कोरोना: नियम समान व जनहितकारी हों

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तनवीर जाफ़री

कोरोना अर्थात कोविड-19 वायरस की भयावहता ने पूरे विश्व को न केवल दहशत में डाल दिया है बल्कि इसने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था की कमर भी तोड़ कर रख दी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) की प्रमुख क्रिस्टलिना गोर्गिवा के अनुसार कोविड-19 वायरस के प्रकोप के चलते “वैश्विक अर्थव्यवस्था इस समय बड़े संकट के दौर से गुज़र रही है और अभी जो नुक़सान हुआ है, उससे निपटने के लिए सभी देशों विशेषकर विकासशील देशों को अत्याधिक फ़ंडिंग की आवश्यकता होगी।”। उन्होंने कहा कि स्पष्ट रूप से हम मंदी की दौर में प्रवेश कर चुके हैं और ये दौर वर्ष 2009 की मंदी से भी बुरा होगा।”। क्रिस्टलिना ने कहा कि दुनिया भर में आर्थिक गतिविधियां अचानक ठप होने के साथ उभरते बाज़ारों को कम से कम 2,500 अरब डॉलर की आवश्यकता होगी। कोरोना वायरस संक्रमण और लॉकडाउन से जूझते कई देशों की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है और बेरोज़गारी का संकट भी अचानक बेतहाशा बढ़ा है। चीन के बाद इटली,अमेरिका और फ़्रांस जैसे विकसित देशों में इस महामारी का अनियंत्रित होना तथा ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉन्सन जैसे कई वैश्विक नेताओं का कोविड-19 से संक्रमित होना इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए काफ़ी है कि यदि विकासशील देशों में या ग़रीब देशों में इस महामारी ने अपने पैर पसारे तो क्या अंजाम हो सकता है।

बेसहारा मजदूर का अब कैसे सहेता करेगी सरकार ?

बहरहाल,पूरा विश्व इस बात को लेकर लगभग एकमत है कि जब तक कोविड-19 वायरस को नियंत्रित नहीं कर लिया जाता तथा इस बीमारी पर विजय हासिल करने का ईलाज ढूंढ नहीं लिया जाता तब तक दुनिया के हर व्यक्ति के लिए स्वयं को एक दूसरे से फ़ासला बनाकर रखना ही एकमात्र उपाय है। इसी उद्देश्य से इस समय भारत सहित दुनिया के कई देश अभूतपूर्व लॉकडाउन का सामना कर रहे हैं। भारत में सरकार द्वारा लिए गए लॉकडाउन के फ़ैसले की जहाँ एक वर्ग द्वारा तारीफ़ की जा रही है वहीं सरकार की इस बात के लिए बड़े स्तर पर आलोचना भी की जा रही है कि सरकार ने भारत जैसे विशाल देश में जहाँ अधिकांश कामगार वर्ग असंगठित क्षेत्र से सम्बंधित है तथा रोज़ अपनी व अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए दिहाड़ी पर मज़दूरी करता है,ऐसे देश में अचानक सम्पूर्ण लॉक डाउन की घोषणा करना क़तई मुनासिब नहीं है। सरकार की इसी अदूरदर्शिता का परिणाम है कि आज दिल्ली व पंजाब सहित अनेक राज्यों व महानगरों से बेसहारा हो चुके लाखों अप्रवासियों ने अपने अपने गृह नगरों की सैकड़ों व हज़ारों किलोमीटर की यात्रा पैदल ही करनी शुरू कर दी है। इनमें हज़ारों लोग ऐसे हैं जिनकी जेबें ख़ाली हैं। तमाम लोगों के साथ छोटे छोटे बच्चे व बुज़ुर्ग भी हैं। पैरों में छाले,भूखे पेट,कांधे पर गृहस्थी का ज़रूरी सामान,अनिश्चितता में डूबा भविष्य,हज़ारों किलोमीटर दूर मंज़िल,मानो एक बार फिर 1947 के विभाजन जैसा दृश्य देश के सामने आ गया हो । हालाँकि 4 दिनों तक मीडिया द्वारा इन बेसहारा कामगारों के दर्दनाक दृश्य दिखाने के बाद कई राज्य सरकारों ने इनके लिए आंशिक रूप से ठहरने,खाने व व परिवहन का प्रबंध किया है केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकारों को इसे रोकने के लिए उचित प्रबंध किये जाने के निर्देश दिए हैं। परन्तु इन अप्रवासी लोगों की भारी संख्या को देखते हुए यह सरकारी प्रबंध अपर्याप्त हैं। इनके मार्ग में तमाम स्वयंसेवी संग्ठन, तथा निजी स्तर पर अनेकानेक समाजसेवी तथा गुरद्वारे से जुड़े लोग भी इनकी सहायता हेतु बढ़चढ़ कर आगे आ रहे हैं।

कई राज्यों में जहाँ लॉक डाउन को सख़्ती से लागू कराया जा रहा है वहीं कई जगह सत्ताधीशों द्वारा ही इसी लॉकडाउन की धज्जियाँ भी उड़ाई जा रही हैं। उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पूरे देश में 21 दिन के लॉकडाउन की घोषणा के कुछ ही घंटों बाद उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री योगी आदित्य नाथ अपने लाव लश्कर के साथ अयोध्या जा पहुंचे तथा ख़बरों के अनुसार उन्होंने अनेक संतों व अधिकारीयों के साथ पूजा-अर्चना भी की। कोरोना वायरस के ख़तरे के चलते प्रशासन द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बीच मंदिर निर्माण कार्य की शुरुआत भी कर दी गई है। सोचने का विषय है कि जब मुख्यमंत्री स्तर के नेता द्वारा प्रधानमंत्री के आह्वान का उल्लंघन किया जाएगा फिर लॉकडाउन को लेकर आम जनता से सख़्ती बरतना कितना न्याय संगत है ? यही दृश्य भोपाल में भी उस समय देखा गया जब कांग्रेस से सत्ता झटकने के बाद शिवराज सिंह ने मुख्य मंत्री पद की शपथ ली। अनेक नेताओं के साथ भाजपा के सैकड़ों अति उत्साहित कार्यकर्ताओं ने शिवराज चौहान के नक़्शे क़दम पर चलते हुए बड़ी संख्या में शपथ ग्रहण समारोह में जश्न मनाया और लॉकडाउन की धज्जियाँ उड़ाईं।

आज देश के मंदिर मस्जिद सहित अन्य सभी धर्मस्थलों में ताले लटक रहे हैं। अनेक धर्मगुरु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फ़तवों तथा निर्देशों के माध्यम से लोगों से अपने अपने घरों में ही रहकर पूजा व इबादत करने का निर्देश दे रहे हैं। और यदि कहीं से लॉकडाउन का उल्लंघन कर इबादतगाहों में जाने की कोशिश की गई है तो या तो उन पर मुक़द्द्मे दर्ज किये गए हैं या फिर सख़्ती बरती गयी है। तेलंगाना के मुख्य मंत्री के चंद्रशेखर राव ने तो बहुत ही सख़्त लहजे में जनता को चेतावनी दी है कि यदि लॉक डाउन का सख़्ती से पालन नहीं किया गया तो गोली मारने के आदेश भी जारी किये जा सकते हैं। इस तरह के क़दम कोरोना वॉयरस के विस्तार के ख़तरों की गंभीरता को भी दर्शाते हैं। यह इसकी भयावहता ही है कि इस मर्ज़ के संदिग्ध व्यक्ति को भी होम क्वारन्टीन अर्थात डॉक्टरों की निगरानी में अलग रहकर ही इलाज कराने का नियम बनाया गया है। इस नियम का उल्लंघन करने वालों पर भी सख़्त कार्रवाई की जा रही है। केरल के मुख्यमंत्री ने होम क्वारन्टीन नियमों का उल्लंघन करने वाले एक आईएएस अधिकारी अनुपम मिश्रा को निलंबित कर दिया। अनुपम मिश्रा विदेश यात्रा कर भारत लौटे थे और उन्‍हें होम क्वारन्टीन में यानी निगरानी में रहने के निर्देश दिए गए थे लेकिन वे इस नियम की अनदेखी कर कानपुर में अपने माता-पिता के पास चले गए।जब यह मामला सामने आया तब स्‍वास्‍थ्‍य विभाग की रिपोर्ट के आधार पर उनके ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज कराई गई। इस घटना के बाद मुख्यमंत्री पिनारयी विजयन ने कहा कि “कोल्‍लम के सब कलेक्‍टर बिना अधिकारियों को बताए राज्य छोड़कर चले गए। उन्होंने यह ठीक नहीं किया।” विजयन ने कहा, “जो लोग कोरोना के कारण डॉक्‍टरी देख-रेख में रखे गए हैं उनसे क्वारन्टीन का सख़्ती से पालन करने का अनुरोध किया गया है लेकिन जब सब कलेक्‍टर जैसा जिम्‍मेदार व्‍यक्ति केरल छोड़कर भागता है तो इससे राज्‍य का नाम ख़राब होता है। इसलिए हमने उन्‍हें सस्‍पेंड करने का फ़ैसला किया है।” । कोरोना के विस्तार पर क़ाबू पाने के लिए निश्चित रूप से ऐसा क़दम उठाया जाना सराहनीय है। परन्तु ऐसे नियम सभी के लिए समान रूप से लागू होने चाहिए। सरकार द्वारा इस संबंध में बनाए जाने वाले सभी नियम समान व जनहितकारी होने चाहिए।


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