खुद बचो और सब को बचाओ

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हम सुधरेंगे जग सुधरेगा की तर्ज पर यह बात अब बात अब पक्की कर लेना चाहिए कि जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती तब तक किसी भी प्रकार की लापरवाही भारी पड़ सकती है। क्योंकि ना अभी तक इस महामारी का इलाज है और ना ही अब न ही अब लॉक डाउन उपाय है अब केवल सतर्कता और सावधानी से ही संक्रमण के माहौल में जीवन को बचाना पड़ेगा।
दरअसल देश में जहां-जहां लॉक डाउन में ढील दी जा रही है, वहां वहां लापरवाही देखी जा रही है खासकर शराब दुकानों पर उमड़ रही भीड़ और सोशल डिस्टेंस का हो रहा उल्लंघन भविष्य को भयावह बना रहा है और ऐसे लोगों की सजा वे लोग भुगत सकते हैं जो अनुशासन और संयम की जिंदगी जी रहे है। ना तो कभी किसी महापुरुष ने कहा है और ही किसी ग्रंथ में लिखा है कि स्वयं को नुकसान पहुंचा और सब को नुकसान पहुंचाओ। लेकिन कोरोना महामारी के दौरान जहां लोगों की त्याग तपस्या और सेवा भाव देखने को मिला तो वहीं दूसरी ओर लोगों की मूर्खता भी कम देखने को नहीं मिली। जिस तरह से लोगों को रोकने के लिए पुलिस को लाठियां चलानी पड़ी यदि समझदारी से काम लिया होता तो इसकी जरूरत ही नहीं थी और अब छोटे-मोटे रोगों के लिए बीमारियों के लिए लोग घरों में सहन कर रहे हैं। लेकिन शराब के लिए लोग ऐसे सड़कों पर उमड़े जैसे अमृत मिल रहा हो और उसमें भी सोशल डिस्टेंस का बिल्कुल भी पालन नहीं किया गया। जिन लोगों के पास खाने को नहीं था वह भी थैला लेकर शराब दुकानों पर घंटों किलोमीटर की लाइन में लगे रहे यह दुखद भी है और भयावहता के प्रति संकेत है यदि अब भी खुद ने अनुशासन का पालन नहीं किया खुद ने सतर्कता नहीं बरती तो फिर कौन बचाएगा कहा नहीं जा सकता।
बहरहाल देश में तीसरे चरण की शुरुआत मानी जाने लगी है लेकिन कोरोना संक्रमणके आंकड़े लगातार बढ़ रहे आइए सीएस मैं हुए अध्ययन के मुताबिक इस वक्त देश में कोरोना अपने विकराल रूप पर नहीं पहुंचा है संभावना जताई जा रही है कि जून अंत तक यह वायरस चरम पर जा सकता है रिसर्च में आशंका जताई गई है कि जून अंत तक करीब डेढ़ लाख लोगों के करोना से संक्रमित होने की आशंका है।
तमाम आंकड़े बताते हैं कि प्राय सिगरेट, गुटखा, तंबाकू, भांग, गांजा, शराब, चरस, कोकीन और अफीम जैसे नशीले पदार्थों की लत से बड़ी संख्या में लोग फेफड़ों ह्रदय लीवर किडनी ब्रेन और त्वचा संबंधी रोगों के शिकार हो जाते हैं। इन सबके लिए लॉक डाउन एक ऐसा अवसर था जब इन नशों से मुक्ति पा सकते हैं लेकिन मजबूरी और बाध्यता ही के कारण लोग नशे से दूर रहे और जैसे ही लॉक डाउन में ढील मिली शराब की दुकानें खुली लोग टूट पड़े ऐसे लोगों ने खुद अपनी भी जान जोखिम में डाली और भविष्य में कितने लोगों की जान इस कारण जाएगी अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता।
कुल मिलाकर जिस तरह से प्रतिदिन कोरोना संक्रमित मरीजों की संख्या बढ़ रही है और जरा सी ढील मिलने पर लोग जिस तरह से लापरवाही कर रहे हैं उससे अब यह समझ लेना चाहिए कि हमें तब तक इस वायरस के साथ ही जिंदगी जीना है। जब तक की कोई वैक्सीन तैयार नहीं हो जाती इसके लिए सरकारें कितने कानून बनाएंगे पुलिस कब तक सड़कों पर रोकने खड़ी रहेगी क्योंकि लंबी अवधि तक ऐसा करना संभव नहीं है। लॉक डाउन भी लंबे समय तक नहीं किया जा सकता अब तो हम सबको ही समझना है की प्रश्न अब जिंदगी और मौत का है तीसरा कोई विकल्प नहीं है तब खुद भी भीड़ का हिस्सा ना बने और ना किसी को बनने दे।
जाहिर है कोरोना महामारी देश में सरकार और समाज की भूमिका को नए सिरे से तय करने का संकेत दे रही है जिस तरह से शुरुआत में देशवासियों ने लॉक डाउन का पालन करके महामारी से लड़ने की उम्मीद जताई थी वह लॉक डाउन से ढील होने पर ना उम्मीद हो रही है।
लेकिन अभी भी अवसर है कि हम बड़े नुकसान को होने से बचा लें इसके लिए खुद बचें और लोगों को बचाएं।

ब्यूरो प्रमुख : देवदत्त दुबे (मध्य प्रदेश)


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