़ना माऊंट एवरेस्ट की तुलना में मुश्किल है। कैलाश पर्वत हिमखंडों से बना है और चारों ओर खड़ी चट्टानें हैं। इस पर फतह हासिल करना आज भी पर्वतारोहियों के लिए एक चुनौती बना हुआ है। भगवान शिव किसी को यह चुनौती पूरी करने देंगे या इसे चुनौती ही रहने देंगे यह तो शिवाय ही जानते हैं।


Share: