निर्दोष पर बीस साल गुजारे जेल में
उत्तर प्रदेश के एक व्यक्ति ने गलत तरीके से दोषी ठहराए जाने पर जिंदगी के सुनहरे २0 वर्ष जेल की सलाखों के पीछे काट दिए। इसे इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने आखिर बरी कर दिया।
ललितपुर के ४३ वर्षीय विष्णु तिवारी ने बिना गलती किए यह सजा काटी। ललितपुर जिले की एक दलित महिला ने सितम्बर 2000 में २३ वर्षीय विष्णु पर रेप का आरोप लगाया था।
खबरों के अनुसार केस की जांच उस वक्त के नारहट सर्कल आॅफिसर, अखिलेश नारायण सिंह ने की थी। उनकी रिपोर्ट विष्णु के खिलाफ गई और उसे सेशन्स कोर्ट ने आजीवन कारवास की सजा सुनाई। बाद में उसे आगरा जेल भेज दिया गया।
२00५ में विष्णु ने सेशन्स कोर्ट की सजा के खिलाफ अपील की। लेकिन १६ सालों तक कुछ गड़बड़ी के कारण केस की सुनवाई नहीं हुई। बाद में स्टेट लीगल सर्विस अथाॅरिटी ने एडवोकेट श्वेता सिेह राणा को डिफेंस काउंसिल नियुक्त किया।
इस पूरे प्रकरण में एक निर्दोष व्यक्ति ने अपने जीवन के सुनहरे 20 साल जेल में बिताए। आईए जानते हैं इस दौरान उसके परिवार पर क्या बीती। इस अवधि में उसके माता पिता और दो भाईयों की मौत हो गई लेकिन विष्णु को उनके अंतिम संस्कार में शामिल होने की आज्ञा नहीं मिली। विष्णु के भतीजे सत्येन्द्र के अनुसार मेरे चाचा की सजा ने पूरे परिवार को तोड़कर रख दिया। मेरे परिवार को आर्थिक और सामाजिक दोनों तरह से सजा भुगतनी पड़ी। मैंने अपने पिता, अंकल और दादा दादी को खो दिया। यह इस बात को सहन नहीं कर पाए और उन्हें ऐसा झटका लगा कि उनकी मृत्यु हो गई। केस लड़ने के लिए हमारे परिवार ने जमीन का एक बड़ा हिस्सा बेच दिया। निर्दोष होते हुए भी मेरे चाचा के जिंदगी के बेहतरीन साल जेल में गुजर गए।
मुझे भारतीय न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा है। मैं देश के न्याय प्रणाली का सम्मान करती हूं। मेरी तरह देश की जनता भी न्याय प्रणाली पर पूरा भरोसा करती है लेकिन आज सबके दिमाग में एक सवाल है ऐसा क्यों हुआ।