श्रीलंका की मदद के लिए भारत को आगे आना चाहिये : के एन त्रिपाठी

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डॉ अजय ओझा।

श्रीलंका के लोग मदद के लिए आशा भरी निगाहों से देख रहे हैं भारत की ओर।

भारत के लिए ऐतिहासिक अवसर।

भारत सरकार को श्रीलंका सहित पड़ोसी देशों की मदद के लिए अखंड भारत कॉंसिल का गठन करना चाहिये।

मेदिनीनगर, 29 जुलाई
श्रीलंका में उत्पन्न अराजक स्थिति के मद्देनजर मगध फाउंडेशन की कार्यकारिणी समिति की बैठक हुई। बैठक को सम्बोधित करते हुए झारखंड सरकार के पूर्व मंत्री एवं इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह मगध फाउण्डेशन के संस्थापक अध्यक्ष केएन त्रिपाठी ने कहा कि भारत और श्रीलंका का ऐतिहासिक और पौराणिक संबंध रहा है। श्रीलंका की स्थापना भगवान शिव ने किया था। भगवान शिव की आज्ञा से विश्वकर्मा जी ने वहां माँ पार्वती जी के रहने के लिए एक सोने का महल बनवाया था जिसे बाद में महर्षि विश्रवा ने भगवान शिव से दान ले लिया था। रामायण काल से लेकर मौर्य काल तक श्रीलंका भारत का अभिन्न अंग रहा है। महान सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेंद्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिए श्रीलंका भेजा था। तब से लेकर आज तक श्रीलंका में हिंदू एवं बौद्ध धर्म की एक साझा संस्कृति रही है।

लेकिन दुर्भाग्य से गलत आर्थिक नीतियों एवं नेतृत्व की अदूरदर्शिता से श्रीलंका आज एक कठिन स्थिति में फंस गया है। चीन ने श्रीलंका को इस प्रकार से अपने चंगुल में फंसा लिया है कि वह दिवालिया होेने के कगार पर है। अर्थव्यवस्था खस्ताहाल है। विदेश मुद्रा भंडार खाली है। महंगाई चरम पर है। आवश्यक वस्तुओं की किल्लत है। जनता त्राहिमाम कर रही है। चीनी कर्ज का मर्ज लगातार बढऩे पर है। ड्रैगन उस पर अपना शिकंजा लगातार कसता जा रहा है। कोलंबो को इस चक्रव्यूह से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है। श्रीलंका जिस हालात से दो-चार है, उसका सबसे बड़ा जिम्मेदार वह स्वयं है। एक तो चीन पर हद से ज्यादा निर्भरता बढ़ाकर उसने अपने लिए आफत मोल ले ली। दूसरे हाल के दौर में कुछ ऐसी घरेलू नीतियां अपनाईं जो उसके लिए आत्मघाती साबित हुईं। रही-सही कसर कोविड महामारी से उपजी आपदा ने पूरी कर दी। यही कारण है कि एक समय दक्षिण एशिया में मानव विकास सहित तमाम मानकों पर अग्रिम स्थिति पर दिखने वाला देश आज दिवालिया होने के कगार पर है। ऐसी स्थितियों में वह भारत जैसे पड़ोसी देश से मदद की आस लगाए हुए है। भारत के लिए भी यह श्रीलंका में गंवाई अपनी जमीन को वापस पाने का ऐतिहासिक अवसर प्रतीत हो रहा है। भारत को आगे बढ़कर श्रीलंका की मदद करनी चाहिये। प्रधानमंत्री को श्रीलंका की रक्षा और विदेश नीति को संभालने के साथ ही वहां के लोगों के मदद के लिए एक विशेष आर्थिक पैकेज की घोषणा करनी चाहिये।

श्री त्रिपाठी ने कहा कि भारत सरकार को अखंड भारत कॉंसिल की स्थापना कर अपने पड़ोसी देशों – पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, बर्मा,अफगानिस्तान एवं श्रीलंका को इसका सदस्य बनाना चाहिये।सदस्य देशों की रक्षा और विदेशी मामला भारत सरकार देखे। यह कॉंसिल सदस्य देशों की विदेश नीति और रक्षा मामलों का दायित्व उठायेगा। अभी तत्काल श्रीलंका को इसकी जरूरत है, अत: शुरुआत श्रीलंका से ही करना चाहिये। प्रधानमंत्री को आगे बढ़कर इसकी पहल करनी चाहिये। त्रिपाठी जी ने कहा कि मगध फाउंडेशन का एक प्रतिनिधिमंडल अति शीघ्र भारत सरकार और प्रधानमंत्री से मिलकर इस संबंध में एक विस्तृत ज्ञापन प्रस्तुत करेगा। इससे विश्व में भारत की छवि सुदृढ़ होगी और मौर्यकालीन अखंड भारत का सपना भी साकार होगा।

कार्यकारिणी बैठक में उपस्थित सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से उनके इस प्रस्ताव का समर्थन एवं स्वागत किया। बैठक में मुख्य रूप से सी एस दुबे, के डी सिंह, राजेश रंजन, रिफातुल्लाह खान, डॉ अजय ओझा, डॉ साकेत शुक्ला, पाण्डेय प्रदीप शर्मा, बबन पासवान, सुशील चौबे आदि उपस्थित थे।


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